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छत्तीसगढ़: जन स्वास्थ्य सहयोग, सुकून दिलाती सेवा

छत्तीसगढ़ के दूरदराज के एक गांव में देश के नामी डॉक्टरों की टीम आदिवासियों का कर रही सस्ता इलाज. सरकार ने भी माना लोहा.

गनियारी का अस्‍पताल गनियारी का अस्‍पताल
संजय दीक्षित
  • रायपुर,
  • 21 जनवरी 2012,
  • अपडेटेड 6:57 PM IST

एम्स सरीखे देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान से पढ़कर वहीं नौ साल नौकरी करने वाले डॉ. योगेंद्र जैन ने जब नौकरी छोड़कर गांव में जाकर सेवा करने का फैसला किया तो घर में रोना-धोना मच गया. मां ने कहा कि इतना पढ़-लिखकर अब गांव में सर्दी-खांसी का इलाज करोगे? इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज से शिक्षित पत्नी को भी समझाना पड़ा. एम्स के ही डॉ. विश्वरूप चटर्जी और डा. रमन कटारिया के साथ उन्होंने कमजोर लोगों को बेहतर इलाज मुहैया कराने का सपना देखा और आ पहुंचे छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के गांव गनियारी. एक दर्जन और प्रतिष्ठित डॉक्टर आकर जुड़े और जन स्वास्थ्य सहयोग (जेसीसी) नाम का संगठन बनाकर 1999 में खपरैल के नीचे शुरू हुआ सेवा का काम. शुरू में 10 गांवों को सेवा के लिए चुना गया. अब यह 50 बिस्तरों, चार ऑपरेशन थिएटर और 140 के स्टाफ के साथ पूरा अस्पताल है. साथ में है 300 प्रशिक्षित ग्रामीण कार्यकर्ता भी. हिंसक जानवरों के इलाके वाले अचानकमार अभयारण्य के तीन वन ग्रामों में भी इसकी डिस्पेंसरी हैं.

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अब आलम यह है कि छत्तीसगढ़ के तीन जिलों के अलावा मध्यप्रदेश के शहडोल, अनूपपुर और डिंडौरी सरीखे सीमावर्ती जिलों के 1,500 से ज्‍यादा गांवों के मरीजों का भी यह प्रमुख अस्पताल है. ओपीडी में रोज तीन सौ मरीजों की जांच और कैंसर से लेकर लेप्रोसी तक का इलाज. मरीजों का भरोसा इस कदर कि अस्पताल में जगह न मिलने पर पानी टंकी के नीचे या ट्राली पर लेटे रहने से भी गुरेज नहीं. सस्ता, कारगर इलाज, बाजार से चौथाई दर पर दवाइयां और मरीजों के परिजनों को पांच रु. थाली भोजन. मरीजों से नजदीकी बनाने के लिए डॉक्टर भी बेहद सामान्य पहनावे में रहते हैं. आसान इलाज मुमकिन कैसे हुआ? एक तो अस्पताल अनुदानों पर चल रहा है. अमेरिका में कार्यरत एम्स के छात्रों का संगठन एम्सोनियंस ऑफ अमेरिका 40-50 लाख रु. भेजता है. इंडो अमेरिकन कैंसर एसोसिएशन, जीव दया फाउंडेशन, यूएसए, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट भी बड़ी मदद करते हैं. दूसरी वजह, बकौल डॉ. जैन, 'न तो फालतू की दवाएं दी जाती हैं और न गैरजरूरी टेस्ट कराए जाते हैं.' शहरों में जचकी के लिए भी महिलाओं का ऑपरेशन और गांवों में ऑपरेशन के अभाव में जच्चा-बच्चा की मौत जैसी स्थितियां जैन को परेशान करती रही हैं.

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उनकी टीम की प्रतिबद्धता का ही नतीजा है कि यह अस्पताल प्रशासकों के लिए भी अब प्रेरणास्त्रोत बन गया है. पिछले दिनों मुआयना करने आए सूबे के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह यह प्रयोग देखकर मुग्ध रह गए. अब 23 जनवरी को राज्‍य के मुख्य सचिव पी. जॉय उम्मेन आदिवासी जिलों के कलेक्टरों को यह दिखाने ला रहे हैं कि कम संसाधनों में बेहतर इलाज कैसे मुमकिन है. रेडक्रास सोसाइटी के सदस्य अनिल तिवारी मानते हैं कि जेसीसी के डाक्टर इलाज नहीं, तपस्या कर रहे हैं. समाजवादी नेता आनंद मिश्र कहते हैं कि 'जेसीसी ने एक बड़ी खाई को पाटने का काम किया है.' अब खबर है कि छत्तीसगढ़ के मेडिकल कालेजों से निकलने वाले छात्रों को इंटर्नशिप के बाद दो साल गांवों में प्रैक्टिस करने के लिए सरकार को जुर्माना 75,000 रु. से बढ़ाकर पांच लाख रु. कर दिया है क्योंकि बार-बार विज्ञापन निकालने के बावजूद ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में डॉक्टरों के करीब 1,500 पद खाली हैं. ऐसे में भारी तनख्वाह और डॉलर का लालच छोड़ गनियारी में डेरा डालने वाले गुणवान डॉक्टरों के काम की अहमियत अपने आप में स्पष्ट है.

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