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फट पड़ने को बेताब है एक और रक्षा महाघोटाला

सेना में छोटे हथियारों के दुनिया के बड़े ठेके की खातिर अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों के बीच छिपे तौर पर लॉबी का खेल शुरू हो चुका है.

संदीप उन्नीथन
  • नई दिल्‍ली,
  • 24 सितंबर 2012,
  • अपडेटेड 6:14 PM IST

भारतीय थल सेना दिसंबर में पांच विदेशी कंपनियों की असाल्ट राइफलों का परीक्षण करेगी. नई राइफलों की खरीद पर 2,500 करोड़ रु. खर्च किए जाने हैं. यह ठेका काफी अहम है क्योंकि इससे तय होना है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना के करीब 12 लाख जवान अगले दो दशकों तक कौन-सा हथियार लेकर चलेंगे.

सेना ने जब नवंबर, 2011 में इसके लिए टेंडर की घोषणा की थी तो इससे अंतरराष्ट्रीय हथियार कारोबारी एकदम से हरकत में आ गए थे. कुल 65,678 मल्टी कैलिबर असाल्ट राइफलों (एमसीएआर) के शुरुआती ऑर्डर के अलावा टेंडर में ऐसी 1,00,000 लाख राइफलों की इंडियन ऑर्डनेंस फैक्ट्रीज में उत्पादन के लिए लाइसेंस की मांग भी की गई है जिससे यह सौदा कुल 1 अरब डॉलर (5,500 करोड़ रु.) का हो जाता है. यह आधिकारिक रूप से हाल के समय में छोटे हथियारों की खरीद का दुनिया का सबसे बड़ा सौदा है.

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रूस, अमेरिका, यूरोप और इज्राएल के हथियार निर्माता सक्रिय हो गए हैं. दिल्ली में हथियारों के एजेंट इस सौदे से मिलने वाली दलाली का हिसाब लगाने लगे हैं जो 100 से 250 करोड़ रु. के बीच तक हो सकती है. दूसरे घोटालों की तुलना में यह कहीं नहीं ठहरता, फिर भी इसे एक बड़ी रकम तो माना ही जा सकता है.

दो खिलाड़ी राइफल ठेके के लिए जुगत भिड़ाने में लग गए हैः अभिषेक वर्मा और भूपिंदर सिंह. 43 वर्षीय अभिषेक वर्मा 2006 के वार-रूम लीक मामले में फिलहाल जेल में है. वह 2009 से ही एसआइजी सॉर इंक के लिए काम कर रहा है, लेकिन उसका कारोबार उसकी साझेदार एंका नेयाक्सु देखती रही हैं. एंका एसआइजी इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.

इस खेल का दूसरा खिलाड़ी 64 वर्षीय भूपिंदर है जो गुपचुप काम करता है और अभी तक जांच रडार पर नहीं आया है. सेना के हलकों में ‘टस्की’ के रूप में मशहूर भूपिंदर दक्षिणी दिल्ली के वसंत विहार में रहता है. कई साल से भूपिंदर गृह मंत्रालय में छोटा खिलाड़ी बना हुआ है. वह मुख्यतः छोटे साजो-सामान के ठेकों के माध्यम से पुलिस और अर्धसैनिक बलों की जरूरतों को पूरा करने में लगा है. गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय, दोनों ने रक्षा सौदों में एजेंटों की सेवा लेने पर रोक लगा रखी है. सैद्धांतिक रूप से तो सारा मोल-तोल सीधे साजो-सामान बनाने वाले मूल मैन्युफैक्चरर से किया जाता है. लेकिन यह भी सच है कि हमेशा इन निर्देशों पर अमल नहीं किया जाता है.

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दिल्ली के एक हथियार एजेंट ने बताया, “अभिषेक तड़क-भड़क वाला, हंगामेदार और सामने आकर काम करने वाला है. यही उसकी बर्बादी का कारण है. उसकी पार्टियों में सिंगल माल्ट पानी की तरह बहती है. यूरोपीय एस्कॉट्र्स उसके मेहमानों की खिदमत में लगी रहती है.” एजेंट के मुताबिक, टस्की सयाना कारोबारी है, “उसके वसंत विहार स्थित मकान पर गुपचुप से पार्टियां आयोजित होती हैं.”

देश में छोटे हथियारों का आयात एकदम मामूली है. इस पर कोलकाता स्थित सरकारी इंडियन ऑर्डनेंस फैक्ट्रीज का एकाधिकार है. 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुआ आतंकी हमला और वामपंथी उग्रवाद के साथ लड़ाई ग्लोबल हथियार उत्पादकों के लिए अप्रत्याशित फायदा लेकर आई है. गृह मंत्रालय का बजट काफी बढ़ गया है.

गृह मंत्रालय ने अगले पांच साल में राज्य पुलिस और अर्धसैनिक बलों के हथियारों और संचार व्यवस्था को उन्नत करने के लिए 38,000 करोड़ रु. की आधुनिकीकरण की योजना बनाई है. इसमें से 13,000 करोड़ रु. सात अर्धसैनिक बलों और बाकी रकम राज्यों की पुलिस पर खर्च की जाएगी. बुल्गारिया की एके-47, इज्राएल की टवोर्स और जर्मनी की एमपी-5 सब-मशीन गनों का बड़े पैमाने पर आयात शुरू हो गया है.

भूपिंदर ने 2009 के आसपास इटली की हथियार निर्माता कंपनी बरेटा के भारत में प्रतिनिधित्व का काम संभाला. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, “हम आधिकारिक रूप से तीन साल से बरेटा के साथ काम कर रहे हैं. जब हम गृह और रक्षा मंत्रालयों के साथ काम करते हैं तो किसी तरह की गलत गतिविधि से कोसों दूर रहते हैं.” हालांकि,  भूपिंदर के बेटे उदय सिंह का कहना है कि उन्होंने आवेदन तो किया है, लेकिन अभी उन्हें भारत में ऑफिस खोलने के लिए रिजर्व बैंक से इजाजत नहीं मिली है.

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टस्की और उदय सिंह ही ऐसे हथियार एजेंट थे जो 17 और 20 मई को हरियाणा के भोंडसी स्थित सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के केंद्र में हथियारों के परीक्षण के दौरान मौजूद थे. इस परीक्षण में मौजूद कुछ अधिकारियों ने बताया कि इस दौरान भूपिंदर बीयर और सॉफ्ट ड्रिंक के साथ बीएसएफ अधिकारियों की खुशामद में लगे थे.

14 फरवरी, 2011 को पहली बार रक्षा हलकों में उन्हें लेकर कान खड़े हुए और उन पर गौर किया गया. बरेटा ने गृह मंत्रालय के साथ 34,377 कार्बाइन के करीब 200 करोड़ रु. के सौदे पर दस्तखत किए. अब टस्की का नाम सुरेश नंदा और मोहिंदर सिंह साहनी जैसे बड़े हथियार डीलरों की कतार में शामिल हो गया है. नंदा का नाम सीबीआइ ने बराक मिसाइल सौदे में एक एजेंट के तौर पर लिया है और साहनी को भी सीबीआइ ने क्रासनोपोल गाइडेड मिसाइल युद्ध सामग्री के मामले में एजेंट बताया है.

इस ठेके को जिस तेजी से अंजाम दिया गया उसे देखकर सबको हैरत हो रही थी. ठेके से लेकर आपूर्ति तक में तीन साल से भी कम समय लगा जो भारत की सुस्त अफसरशाही के स्वभाव के एकदम उलट है. उदाहरण के लिए मुंबई हमले के बाद आए टेंडर के बावजूद अभी तक नेशनल सिक्योरिटी गॉर्ड (एनएसजी) को हेलमेट या बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं मिल पाए हैं. बरेटा सौदे को लेकर कई विवाद (बॉक्स देखें) और विरोधियों की शिकायतें सामने आईं हैं.

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विरोधियों का कहना था कि उन्हें गलत ढंग से परीक्षण से बाहर रखा गया. कुल ऑर्डर में से 2,374 कार्बाइन में खामी पाए जाने के बावजूद बीएसएफ इस सौदे पर आगे बढ़ी है. इंडिया टुडे  ने भूपिंदर और उदय से रिश्तों और टेंडर में पाई जाने वाली खामियों को लेकर बरेटा को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी थी.

कंपनी के प्रवक्ता ने इसके जवाब में कहा, “बरेटा भारतीय प्रशासन की ‘गोपनीयता की शर्तों से बंधी हुई है. हमें टेंडर प्रक्रिया में शीर्ष पर रहने के बाद भारत सरकार से ठेका मिला है.”

बरेटा ने आखिरकार भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी, जिसे देखकर वर्मा आपा खो बैठे. अब उनकी नजर में एक बड़ा हथियार सौदा था, सेना के लिए असाल्ट राइफल का टेंडर जिसे पाने के लिए वर्मा बेताब था. 2007 में एनएसजी के लिए 500 एसआइजी 551 असाल्ट राइफलों की खेप देकर एसआइजी ने गृह मंत्रालय में अपना कदम रख दिया था.

5 से 7 दिसंबर तक वर्मा ने एसआइजी के मालिक माइकल ल्यूक और सीईओ रॉन कोहेन की दिल्ली में मेजबानी की. उसने हर जगह उनके भव्य स्वागत की व्यवस्था की ताकि वे यह समझ सकें कि वर्मा की दिल्ली के राजनैतिक हलकों में गहरी पकड़ है. अगले दो दिनों तक वर्मा ने उन्हें नेताओं, अफसरशाहों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों से मिलवाया.

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ल्यूक और कोहेन इस दौरान एम.एम. पल्लम राजू से भी मिले थे जो करीब आठ साल से रक्षा राज्यमंत्री हैं. उनकी दो दिवसीय यात्रा में खासकर एक जगह जाना काफी रोचक हैः मि. गांधी, सांसद (गांधी परिवार के वंशज) से उनके निवास पर मुलाकात की.’ यह साफ नहीं है कि यह रहस्यमय मि. गांधी’ कौन हैं. इंडिया टुडे ने दोनों सांसद गांधियों--राहुल और वरुण--से संपर्क किया. राहुल गांधी के प्रवक्ता ने बताया कि उस दिन राहुल दिल्ली में जरूर थे, लेकिन ऐसी कोई मुलाकात तय नहीं थी और न ही ऐसी कोई मुलाकात हुई है. वरुण ने भी इस बात से इनकार किया कि वह ल्यूक या कोहेन से मिले हैं.

ल्यूक और कोहेन ने स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के आइजी मेजर जनरल आर.के. राणा से भी मुलाकात की. यह गुप्त अर्धसैनिक बल है जो भारत की एक्सटर्नल इंटेलीजेंस एजेंसी रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ) के तहत काम करती है. वर्मा ने कंपनी के अमेरिकी आकाओं को दिसंबर, 2011 को भेजे एक ई-मेल में बताया था, “एसएफएफ भारत का प्रमुख अर्धसैनिक संगठन है. वे जो भी खरीदेंगे,  बाकी भी उसे ही खरीदेंगे.”

एसआइजी और बरेटा के अलावा तीन अन्य ग्लोबल फर्म ने सेना के टेंडर में रुचि दिखाई हैः अमेरिका की कोल्ट डिफेंस, चेक रिपब्लिक की सेस्का ब्रयोफ्का और इज्राएल की इज्राएली वेपन इंडस्ट्रीज (आइडब्ल्यूआइ). बताया जाता है कि इज्राएली कंपनी को लंदन के एक बड़े हथियार डीलर का समर्थन है. एसआइजी दिग्गजों के भारत दौरे के कुछ समय बाद ही जनवरी में गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और गृह तथा रक्षा सचिवों के पास कई अज्ञात स्रोतों से शिकायतों की झड़ी लग गई. शिकायत में 36 प्वाइंट साइज में लिखा थाः “बीएसएफ  के लिए 9 एमएम कारबाइन, एक और घोटाला.” इसमें आगे लिखा था, “बरेटा-भूपिंदर सिंह (टस्की)”, गृह मंत्रालय ने किसी एजेंट को किसी हथियार उत्पादक का प्रतिनिधित्व और लॉबी करने की इजाजत कैसे दी. इस तरह की शिकायत के सभी सात पेजों पर एक ही पंक्ति लिखी थीः “गृह मंत्रालय में कामयाबी हासिल करने के बाद अब बरेटा का अंतिम निशाना रक्षा मंत्रालय होगा.”

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कहा जा रहा है कि इन शिकायतों की बौछार के पीछे वर्मा का हाथ है. जनवरी अंत तक वह खुद परेशानियों से घिर गया. आकर्षक सौदे के विफल रहने से चिढ़े वर्मा के पूर्व साझेदार न्यूयॉर्क के एक वकील सी. एडमंड एलन ने सीबीआइ, रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर ज्यूरिख स्थित स्विस हथियार कंपनी रीनमेटल एयर डीफेंस (आरएडी) के 5,30,000 डॉलर (3 करोड़ रु.) का भुगतान करने के बारे में जानकारी दी. उसने इस सौदे के सबूत के तौर पर कुछ दस्तावेज भी साथ भेजे थे. आरएडी के अधिकारी कथित रूप से वर्मा से यह चाहते थे कि 2011 में उनको जिस ब्लैक लिस्ट में शामिल कर दिया गया था उससे बाहर किया जाए. 2009 में आर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) के घूस मामले में लिप्त पाए जाने पर उन्हें ब्लैक लिस्टेड किया गया था.

हालांकि, आरएडी ने भारत में ऐसे किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में शामिल होने के आरोपों का खंडन करते हुए अपने बयान में कहा था, “ये आरोप झूठे और निराधार हैं.” वर्मा और नेयाक्सू पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए और सीबीआइ ने उन्हें जून में गिरफ्तार कर लिया. सीबीआइ ने चार्जशीट दाखिल नहीं की जिससे वर्मा को जमानत मिल गई. उसे सीबीआइ ने फिर जालसाजी के लिए गिरफ्तार किया और 60 दिन की अनिवार्य अवधि के भीतर वह फिर चार्जशीट दाखिल करने में नाकाम रही. वर्मा फिर रिहा हो गया.

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आखिरकार उसे रक्षा मंत्रालय के गुप्त दस्तावेज और खरीद योजना रखने के आरोप में सरकारी गोपनीयता कानून के तहत 30 अगस्त को फिर गिरफ्तार कर लिया गया. वर्मा के वकील विजय अग्रवाल ने इन आरोपों को गलत बताया. उन्होंने मेल टुडे से 29 जुलाई को कहा था, “मैं यही कह सकता हूं कि हर दिन कुछ-न-कुछ नया कहा जा रहा है जो निश्चित रूप से कोर्ट की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश है. यह टिप्पणी करने के लिए सही समय नहीं है.”

सेना के टेंडर के बारे में भी यह आरोप लगाया गया है कि यह बेरेटा को लाभ पहुंचाने के हिसाब से तैयार किया गया था. दुनिया की दो सबसे बड़ी राइफल निर्माता कंपनियां बेल्जियम की एफएन हरस्टाल और जर्मनी की हेकलर ऐंड कोच 2011 में हुई नीलामी में शामिल नहीं हुईं क्योंकि उन्हें इसमें जीत का भरोसा नहीं था.

सेना ने आजादी के बाद सिर्फ दो बार अपनी राइफलों को बदला है—1962 के चीन युद्ध के बाद और 1999 में करगिल युद्ध के आसपास. मौजूदा स्वदेशी 5.56 एमएम के इनसास राइफलों को लेकर सेना अपना असंतोष जताती रही है. सेना 7.62 एमएम एके-47 राइफलों से भी बेहतर राइफल चाहती है.

इन एके-47 राइफलों का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में आतंकवाद से निबटने में होता रहा है. सेना को मिले नए हथियार से 7.62 एमएम और 5.56 एमएम,  दोनों तरह की गोलियां दागी जा सकती हैं. इससे सैनिक किसी लक्ष्य को साधने के लिए बैरल बदलने में सक्षम होता है. इस क्षमता के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. कनवर्जन किट के साथ हर राइफल करीब 3,000 यूरो (करीब 2,00,000 रु.) कीमत की पड़ती है जबकि ओएफबी में बने इनसास राइफल की कीमत सिर्फ 35,000 रु. होती है.

यह अभी साफ  नहीं हो पाया है कि यह टेंडर जारी करने से पहले सेना ने आखिर किस तरह की डील की है. इस ठेके को लेकर खुद सेना में भी अलग-अलग राय है. एक जनरल ने कहा, “दुनिया में कोई भी सेना ऐसे महंगे और जटिल हथियार का इस्तेमाल नहीं करती. इससे सैनिकों पर बोझ और बढ़ेगा, साथ ही इसे ढोना भारी साबित होगा.

मल्टी-कैलिबर हथियार आम तौर पर कमांडो जैसे विशेषज्ञ यूनिट को ही सप्लाई किए जाते हैं.” एसआइजी ने अपने भारतीय कारोबार से वर्मा और नेयाक्सू को बाहर कर दिया है और अब वह सेना के ठेके की दौड़ में शामिल हो गई है, जिसके लिए परीक्षण जल्दी ही किया जाना है. वर्मा के मैदान में न रहने का मतलब है कि दुनिया के सबसे बड़े बंदूक ठेके के लिए प्रतिस्पर्धा सिर्फ एक अहम खिलाड़ी तक सिमट गई है.

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