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‘देर आये, दुरुस्त आये’, बेहद आकषर्क पैकिंग में मजेदार स्वाद का दावा करने वाले और आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले गुटखे पर आखिरकार राजधानी दिल्ली में मंगलवार से प्रतिबंध लग गया. सेहत को होने वाले नुकसान के मद्देनजर इस मीठे जहर पर 11 राज्य पहले ही प्रतिबंध लगा चुके हैं.
गुटखे पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयासरत डॉक्टरों के गैर सरकारी संगठन ‘डॉक्टर्स फॉर यू’ के सदस्य और मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉ पंकज चतुर्वेदी ने बताया, ‘हम चाहते हैं कि गुटखे से सेहत को होने वाले नुकसान को देखते हुए इस पर पूरे देश में प्रतिबंध लगा दिया जाए. हमने पिछले साल उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में गुटखे पर प्रतिबंध के लिए जनहित याचिका दाखिल की थी. लेकिन दिल्ली का नतीजा इन राज्यों से पहले मिल गया.’
बहरहाल उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि दिल्ली ने गुटखे पर प्रतिबंध का फैसला बहुत देर से लिया. 11 राज्यों में गुटखा प्रतिबंधित हो चुका है. जबकि देश की राजधानी को यह कदम सबसे पहले उठा कर उदाहरण पेश करना चाहिए था. उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि मुंह के कैंसर के करीब 90 फीसदी मामलों का कारण गुटखा है.’
डॉ चतुर्वेदी ने कहा, ‘हर तीसरा व्यक्ति गुटखे का सेवन करता है और ज्यादातर मामलों में इसका नतीजा मुंह, गले, फेफड़े या पेट के कैंसर के तौर पर सामने आता है. विकसित देश बनने के लिए कदम उठा रहे भारत की युवा आबादी के इस तरह बीमारियों की गिरफ्त में आने से देश का विकास तो प्रभावित होगा ही, साथ ही अर्थव्यवस्था और श्रम बल पर भी असर होगा.’
दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्य को राजस्व पर तरजीह देते हुए राजधानी में तमाम गुटखा उत्पादों पर प्रतिबंध का ऐलान किया. प्रतिबंध के अंतर्गत इन उत्पादों की बिक्री, निर्माण, वितरण, परिवहन, प्रदर्शन और भंडारण पर पूर्ण रोक रहेगी. गुटखा की बिक्री करते पाए जाने पर उसे जब्त किया जा सकता है. उसकी बिक्री करने वाली दुकान का लाइसेंस, गुटखा निर्माता का उत्पादन लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है.
इसके अलावा दिल्ली क्षेत्र में इसका परिवहन करने पर ट्रांसपोर्टर पर भी जुर्माना होगा. डॉ चतुर्वेदी ने कहा, ‘केवल प्रतिबंध लगाने से ही काम नहीं चलेगा. आज धूम्रपान पर प्रतिबंध लगने के बावजूद लोग खुलेआम सिगरेट पीते दिखते हैं. प्रतिबंध को सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए और इसमें मीडिया और समाज का सहयोग भी बहुत जरूरी है.’
गुटखे पर प्रतिबंध के लिए अभियान चला रहे गैर सरकारी संगठन ‘सलाम बॉम्बे फाउंडेशन’ की कार्यक्रम निदेशक देविका चड्ढा ने बताया, ‘गुटखा 10 साल से कम उम्र के बच्चे भी खाते हैं. खास बात यह है कि गुटखे के नाम से लेकर पूरा प्रचार बच्चों को लक्ष्य कर किया जाता है. शुरू में बच्चे शौक से खाते हैं और बाद में वह उसके आदी हो जाते हैं. यह स्लो प्वॉइजन धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालने लगता है.’
देविका ने कहा, ‘संविधान में भी बच्चों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी गई है और इसीलिए हमने गुटखे पर प्रतिबंध की मांग शुरू की. तंबाकू उनकी सेहत पर विपरीत प्रभाव डालते हैं. मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार, महाराष्ट्र, केरल, राजस्थान, सहित 11 राज्यों में इस पर प्रतिबंध लग चुका है. हिमाचल प्रदेश में दो अक्तूबर से और गुजरात में जल्दी ही इस पर प्रतिबंध लग जाएगा. सभी राज्यों ने अलग-अलग सजा और जुर्माना तय किया है.’
जंगपुरा स्थित सरकारी पॉलीक्लीनिक में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रजनी दत्ता ने बताया कि गुटका मूल रूप से निकोटिन होता है. इससे गर्भवती महिला में बच्चे का विकास बाधित होता है. गुटखे में पाए जाने वाले तत्व शरीर के लगभग हर अंग में पाए जाने वाले सीवाईपी 450 एंजाइम को प्रभावित करते हैं. सीवाईपी 450 एंजाइम हार्मोन खास कर यौन हार्मोन एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टीरॉन के तथा कोलेस्ट्राल और विटामिन के उत्पादन में अहम भूमिका निभाते हैं. वह हार्मोन भी गुटखे के तत्वों से प्रभावित होते हैं जो शरीर के विषले तत्वों को विघटित करते हैं.
उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की कैंसर अनुसंधान इकाई ने जिस सुपारी (एरेका नट) को कैंसरकारक बताया है वह गुटखा और पान मसाला का मुख्य अवयव होती है. इसमें मिलाई जाने वाली पान की पत्तियों और अन्य सामग्रियों से भी कैंसर होने की आशंका होती है.
गुटखे में पाए जाने वाले विषैले और धात्विक तत्वों का शरीर मे एकत्र होना एक धीमे जहर की तरह है जो घातक हो सकता है. गर्भवती महिलाओं में गर्भनाल से हो कर सीसा, कैडमियम, क्रोमियम आदि नवजात शिशु में पहुंच सकते हैं. पान के मामूली अंश का उपयोग भी गर्भवती महिलाओं के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इससे प्रसव के बाद बच्चे का वजन भी सामान्य से कम हो सकता है.