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खास तौर से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए बने भोपाल मेमोरियल अस्पताल के परिसर में गैस पीड़ितों की याद में एक बड़ा-सा स्मृति चिन्ह बना है. इसके आगे जड़े शिलालेख पर लिखा है 'श्रद्घांजलि और आशा'. लेकिन इस अस्पताल पर न तो गैस पीड़ितों का विश्वास रहा है और न ही पीड़ितों को इससे कोई आशा बची है.
भोपाल मेमोरियल सहित अन्य छह अस्पतालों में गैस पीड़ितों का निशुल्क इलाज होता है, यही सुविधा उनके लिए मुसीबत बन गई है. जब वे इलाज के लिए इन अस्पतालों में जाते हैं तो उन्हें टालने की कोशिश की जाती है जबकि प्राइवेट मरीजों का तुरत-फुरत इलाज हो जाता है.
38 साल की ताहिरा बी गैस त्रासदी पीड़ित हैं. किडनी के रोग से परेशान ताहिरा को हफ्ते में दो बार डायलिसिस करवाना पड़ता है. लेकिन भोपाल मेमोरियल अस्पताल में उन्हें बताया गया है कि मशीनों की कमी के कारण यहां हफ्ते में दो बार डायलिसिस नहीं किया जा सकेगा. ताहिरा के पति इमरान कहते हैं, ''अब हम एक बार निजी अस्पताल में तो एक बार भोपाल मेमोरियल में डायलिसिस करवाते हैं.'' वे बताते हैं कि भोपाल मेमोरियल हफ्ते में एक बार डायलिसिस करने के लिए भी गैस पीड़ित संगठनों के दबाव के बाद राजी हुआ. डायलिसिस पर हर माह 7,000-8,000 रु. का खर्च आने के कारण इमरान को अपनी पुश्तैनी जमीन तक बेचनी पड़ी है.
महज पांच साल की उम्र में भोपाल गैस त्रासदी का सामना करने वाले 33 वर्षीय सतीश शर्मा की आंखों की रोशनी लगभग खत्म हो चुकी है. गैस पीड़ितों के लिए बने शाकिर अली खान मेमोरियल अस्पताल में लंबे समय तक उनका इलाज चला लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. सतीश बताते हैं, ''अस्पताल में दवाई लेने के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ता था. उस दवाई से भी कोई फायदा नहीं हुआ.'' यही नहीं, अस्पताल ने कह दिया कि वे कहीं और इलाज करवा लें. इसके बाद शर्मा ने भोपाल के कलेक्टर से गुहार लगाई. उनकी मदद से अब शर्मा का दिल्ली में इलाज चल रहा है.
दरअसल, भोपाल में गैस पीड़ितों के लिए 33 चिकित्सा केंद्र स्थापित किए गए थे. इसमें भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर के अलावा छह अस्पताल शामिल हैं. इनमें से भोपाल मेमोरियल में गैस पीड़ितों के अलावा प्राइवेट मरीजों का इलाज हमेशा से होता आया है लेकिन बाकी के अस्पतालों में 2005 में तत्कालीन गैस राहत मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने रोगी कल्याण योजना लागू कर दी थी. तब से इन अस्पतालों
में भी प्राइवेट मरीजों की जांच, इलाज और टेस्ट सस्ते में होने लगे. अब एक भी अस्पताल पूरी तरह से गैस पीड़ितों के लिए समर्पित नहीं रह गया. गैस पीड़ितों के संगठन इसी का विरोध करते आए हैं.
भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार कहते हैं, ''इन अस्पतालों का निर्माण गैस राहत विभाग के तहत हुआ है, ये स्वास्थ्य विभाग में नहीं आते. गैस राहत के लिए खास तौर से एक मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी नियुक्ति किया गया है. इसलिए इन अस्पतालों को आम मरीजों के लिए नहीं खोला जाना चाहिए था. इससे गैस पीड़ितों के लिए जो सीमित संसाधन हैं, उनमें भी बंटवारा हो जाता है.'' जब्बार बताते हैं कि पूरे गैस राहत विभाग में डॉक्टरों सहित कुल 1,200 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 400 पद खाली हैं.
गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली संस्था भोपाल ग्रुप्स फॉर इन्फॉर्मेशन ऐंड ऐक्शन की रचना ढींगरा आरोप लगाती हैं, ''भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर में गैस पीड़ितों के साथ सबसे ज्यादा भेदभाव होता है, यहां प्राइवेट मरीजों को प्राथमिकता दी जाती है.''
जब्बार आरोप लगाते हैं, ''गैस राहत के लिए बने छह अस्पताल और मिनी यूनिट्स में तैनात 150 डॉक्टरों में से 125 प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं. ये डॉक्टर मरीजों को देखते तो अपने निजी क्लिनिक में हैं लेकिन जरूरी जांचों के लिए उन्हें गैस पीड़ितों के अस्पतालों में भेज देते हैं, जहां सभी तरह की जांच सस्ते में होती है.''
भोपाल मेमोरियल अस्पताल में प्राइवेट मरीजों को ज्यादा महत्व देने के पीछे यहां के डॉक्टरों को उनकी फीस में से मिलने वाले प्राइवेट शेयर का लालच भी है. दरअसल, यहां प्राइवेट मरीजों को देखने के एवज में डॉक्टरों को फीस में से 40 फीसदी हिस्सा मिलता है. इसलिए यहां तरह-तरह के बहाने बनाकर गैस पीड़ितों को तो लौटा दिया जाता है, क्योंकि उनका इलाज निशुल्क होता है जबकि प्राइवेट मरीजों को सारी सुविधाएं मिलती हैं.
मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित योजनाओं के सालाना रिपोर्ट कार्ड से पता चलता है कि अस्पताल के डॉक्टरों को मिलने वाला प्राइवेट शेयर उनके वेतन से कई गुना ज्यादा रहा है.
रचना ढींगरा कहती हैं, ''भोपाल मेमोरियल में समय-समय पर ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं जिनमें गैस पीड़ित किडनी के रोगियों को डायलिसिस, एमआरआइ आदि के लिए दो से तीन माह तक का लंबा इंतजार करने को कहा गया. यह जानते हुए कि देरी उनके जीवन के लिए घातक साबित हो सकती है जबकि प्राइवेट मरीजों को इलाज तुरंत मुहैया करवाया गया.'' वे दावा करती हैं कि इलाज नहीं मिलने के कारण कई गैस पीड़ित जान भी गवां चुके हैं लेकिन अस्पताल का रवैया नहीं बदल रहा.
गैस राहत के मुख्य चिकित्सा अधिकारी रवि वर्मा गैस पीड़ितों के साथ भेदभाव के आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं, ''हमारी प्राथमिकता गैस पीड़ित ही हैं. क्षेत्र के अन्य मरीजों को यहां इलाज उपलब्ध नहीं करवाएंगे तो वे कहां जाएंगे. हमारे पास पर्याप्त बजट और सुविधाएं हैं, सीमित संसाधन की बात भी गलत है.''
भोपाल मेमोरियल के डायरेक्टर के.के. मोदर ने अस्पताल में गैस पीड़ितों की अनदेखी और डॉक्टरों को मिल रहे प्राइवेट शेयर के संबंध में बात करने से ही इनकार कर दिया. प्राइवेट शेयर के बारे में यहां के डॉक्टरों ने भी बात करने से मना कर दिया. हालांकि इस बात से कोई इनकार नहीं कर पाया कि साल-दर-साल अस्पताल में प्राइवेट मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है.