
नवादा जिले के मेसकौर ब्लॉक के प्राइमरी स्कूल नोनी की दूसरी क्लास की छात्रा पुतुस को ककहरा नहीं आता. चौथी क्लास का विजय अब भी छह का पहाड़ा रट रहा है, जबकि पांचवीं के राजू को अंग्रेजी वर्णमाला का ज्ञान नहीं है. वह कहता है, ''मैं हर रोज पढ़ाई करता हूं, लेकिन भूल जाता हूं.'' यह स्थिति चंद बच्चों की नहीं है, स्कूल के आधे से अधिक बच्चों की स्थिति कुछ ऐसी ही है. ऐसा नहीं है कि पढ़ाई नहीं हो रही या बच्चे लापरवाह हैं. हर रोज क्लास होती है और बच्चे मौजूद रहते हैं.
लेकिन जो नहीं हो रहा वह है सही ढंग से पढ़ाई. प्राइमरी स्कूल नोनी के टीचर प्रेम कुमार कहते हैं, ''बच्चों की पढ़ाई के लिए मैंने अलग से कोई प्रोफेशनल कोर्स नहीं किया है, बल्कि बचपन में घर-परिवार से जो पढ़ाने का तरीका सीखा था, उसी आधार पर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहा हूं.'' इस तरह माजरा समझ में आ जाना चाहिए. इस स्कूल में 223 बच्चे हैं, जिन्हें पढ़ाने के लिए दो ही टीचर हैं और उनकी भी ट्रेनिंग नहीं हुई है.
शिक्षा की इस हालत के लिए बच्चे कतई जिम्मेदार नहीं हैं गोपालगंज जिले के हथुआ ब्लॉक के सिंघाटोला बगही मिडल स्कूल के विकास को ही लें. वह चौथी क्लास में है, लेकिन वह अपनी ही क्लास की किताब सही से नहीं पढ़ पाता है. शेखपुरा जिले के मोहबतपुर मिडल स्कूल का नकुल आठवीं में पढ़ता है, लेकिन वह अंग्रेजी में अपना नाम मुश्किल से ही लिख पाता है.
यह स्थिति कस्बाई स्कूलों के बच्चों की ही नहीं है. नवादा जिला मुख्यालय के अभ्यास मिडल स्कूल की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. पांचवीं का सुधीर अपना नाम अंग्रेजी में लिख सकता है, लेकिन गांव का नाम बासोडीह नहीं. अमित आठवीं में है, लेकिन अपने पिता सुरेंद्र शर्मा का नाम अंग्रेजी में नहीं लिख पाता. अच्छी शिक्षा मिलने पर यही बच्चे अफसर और वैज्ञानिक बनने का दम रखते हैं.
इस समस्या की जड़ कहां है? यह तो गहन अध्ययन का विषय है. लगता है कि बच्चों को सही तरीके से शिक्षा देने की कोशिश नहीं हो रही हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में 8.1 लाख अनट्रेंड टीचर हैं, जिनमें 1,73,167 अकेले बिहार में हैं. मिसाल के तौर पर गोपालगंज के सिंघाटोला बगही मिडल स्कूल को ही लें. यहां नौ टीचर हैं, जिनमें से छह अनट्रेंड हैं.
दरअसल, ज्यादातर ट्रेंड टीचर पुराने हैं. अधिकांश नए टीचर पत्राचार कोर्स के जरिए ट्रेंड हुए हैं. हालांकि सरकार ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित करती है, लेकिन औपचारिकता से ज्यादा कुछ भी नहीं हो पाता है. इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक परामर्शदाता अरुण कुमार भी बेसिक ट्रेनिंग और पत्राचार कोर्स के जरिए ट्रेनिंग में अंतर मानते हैं.
हालांकि उस अंतर को पाटने के लिए प्रैक्टिल ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन ज्यादातर टीचर रुचि नहीं दिखलाते हैं. हालांकि सरकार भी इस बात से वाकिफ है. पिछले दिनों पटना में एक सेमिनार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, ''शिक्षकों को पढ़ाने के नए-नए तरीकों से अवगत कराने और इसके लिए समय-समय पर ट्रेनिंग देने की जरूरत है. चूंकि बच्चों को स्कूलों में दरवाजे बंद करके नहीं रोका जा सकता.''
परेशानी टीचर्स की कमी की भी है. राज्य में 6.33 लाख टीचरों की जरूरत है, जिसकी तुलना में 3.48 लाख टीचर ही हैं. 2012 में करीब पौने दो लाख टीचर की बहाली की जा रही है, जिनमें ज्यादातर अभ्यर्थी अनट्रेंड हैं. राज्य सरकार ने ट्रेंड टीचर्स की उपस्थिति बढ़ाने के लिए अधिकतम आयु सीमा में 10 साल की छूट दी है. पर इसका लाभ कुछ ही शिक्षकों को मिलेगा. बिहार के मानव संसाधन विकास मंत्री पी.के. शाही के मुताबिक, ''2020 तक करीब 10 लाख शिक्षकों की जरूरत होगी. लिहाजा, जरूरत लाखों टीचर को ट्रेंड करने की है, लेकिन संसाधन सीमित हैं.''
दरअसल, 1992 से टीचर की ज्वाइनिंग में ट्रेंड रहने की अनिवार्यता हटा दिए जाने से समस्या बढ़ी है. बहरहाल, राज्य सरकार ने विश्व बैंक की मदद से टीचर्स को ट्रेंड करने की योजना बनाई हैं. हालांकि यह सब अभी प्रक्रिया में है और लंबा सफर तय किया जाना है. ऐसे में ट्रेंड टीचरों की नियुक्ति की राह आसान नहीं होगी.