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अल्पसंख्यक: सियासी मोहरा बने मुसलमान

अल्पसंख्यक बहुल जिलों को मिली केंद्रीय सहायता के इस्तेमाल में ज्यादातर राज्य फिसड्डी साबित हो रहे हैं.

सियासी मोहरा बने मुसलमान सियासी मोहरा बने मुसलमान
पीयूष बबेले
  • नई दिल्‍ली,
  • 22 अक्टूबर 2011,
  • अपडेटेड 5:02 PM IST

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले मुसलमानों को पटाने की राजनीति तेज हो गई है. मुख्यमंत्री मायावती ने 17 सितंबर को अल्पसंख्यकों और खासकर मुसलमानों को आबादी के मुताबिक आरक्षण देने का पत्र प्रधानमंत्री के नाम भेज दिया और जरूरत पड़ने पर अपनी तरफ से संविधान संशोधन करने की छूट भी दे दी, वैसे अन्य मौकों पर बसपा संविधान संशोधन की बात को सीधे बाबा साहेब आंबेडकर पर हमले के तौर पर देखती है. जवाब में कांग्रेस ने खासी तेजी दिखाई और पत्र को ढाल के तौर पर बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (एमएसडीपी) के तहत उत्तर प्रदेश सरकार को दिए गए 1,000 करोड़ रु. के आंकड़ों को आगे कर मुस्लिम राजनीति का नया अध्याय शुरू कर दिया.

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केंद्र ने आंकड़ों के जरिए पलटवार किया कि मायावती सरकार मुसलमानों के विकास के लिए मिली यह रकम तो पहले खर्च कर ले, उसके बाद ही अल्पसंख्यकों के विकास की नई तजबीज पेश करे. इतना ही नहीं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने याद दिलाया कि केंद्र पहले से ही मुसलमानों को आरक्षण देने पर विचार कर रहा है. लेकिन आंकड़ों की लंबी लिस्ट ने कांग्रेस के हवाई मुसलमान प्रेम की कलर्ई भी खोलकर रख दी. उत्तर प्रदेश में जहां एमएसडीपी का 42 फीसदी पैसा खर्च हुआ है तो वहीं कांग्रेस शासित दिल्ली में एमएसडीपी का एक पैसा खर्च नहीं हुआ. बिहार में महज 28 फीसदी रकम खर्च हुई. आंकड़ों को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि मुसलमान चुनावी बहस के केंद्र में जरूर हैं, लेकिन विकास के पन्ने पर उनकी जगह अब भी हाशिये पर है.

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अल्पसंख्यकों के समुचित विकास के लिए देश में 20 राज्यों के 90 ऐसे जिलों की पहचान की गई जहां अल्पसंख्यक बड़ी संख्या में रहते हैं. इन जिलों में आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों को बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार का अल्पसंख्यक मामलों को मंत्रालय बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (एमएसडीपी) में संचालित करता है. एमएसडीपी में सबसे अधिक 21 जिले उत्तर प्रदेश के हैं. इन्हीं जिलों के विकास के लिए कार्यक्रम के तहत चालू वित्त वर्ष में 1015.70 करोड़ रु. की रकम केंद्र ने आवंटित की है. इस रकम में से 642 करोड़ रु. की रकम राज्य सरकार को जारी की जा चुकी है, लेकिन जून, 2011 तक प्रदेश सरकार महज 273 करोड़ रु. का इस्तेमाल कर पाई. यानी सिर्फ 42.60 फीसदी रकम का इस्तेमाल हुआ. इस बारे में उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक विभाग के प्रमुख सचिव बी.एम. मीणा ने कहा, ''प्रदेश में एमएसडीपी के तहत काम तेजी से चल रहा है. 13 जगहों पर तो पॉलीटेक्निक और आइटीआइ का निर्माण हो रहा है. वित्त वर्ष के अंत तक ज्यादातर काम निबटा लिया जाएगा.'' वहीं समाज कल्याण विभाग में अल्पसंख्यक मामलों के विशेष सचिव तनवीर जफर अली ने कहा, ''केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय अब तक जून के आंकड़े दिखा रहा है. हकीकत यह है कि प्रदेश में 600 करोड़ रु. से अधिक की रकम इस मद में खर्च हो चुकी है. वित्त वर्ष के अंत तक प्रदेश 100 फीसदी काम पूरा करके दिखा देगा.'' इस रकम से 21 जिलों में 82,130 इंदिरा आवास, 959 स्वास्थ्य केंद्र,  9,099 आंगनवाड़ी केंद्र, 56 स्कूल इमारतें, 20 आइटीआइ सहित अन्य विकास कार्य कराए जाने हैं. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के मुताबिक 30 जून तक इन जिलों में में 53,796 इंदिरा आवास, 408 स्वास्थ्य केंद्र, 3,695 आंगनवाड़ी केंद्र बनवाए गए. लेकिन इस दौरान एक भी प्रस्तावित स्कूल और आइटीआइ की इमारत तैयार नहीं हुई. 21 जिलों में खीरी, बाराबंकी, बरेली, बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, जे.पी. नगर, सिद्धार्थ नगर, शाहजहांपुर, बुलंदशहर, रामपुर, सहारनपुर, बलरामपुर, गाजियाबाद, बहराइच, बदायूं, मुरादाबाद, लखनऊ, पीलीभीत, मेरठ और श्रावस्ती शामिल हैं.

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उधर, मुसलमानों के नए मसीहा के तौर पर उभरे नीतीश कुमार के बिहार के 7 जिले एमएसडीपी के दायरे में हैं और यहां 523 करोड़ रु. केंद्र सरकार ने आवंटित किए हैं. लेकिन विकास की राह पर चल रहे बिहार के अल्पसंख्यक बहुल 7 जिलों में एमएसडीपी का महज 28.12 फीसदी पैसा ही खर्च किया जा सका. बिहार का आंकड़ा उत्तर प्रदेश से कहीं नीचे है. खराब आंकड़ों पर बिहार राष्ट्रीय जनता दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा, ''ये आंकड़े साबित करते हैं, नीतीश कुमार के सुशासन की हकीकत क्या है. मुसलमानों के हितों को सरकार ने पूरी तरह ताक पर रख दिया है.'' वहीं राज्य के अल्पसंख्यक मामलों के प्रमुख सचिव अमीर सुभानी ने कहा, ''केंद्र ने 421 करोड़ रु. की आवंटित राशि दिखाई है, जबकि यह सिद्धांत रूप में जारी की जाने वाली राशि है. हकीकत में प्रदेश को करीब 210 करोड़ रु. ही जारी किए गए हैं. इस राशि में से हम 150 करोड़ रु. यानी 75 फीसदी रकम का इस्तेमाल कर चुके हैं.'' इस संबंध में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के सचिव से कई बार बात करने की कोशिश की गई, लेकिन व्यस्तता का हवाला देकर उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.

अन्य यूपीए शासित राज्यों पर नजर डालें तो हरियाणा में 54.70 फीसदी, महाराष्ट्र में 29.66 फीसदी, केरल में 7.24 फीसदी, दिल्ली में शून्य, अरुणाचल प्रदेश में 19.58 फीसदी और जम्मू-कश्मीर में 74.39 फीसदी रकम खर्च की गई है. जम्मू-कश्मीर को छोड़ दें तो बाकी कांग्रेस शासित राज्यों में एमएसडीपी का पैसा खर्च करने में खासी सुस्ती नजर आ रही है. ज्यादातर राज्यों में इस मद में दिखार्ई जा रही सुस्ती, इशारा करती है कि इन जिलों को ऐसे ही बनाए रखने पर सरकारों की खास नजर है, ताकि चुनाव-दर-चुनाव यह मुद्दा जिंदा बना रहे.

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