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आखिर क्या अब बच पाएगी गंगा?

आंदोलन हुए, बड़ी योजनाएं बनीं और करोड़ों रु. खर्च होने के बाद भी गंगा मैली ही रह गई. गंगा की रक्षा के लिए अनशन कर रहे संत निगमानंद की जान जाने के बाद क्या सरकार और लोग बचा पाएंगे गंगा.

प्रवीन कुमार भट्ट
  • हरिद्वार,
  • 21 जून 2011,
  • अपडेटेड 12:49 PM IST

अतिक्रमण, प्रदूषण और खनन से गंगा नदी को मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृ सदन, हरिद्वार के  34 वर्षीय संत निगमानंद की देहरादून स्थित हिमालयन हॉस्पिटल में मौत हो गई.

निगमानंद जब अंतिम सांस ले रहे थे तब दिल्ली में केंद्र सरकार गंगा की सफाई के लिए विश्व बैंक से 4,500 करोड़ रु. की सहायता पाने में व्यस्त थी. यह मौत उस राज्‍य में हुई जहां के मुख्यमंत्री खुद स्पर्श गंगा अभियान के प्रणेता हैं और स्पर्श गंगा नाम से किताबों की एक सीरीज भी लिख चुके हैं.

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दरअसल, निगमानंद की मौत के बाद स्पर्श गंगा से लेकर क्लीन गंगा जैसे सरकारी अभियानों और गंगा का ओढ़ना-बिछौना करने वाले नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की असलियत भी सामने आ गई है.

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने, कुंभ क्षेत्र में गंगा के किनारे तेजी से हो रहे अतिक्रमण को नियंत्रित करने, खनन से नष्ट हो रही गंगा की प्राकृतिक सुंदरता को बचाने और कुंभ क्षेत्र में लगे स्टोन क्रशरों को हटाने के साथ ही गंगा में सीधे छोड़े जा रहे सीवरों को बंद करने की मांग करने वाले साधु को सरकार ने यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया. निगमानंद चूंकि सीधे गंगा से करोड़ों रु. की चांदी काट रहे खनन माफिया से लोहा ले रहे थे, इसलिए गंगा के नाम पर यश कमाने वाले पर्यावरणविद् भी निगमानंद के अनशन पर मौन ही रहे.

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गंगा में अवैध खनन के खिलाफ  हरिद्वार के मातृ सदन में इस साधु का अनशन 19 फरवरी से चल रहा था. 68 दिनों तक तो स्पर्श गंगा अभियान चलाने वाली सरकार को इस गंगा पुत्र की याद नहीं आई लेकिन जैसे ही लगा कि अनशन स्थल पर निगमानंद की मौत हो सकती है, सरकार ने 27 अप्रैल को निगमानंद को गिरफ्तार कर जिला चिकित्सालय हरिद्वार में भर्ती करा दिया जहां वे 2 मई, 2011 तक कोमा में जाने से पहले तक भर्ती रहे.

मातृ सदन का आरोप है कि 27 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती किए जाने के बाद निगमानंद की हालत में लगातार सुधार हो रहा था. लेकिन खनन माफिया ने अस्पताल प्रशासन के साथ मिलकर उन्हें इंजेक्शन से जहर दिया जिस कारण वे कोमा की हालत में पहुंच गए 11 मई को मातृ सदन की ओर से हरिद्वार नगर कोतवाली में तहरीर देकर हिमालयन स्टोन क्रेशर अजीतपुर (हरिद्वार) के मालिक ज्ञानेश कुमार और हरिद्वार जिला चिकित्सालय के सीएमएस भटनागर सहित अन्य व्यक्तियों पर निगमानंद की मौत की साजिश रचने का आरोप लगाया गया.

गंगा के किनारे यह सब तब होता रहा जबकि राज्‍य के दो सबसे कद्दावर कैबिनेट मंत्री हरिद्वार में निवास करते हैं. नगर विकास मंत्री मदन कौशिक तो हरिद्वार सीट का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. खाद्यान्न मंत्री दिवाकर भट्ट भी हरिद्वार से जुड़े हैं. जानकार तो इस बात का भी इशारा करते हैं कि राज्‍य के एक कैबिनेट मंत्री खुद ही खनन के कारोबार से खुले जुड़े हुए हैं.

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निगमानंद इससे पहले भी 2008 में गंगा को माफिया को चंगुल से छुड़ाने के लिए 68 दिनों तक आमरण अनशन कर चुके थे. कुंभ क्षेत्र को खनन मुक्त करने और बेजा कब्जे के खिलाफ  लड़ाई के चलते मातृ सदन और स्वामी निगमानंद जहां प्रशासन के लिए सिरदर्द बने हुए थे वहीं वे माफिया की आंख में भी खटक रहे थे.

निगमानंद के पार्थिव शरीर को तीन दिनों तक अंतिम दर्शन के लिए रखने के बाद बृहस्पतिवार को भू समाधि दे दी गई. निगमानंद को यह अनशन इसलिए करना पड़ा था क्योंकि गंगा के नाम पर योजनाएं बहुत बनीं लेकिन काम नहीं हो पाया. वर्तमान में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर 540 छोटी-बड़ी परियोजनाएं प्रस्तावित, निर्माणाधीन और कार्यरत हैं.

गंगा की सफाई के लिए 1990 में शुरू किए गए गंगा एक्शन प्लान के तहत दो दशकों में लगभग 960 करोड़ रु. खर्च किए गए जबकि 2010 से शुरू किए गए गंगा क्लीन प्लान के तहत अगले दस साल में 2,000 करोड़ रु. खर्च किए जाने हैं. इतनी भारी-भरकम राशि खर्च होने और लगातार हो रहे आंदोलनों के बावजूद गंगा अपने हाल पर रो रही है.

गंगा की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हरिद्वार में दस किमी के दायरे में गंगा में छह बड़े और एक दर्जन छोटे नाले सीधे छोड़े जा रहे हैं. हरिद्वार में प्रतिदिन 20 टन जीवांश, 37.5 टन ठोस अपशिष्ट सहित 24 हजार ट्रिलियन लीटर मल-जल सीधे गंगा में बहाया जा रहा है.

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हर की पौड़ी के निकट सुभाष घाट पर गिरने वाला एस-1 नाला प्रतिदिन 2.4 मिलियन टन कचरा लाता है. सीधे गंगा में छोड़ा जा रहा अपशिष्ट जल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संशोधित अपशिष्ट जल के मानकों से छह गुना अधिक प्रदूषित रहता है.

दरअसल, गंगा की लड़ाई लड़ रहे निगमानंद के पीछे न तो गंगा के नाम पर सियासत करने वाले नेता खड़े दिखाई दिए और न ही गंगा के लिए चलाए गए आंदोलनों के अगुआ मठाधीश. निगमानंद की उपेक्षा कहीं न कहीं खनन माफियाओं को मिल रहे संरक्षण की ओर भी इशारा करती है.

कांग्रेस और संत समाज के हमलों से घिर चुकी राज्‍य सरकार ने आनन-फानन में पहले सीआइडी जांच के आदेश दिए फिर मामला तूल पकड़ता देख सीबीआइ जांच की सिफारिश कर दी. लेकिन उन सवालों का क्या होगा जिनके लिए निगमानंद की मौत हुई है?

आंदोलन हुए, पर गंगा मैली

*पिछले महीने उमा भारती ने समग्र गंगा के नाम से आठ दिन अनशन कर पनबिजली परियोजनाएं बंद करने और चल रही परियोजनाओं के असर की पड़ताल की मांग की.
*उत्तराखंड सरकार के स्पर्श गंगा कार्यक्रम की ब्रांड एंबेसेडर हेमा मालिनी हैं.
*केंद्र सरकार ने गंगा की सफाई के लिए गंगा एक्शन प्लान और गंगा क्लीन प्लान चलाए हैं.
*केंद्र सरकार ने गंगा की बेहतरी के लिए गंगा रीवर बेसिन अथॉरिटी का गठन भी किया है.
*गंगा को बचाने के नाम पर हाल के सालों में गंगा रक्षा मंच, गंगा सेवा मिशन, गंगा बचाओ आंदोलन और समग्र गंगा जैसे गैर-सरकारी अभियान भी चले हैं.
*जून, 2009 में गोमुख से उत्तरकाशी तक 125 किमी क्षेत्र को बांधों से मुक्त रखने की मांग लेकर पर्यावरणविद् जी.डी. अग्रवाल 16 दिनों का अनशन कर चुके हैं.
*गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने से पहले बाबा रामदेव के नेतृत्व में गंगा रक्षा मंच का गठन हुआ था.
*स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नेतृत्व में गंगा बचाओ आंदोलन चलाया गया. इस दौरान विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जागरण मंच जैसे संगठन भी गंगा के नाम से उद्वेलित नजर आए थे.
*निगमानंद ने गंगा को खनन माफिया से बचाने के लिए अपने प्राण दे दिए.
*लगातार आंदोलनों के बावजूद गंगा की रक्षा से जुड़े मुद्दे जस के तस हैं.

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