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जब कोयला राज्यमंत्री दासरी नारायण राव ने पूर्व कोयला सचिव पी.सी. पारख के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि कोयला ब्लॉकों का आवंटन नीलामी के जरिए किया जाए तो हारकर जुलाई, 2004 में पारख यह फाइल लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) पहुंचे थे.
विश्वस्त सूत्रों से इंडिया टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक राव के यह कहने के बाद कि नीलामी प्रक्रिया से कोयला ब्लॉकों के आवंटन का सीधा असर प्रति यूनिट बिजली की दरों पर पड़ेगा, पारख खुद प्रधानमंत्री के पास गए थे. इस खुलासे से पीएमओ की उन सारी कोशिशों पर पलीता लग जाता है जो साबित करना चाहती हैं कि मनमोहन सिंह और कोयला घोटाले का एक-दूसरे से कोर्ई लेना-देना नहीं है.
हालांकि तत्कालीन प्रमुख सचिव टी.के.ए. नायर ने कुछ तकनीकी खामियां गिनाकर फाइल पारख को वापस लौटा दी थी. नीलामी की राह में यह पहला रोड़ा आया था. नायर का तर्क था कि आवंटन का मौजूदा तरीका भले ही कितना भी मनमाना और अनुचित क्यों न हो, उसे जारी रखना चाहिए. संसद में अगस्त, 2010 में खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 में संशोधन किए जाने के बावजूद यह तरीका 2011 तक जारी रहा. इस कानून के लागू होने के बाद सरकार इस बात के लिए बाध्य थी कि कोयला ब्लॉक ऊंची बोली लगाने वाले को ही मिले. हालांकि नीलामी के नियम कोयला मंत्रालय ने इस साल फरवरी में जाकर ही अधिसूचित किए.
पारख 12 हफ्ते के भीतर एक ऐसी पारदर्शी व्यवस्था लागू करने पर अड़े हुए थे जो कोयला ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया को सहज बना दे. लेकिन उस वक्त फैसला लेने की प्रक्रिया से जुड़े एक शख्स का कहना है कि इसे नौकरशाहों ने ‘नेताओं के साथ मिलीभगत’ कर डुबो दिया. दिसंबर, 2005 में नौकरी से रिटायर होने से पहले पारख ने प्रधानमंत्री कार्यालय के दिग्गजों को समझने की एक कोशिश और की लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला.
हालांकि हैदराबाद में जब पारख से संपर्क किया गया तो उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे अपनी बात संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने ही रखेंगे. वैसे, प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने इस आरोप को नकारा है कि फाइल को लौटाते समय नायर ने कुछ प्रश्न उठाए थे. प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है, “यह सच है कि राव ने कोयला सचिव की फाइल पर कई सवाल उठाए थे. उनमें से एक तर्क यह भी था कि कोयला ब्लॉकों की नीलामी बिजली की दरों में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी का सबब बनेगी.
कोयला राज्यमंत्री ने सितंबर, 2004 में नीलामी से संबंधित पारख के विचारों और अपने विरोधी विचारों को शामिल करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय को एक नोट भेजा था, हालांकि नोट पर उनके दस्तखत नहीं थे. प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसे पढऩे के बाद कोयला सचिव के पास भेज दिया था.” पारख अपने प्रयासों पर डटे रहे और उन्होंने 25 सितंबर, 2004 को राव के पास एक कैबिनेट नोट का मसौदा भेजा. इस नोट में वे सारी दलीलें मौजूद थीं जिनसे राव की आपत्तियां खारिज हो जातीं.
नीलामी प्रक्रिया अपनाने में हो रही देरी का नेताओं ने जमकर फायदा उठाया. नेता लोग इस मनमानी प्रक्रिया से अपने दोस्तों और फाइनेंसरों को कोयला ब्लॉक दिलाने में जुटे हुए थे. सीबीआइ ने घोटोले को लेकर पांच एफआइआर दर्ज की हैं जिससे यह बात अपने आप साबित हो जाती है. कई मामलों में फंसे होने के कारण रांची सेंट्रल जेल में दिन काट रहे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विजय दर्डा ने ऐसी फर्मों के पक्ष में कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए अपने रसूख का इस्तेमाल किया जिनसे उनके प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित जुड़े थे.
इसमें विजय जोशी का नाम आने से कोड़ा की मिलीभगत का अंदाजा लगता है. 3 सितंबर को सीबीआइ ने जो 5 एफआइआर दर्ज की है उनमें जिन 20 लोगों को आरोपी बनाया गया, उनमें से एक जोशी भी है. ये पांच एफआइआर जेएएस इन्फ्रास्ट्रक्चर, जेवीएल यवतमाल एनर्जी, एएमआर आयरन ऐंड स्टील, नवभारत पावर और विनी आयरन ऐंड स्टील उद्योग के खिलाफ हैं. विनी कंपनी की स्थापना कोलकाता के तुलस्यान परिवार ने की थी. इस कंपनी ने 2006 में एक कोयला ब्लॉक की मांग की थी. यह फाइल झारखंड की तत्कालीन बीजेपी सरकार की अनुमति के लिए भेजी गई, तब अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री थे.
फाइल में स्क्रीनिंग कमेटी से विनी की अपील खारिज करने की बात कही गई थी. लेकिन 2007 में जब स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक हुई और इसमें झारखंड के मुख्य सचिव पी.पी. शर्मा ने सरकार का प्रतिनिधित्व किया तो कमेटी ने राजहारा नॉर्थ ब्लॉक विनी कंपनी को देने की सिफारिश कर दी. सीबीआइ के उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया, “दरअसल इस बीच कंपनी का मालिकाना हक बदल चुका था. अब यह कंपनी कोड़ा के करीबी जोशी की मिल्कियत थी.” इस वक्त तक कोड़ा झारखंड के मुख्यमंत्री बन चुके थे. कंपनी मामलों के मंत्रालय की टिप्पणियों के मुताबिक, 2011 तक इस कंपनी में जोशी की हिस्सेदारी 97 फीसदी तक पहुंच चुकी थी.
सीबीआइ ने विजय दर्डा, उनके छोटे भाई राजेंद्र दर्डा जो महाराष्ट्र की पृथ्वीराज चव्हाण सरकार में शिक्षा मंत्री हैं, उनके पुत्र देवेंद्र दर्डा और जायसवाल बंधुओं (अरविंद, मनोज तथा रमेश) और उनके रिश्तेदारों अभिषेक जायसवाल और आनंद जायसवाल के खिलाफ आपराधिक साजिश और छल के आपराधिक मामले दर्ज किए हैं. नागपुर का जायसवाल परिवार अभिजीत इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड चलाता है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत ‘अज्ञात’ सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी पद के दुरुपयोग के मामले दर्ज किए गए हैं.
विजय दर्डा पर आरोप है कि उन्होंने झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के तीन कोयला ब्लॉक ऐसी कंपनियों को देने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया जिन कंपनियों में उनके परिवार की सीधी हिस्सेदारी थी. सीबीआइ ने दर्डा परिवार के स्वामित्व वाली तीन फर्मों-जेएएस इन्फ्रास्ट्रक्चर कैपिटल प्राइवेट, जेएलडी यवतमल एनर्जी और एएमएआर आयरन ऐंड स्टील पर मामले दर्ज किए हैं.
दर्डा बंधुओं ने आरोपों का खंडन करते हुए दावा किया कि वे 2009 तथा 2008 में यवतमल एनर्जी को अलविदा कह चुके हैं. 5 सितंबर को लोकमत अखबार में विजय दर्डा ने कहा, “मैंने 2009 में कंपनी छोड़ दी. कुछ भी गलत करने का सवाल ही नहीं उठता.” ‘राजेंद्र दर्डा’ ने भी कंपनी से रिश्तों से इनकार किया. बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव किरीट सोमैया ने राजेंद्र के तर्कों पर चुटकी लेते हुए पूछा, “कंपनी से तभी निकले जब कंपनी को एक कोयला ब्लॉक आवंटित कर दिया गया. उन्होंने कोयला ब्लॉक लौटाने पर जोर क्यों नहीं दिया.”
-साथ में किरण तारे