
ममता बनर्जी क्या फिर पाला बदलने की योजना बना रही हैं? भाजपा ऐसा ही सोचती है, क्योंकि 16 जनवरी को पश्चिम बंगाल मंत्रिमंडल के पहले फेरबदल में उन्होंने अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को मंत्रिमंडल छोड़ने की चुनौती दी और उसके मंत्रियों के विभागों में कटौती कर दी.
कांग्रेस के मंत्री मनोज चक्रवर्ती से संसदीय कार्य और लघु उद्योग विभाग छीन लिए गए हैं. अब उन्हें खाद्य-प्रसंस्करण विभाग के राज्य मंत्री पद से संतोष करना होगा. चक्रवर्ती घोषित रूप से ममता-विरोधी और बेहरामपुर के कांग्रेसी सांसद अधीर चौधरी के घनिष्ठ माने जाते हैं. रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने बनर्जी से फोन पर बहसबाजी की थी.
प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के पूर्व अध्यक्ष और मंत्री मानस भुईंया के खिलाफ चक्रवर्ती के विषवमन ने प्रदेश कांग्रेस को दो-फाड़ कर दिया है. भुईंया और वर्तमान पीसीसी अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य गठबंधन को जारी रखने के पक्ष में हैं जबकि अधीर चौधरी और रायगंज की सांसद दीपा दासमुंशी जैसे अन्य नेता गठबंधन तोड़ने का समर्थन कर रहे हैं.
बनर्जी और चक्रवर्ती के बीच कोलकाता स्थित सरकारी गेस्ट हाउस-इंदिरा भवन के पुनःनामकरण और कुछ कॉलेज के प्रधानाचार्यों के साथ दुर्व्यवहार को लेकर सार्वजनिक रूप से कहा-सुनी भी हो चुकी है. राज्यसभा में लोकपाल बिल की असफलता के तुरंत बाद यह घटनाक्रम हुआ. केंद्र में सत्ताधारी गठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने लोकपाल विधेयक का विरोध कर सरकार को शर्मसार किया था.
इन हालातों ने भाजपा को यह मानने के लिए प्रोत्साहित किया है कि संप्रग सरकार के साथ ममता के गिने-चुने दिन ही हैं, हालांकि वह खुद भी ममता बनर्जी को दो बार कैबिनेट मंत्री बनाकर खामियाजा भुगत चुकी है. प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष तथागत राय कहते हैं, ''यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बनर्जी पाला बदलने की कोशिश करें. वे हमेशा से एक सियासी पेंडुलम रही हैं.'' उनका कहना है, ''वे इसलिए नाराज हैं क्योंकि केंद्र उनकी लोकलुभावन योजनाओं के लिए पैसे नहीं दे रहा है.'' वे यह भी जोड़ते हैं कि ''वे खुद को चौतरफा घिरी केंद्र सरकार से अलग और पाक-साफ दिखना चाहती हैं.'' हालांकि राय इस संभावना से इनकार करते हैं कि वे अगले चुनावों से पहले भाजपा से गठबंधन करेंगी क्योंकि वे उस मुस्लिम समर्थन के छिटकने का खतरा नहीं उठा सकतीं जो 2009 के आम चुनाव और 2011 के विधानसभा चुनावों में उनके दमदार प्रदर्शन में मददगार रहा है.
राजनैतिक विश्लेषक शिवाजी प्रतिम बसु का कहना है, ''1997 में कांग्रेस से नाता तोड़ने के बाद ममता बनर्जी ने प्रदेश से कांग्रेस का नामोनिशान मिटा डालने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है.'' हालांकि वे यह जोड़ना भी नहीं भूलते कि टीएमसी और कांग्रेस गठबंधन नहीं तोड़ेंगी.
केंद्र में 19 सांसदों वाली टीएमसी खासा दखल रखने की स्थिति में है. ममता बनर्जी ने भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव करा लिया. तीस्ता समझौते का विरोध करके अपनी लोकप्रियता में इजाफा किया. वे लोकपाल बिल को रोक पाने में कामयाब हो गईं. बसु कहते हैं, ''वे बहुत जोखिम वाला खेल खेल रही हैं.'' दासमुंशी बताती हैं, ''तृणमूल का समर्थन बढ़ाने के लिए बनर्जी कांग्रेस को तबाह करने की कोशिश में लगी हैं. मगर वे इस तथ्य से अनजान हैं कि एक कमजोर कांग्रेस मजबूत माकपा का ही मार्ग प्रशस्त करेगी.''
किनारे लगा दिए जाने के बावजूद कांग्रेस नेताओं को एहसास है कि गठबंधन टूटने से पार्टी का ही नुकसान होगा. इस एहसास की वजह से कांग्रेस के हाथ बंधे हुए हैं. यह बात ममता बनर्जी से बेहतर और कौन भला जान सकता है.