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फिर मुश्किल में किंगफिशर, टीडीएस को लेकर फजीहत

कर्मचारियों के वेतन से काटा गया टैक्स सरकार के पास न जमा करने वाले कंपनी निदेशकों को जेल जाना पड़ सकता है. अगर किसी ने टीडीएस काटा है और उसे सरकार के खाते में जमा नहीं किया है तो आयकर कानून (धारा 271) के तहत उसे जेल की सजा हो सकती है. जुर्माना और मुकदमे से बचने के लिए आयकर विभाग में टीडीएस जमा कराना जरूरी है.

विजय माल्या विजय माल्या
संदीप बामज़ई
  • नई दिल्‍ली,
  • 06 दिसंबर 2011,
  • अपडेटेड 12:47 PM IST

परेशानियां किंगफिशर एअरलाइंस का पीछा छोड़ती नहीं दिखतीं. ताजा संकट इस बात को लेकर है कि उसने सरकार को दी जाने वाली रकम उसके खातों में नहीं डाली है. सरकार के विभिन्न विभागों को अपनी देनदारियों का भुगतान न करने पर कंपनी के निदेशकों पर मुकदमा हो सकता है और जुर्माना देना पड़ सकता है. यहां तक कि उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. जाने-माने टैक्स विशेषज्ञ सुभाष लखोटिया ने इंडिया टुडे को बताया, ''यह एक गंभीर अपराध है.

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अगर किसी ने आय के स्त्रोत पर टैक्स (टीडीएस) काटा है और उसे सरकार के खाते में नहीं जमा किया है, जो कि आयकर कानून (धारा 271) के तहत अनिवार्य है, तो उसे कठोर सजा हो सकती है. इसके लिए जिम्मेदार निदेशकों पर मुकदमा चलाया जा सकता है. जुर्माना और मुकदमे से बचने के लिए आपको कानून के मुताबिक टीडीएस को आयकर विभाग में जमा करना जरूरी है.''

किंगफिशर एअरलाइंस कर्मचारियों और सरकारी खजाने के पैसों को बड़े-बड़े आयोजनों पर खुले हाथों से उड़ाती रहती है. किंगफिशर के बारे में यह कड़वी, लेकिन पैनी टिप्पणी टोरंटो स्थित वेरिटास इन्वेस्टमेंट रिसर्च ने 12 सितंबर, 2011 की अपनी रिपोर्ट में की थी. रिपोर्ट कहती है कि एअरलाइन ने वित्तीय वर्ष 2010-11 में अपने कर्मचारियों के वेतन से काटा गया 422 करोड़ रु. का टीडीएस सरकार के खजाने में नहीं जमा कराया है.

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इसके लेखा-परीक्षकों के मुताबिक, ''बगैर किसी विवाद के कंपनी पर कर्मचारी राज्‍य बीमा के 75 लाख रु., भविष्य निधि के 43.80 लाख रु., टीडीएस के 422.97 करोड़ रु., सर्विस टैक्स के 1.04 करोड़ रु. और प्रोफव्शनल टैक्स के 2.46 लाख रु. बकाया हैं. ये मामले 2008-09, 2009-10 और 2010-11 के वित्त वर्ष से जुड़े हैं. इतना ही नहीं, 2008-09 के वित्त वर्ष के फ्रिंज बेनिफिट टैक्स का 4.5 करोड़ रु. भी बकाया है.''

एक बड़े चार्टर्ड एकाउंटेंट कहते हैं, ''यह सरासर गड़बड़ी है. इस तरह का भुगतान न करने की कोई तुक ही नहीं है. यह एक संज्ञान में लेने वाला अपराध है.''

वेरिटास की रिपोर्ट कहती है, ''हमने यह भी पाया कि लेखा परीक्षकों ने कई मौकों पर  किंगफिशर की ओर से रिपोर्ट किए गए वित्तीय परिणामों को कई मौकों पर 'क्वालिफाई' किया है. इसके लिए उन्होंने लेखा नीतियों में बदलाव का संदर्भ देते हुए और प्रबंधन की ओर से इंडियन एकाउंटिंग स्टैंड्डर्स की व्याख्या से असहमति व्यक्त की है. उत्तरी अमेरिका में इस तरह की गड़बड़ियों की जांच हो गई होती. इसलिए हमारा विश्वास है कि निवेशकों को किंगफिशर के बारे में न तो सही और न ही समय से जानकारी मिल पाती है.''

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यह सब कहने के बाद वेरिटास की ओर से दी गई राय बहुत सख्त है, ''हम यह भी मानते हैं कि यूबी का मौजूदा प्रबंधन शराब और बियर का विशाल कारोबार चलाने का अधिकार खो चुकी है. वित्तीय संस्थानों को इसे नीलाम कर देना चाहिए और जो कुछ बचे, उसे उसके शेयरधारकों के लिए फिर से रख देना चाहिए.''

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यूबी समूह के अध्यक्ष रवि नेदुंगडी को कई बार फोन किया गया, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया. नागरिक उड्डयन के पूर्व संयुक्त सचिव सनत कौल कहते हैं, ''सरकार को देय रकम का भुगतान न करना गंभीर जुर्म है और लोगों को इस तरह के अपराधों के लिए पहले भी सजा हो चुकी है.''

नागरिक उड्डयन विशेषज्ञ कपिल कौल का मानना है कि इस तरह की अनिवार्य देनदारियां समय से पहले ही चुका देनी चाहिए, क्योंकि कंपनियां और उनके निदेशक अगर सरकारी विभागों को ये भुगतान नहीं करते हैं तो निदेशकों को सजा हो सकती है. कौल कहते हैं कि विजय माल्या के स्वामित्व वाली एअरलाइन को समय से अपनी देनदारियां चुका देनी चाहिए.

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इसे 24 महीनों में करीब 80 करोड़ डॉलर की जरूरत है. इसमें से 40 करोड़ डॉलर या 2,000 करोड़ रु. 31 मार्च, 2012 तक चाहिए, और 10 करोड़ डॉलर या 500 करोड़ रु. तो 31 दिसंबर, 2011 तक ही मिलना जरूरी है. वे कहते हैं, ''वेंडरों, तेल कंपनियों, विभिन्न सरकारी विभागों, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और रखरखाव को किए जाने वाले अनिवार्य भुगतान के तौर पर 31 मार्च, 2012 तक इतनी रकम तो हर हाल में देनी होगी. आप भाग सकते हैं, लेकिन इन भुगतानों से बच नहीं सकते हैं. अगर प्राथमिकता के तौर पर 2,000 करोड़ रु. की जरूरत है, तो जाहिर है, यह टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं चलेगा.''

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शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माल्या को इस 2,000 करोड़ रु. में से 1,200 करोड़ रु. अपनी ओर से लगाने होंगे. अगर राइट इश्यू जारी करना पड़ा तो इस एअरलाइन में 23 फीसदी की इक्विटी रखने वाले बैंकों को 460 करोड़ रु. लगाने होंगे. इंडिया टुडे को पता चला है कि माल्या अगली जनवरी तक एक भारतीय निवेशक से कोई बड़ा सौदा करने वाले हैं.

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माल्या और एअरलाइन इस समय भारी वित्तीय संकट से घिरे हैं. इस समय सवाल यह उठ रहा है कि माल्या क्या इस संकट से उबर पाएंगे. बहरहाल सबसे पहले तो उन्हें सरकारी खाते में 425 करोड़ रु. जमा कराने होंगे, वरना उनके निदेशकों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है. इस बीच किंगफिशर के कर्मचारियों को आयकर विभाग की ओर से लगातार नोटिस मिल रहे हैं.

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