Advertisement

धोबी घाट: विचारों के फ्रेम पर उभरी परछाईयां

धोबी घाट  को कला फिल्म की परिभाषा भी कह सकते हैं. खांटी हिंदुस्तानी सिनेमा के शोर-ओ-गुल से दूर, हर फ्रेम में विचारों का पुलिंदा पसारे हुए. यह कहानी की नहीं छवियों/भावों की फिल्म है.

शिवकेश
  • मुंबई,
  • 31 जनवरी 2011,
  • अपडेटेड 10:21 PM IST

धोबी घाट
निर्देशकः किरण राव
कलाकारः मोनिका डोगरा, कृति मल्होत्रा, प्रतीक बब्बर, आमिर खान
धोबी घाट को कला फिल्म की परिभाषा भी कह सकते हैं. खांटी हिंदुस्तानी सिनेमा के शोर-ओ-गुल से दूर, हर फ्रेम में विचारों का पुलिंदा पसारे हुए. यह कहानी की नहीं छवियों/भावों की फिल्म है.

इन छवियों की दूर-दूर बिखरी बूंदों को आपस में मिलाने से कोई कहानी बने तो बन जाए. बल्कि बनती है लेकिन सतह से काफी गहरे. किरण राव अपनी पहली ही फिल्म में विचारों के स्तर पर शीशे की सी साफ नजर आती हैं. शायद तभी अपनी सिनेमाई सोच और तहजीब के एकदम उलट होने के बावजूद आमिर खान ने इसे न सिर्फ बनाया बल्कि अभिनय भी किया.

Advertisement

कहानी का ढांचा ये है कि शाइ (डोगरा) अमेरिका में बैंकिंग की नौकरी से ऊब शहर के तमाम चेहरों की फोटोग्राफी करने मुंबई निकल आई है. चित्रकार अरुण (आमिर) अपने फ्लैट में पुरानी किराएदार यास्मीन (मल्होत्रा) की छोड़ी तीन वीडियो चिट्ठियां देख रहे हैं. इन्हीं से गुंथा चौथा किरदार है धोबी मुन्ना (बब्बर), हीरो बनने का सपना पाले. अरुण एक रात के लिए शाइ के करीब आ फिर दूर हो जाता है. तभी मुन्ना उसकी ओर झुकता दिखता है.

यास्मीन की चिट्ठियों में अरुण को एकाएक कुछ चीजें खुद से जुड़ती दिखती हैं. पर फिल्म तो यह मुंबई के फ्रेम्स की है, जिनमें असल जीवन की तमाम ध्वनियां, आवाजें और रंग भरे हुए हैं. धोबी घाट पर सूखते हजारों कपड़ों की डरावनी फड़फड़, भीड़ और समुद्र किनारे पत्थरों के बीच टंके चेहरे, दूर तक फैली सुरंगों में गति करते भूमिगत दुनिया के लोग और सिद्धेश्वरी देवी की ठुमरी के बीच अमूर्त चित्रण.

Advertisement

छवियों की इन बूंदों को मिलाने की रफ्तार इतनी धीमी है कि कइयों के लिए वह नींद की गोलियों का काम भी करती दिखती है. डोगरा और मल्होत्रा अपने दृश्यों में कमाल की ताजगी भरती हैं. सब्र के साथ-साथ गहरी कलात्मक समझ की भी मांग करती है धोबी घाट.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement