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इंसानियत के लिए खूबसूरत मिसाल छोड़ गई ये 76 साल की नर्स

कल खेल में हम हो न हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा. चौंकिए मत! 38 साल के नविष गुप्ता अपनी मां के किस्से मुस्करा कर हंसकर बता रहे हैं क्योंकि नविष की मां ने इंसानियत के लिए वो मिसाल कायम की है जिसको सुनकर जिंदगी और इंसानियत पर भरोसा दोगुना हो जाता है.

इंसानियत के लिये खूबसूरत मिसाल छोड़ गई ये 76 साल की नर्स इंसानियत के लिये खूबसूरत मिसाल छोड़ गई ये 76 साल की नर्स
मणिदीप शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 30 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 6:40 AM IST

जिंदगी जिंदादिली के साथ जी जाती है मगर कुछ लोग मरने के बाद भी जिंदगियां बख्श जाते हैं. कुछ इसी अंदाज की थीं 76 साल की शशि बाला गुप्ता. जिन्होंने अंगदान की अपनी ख्वाहिश से इंसानियत के लिए खूबसूरत मिसाल कायम की है. पेशे से नर्स रहीं शशिबाला ने अपने अंगदान कर कई लोगों की जिंदगी सवार दी. ब्रेनडेड शशि को जब अस्पताल लाया गया तब उनका लीवर, कॉर्निया और खाल उनके परिवार वालों ने आम जनता की मदद के लिए दान कर दी.

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कल खेल में हम हो न हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा. चौंकिए मत! 38 साल के नविष गुप्ता अपनी मां के किस्से मुस्करा कर हंसकर बता रहे हैं क्योंकि नविष की मां ने इंसानियत के लिए वो मिसाल कायम की है जिसको सुनकर जिंदगी और इंसानियत पर भरोसा दोगुना हो जाता है.

45 साल सफदरजंग अस्पताल में नर्स रहीं शशि बाला गुप्ता की जिंदगी बीमार लोगों की देखभाल में बीती. 76 साल की शशि की आखरी ख्वाहिश थी कि उनकी मौत उनकी जिंदगी की तरह लोगों के भले में जाए. वो अपने शरीर के अंगों को दान करना चाहती थीं. यही हुआ भी. उनकी मौत ने कई लोगों की जिंदगी को खुशहाल कर दिया. उन्होंने अपना लीवर, अपनी स्किन और कॉर्निया दान में दे दिया. डॉक्टर सुजीत गुप्ता (मैक्स हॉस्पिटल) बताते हैं कि, 'उनका हार्ट कमजोर था तो उसे इस्तेमाल नहीं कर सकते लेकिन उनका लीवर काम आया, स्किन उन्होंने अपनी दान दे दी जो बहुत लोग नहीं करते हैं.'

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शशि बाला ने मरने के बाद भी हम जिंदाओं के सामने मील का वो पत्थर कायम किया है जिस तक पहुंचने की ख्वाहिश जिंदगी में यकीन करने वाले हर शख्स को करनी चाहिए. शशि बाला ने नर्स रहते बर्न वार्ड में काम किया था. वो जानती थीं इसकी जरूरत कितनी होती है. शशिबाला की मौत दुबई में उनके बेटे के घर हुई. मां की आखरी इच्छा का ध्यान रखते हुए बच्चे उनका अंगदान करवाना चाहते थे. मगर दुबई में नियम सख्त होने के चलते उन्हें भारत लाना पड़ा.

शशिबाला गुप्ता ने आज से 20 साल पहले अपने परिवार से लड़ कर अपनी एक किडनी डोनेट की थी . अंगदान कैसे लोगों की जिंदगी बदल सकता है ये इनसे बेहतर कोई नही समझ सकता जिनको शशिबाला का लीवर मिला है. आज के वक्त में भारत में बहुत से लोगों की मौत समय से ऑर्गन न मिलने पर होती है. ऐसे में इसका महत्व और बढ़ जाता है साथ ही ये समझना भी जरूरी है कि ये बेहद आसान है.

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