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स्वर्णिम इतिहास संजोए सोनपुर मेले में आधुनिकता के रंग

स्वर्णिम इतिहास के बावजूद विश्व प्रसिद्ध एवं एशिया के सबसे बड़े पशु मेले मतलब बिहार के सोनपुर (हरिहर क्षेत्र) मेले में कालांतर में बदलाव देखा जा रहा है.

सोनपुर मेला सोनपुर मेला
आईएएनएस
  • पटना,
  • 14 नवंबर 2011,
  • अपडेटेड 6:30 PM IST

स्वर्णिम इतिहास के बावजूद विश्व प्रसिद्ध एवं एशिया के सबसे बड़े पशु मेले मतलब बिहार के सोनपुर (हरिहर क्षेत्र) मेले में कालांतर में बदलाव देखा जा रहा है. अब इस मेले में पशुओं के अलावा दुकानों और खेल-तमाशे के कार्यक्रमों की भी भरमार हो गई है. इस मेले में ग्रामीण जीवन के सुख-दुख तो नजर आ ही रहे हैं साथ ही आधुनिकता के रंग भी दिख रहे हैं. विदेशियों के लिए यह मेला विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

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पिछले बुधवार से प्रारम्भ इस मेले में इस वर्ष हाथियों की संख्या कम हुई है तो पक्षियों का बाजार गुलजार है. एक तरफ लोकनृत्य का जलवा है तो 2.50 लाख में बिकने आए हीरा-मोती बैल का जोड़ा दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

एक ओर जहां पशु मेले की ओर से लोग लोकगीत बिरहा गाते-सुनते आए हैं तो दूसरी ओर थियेटरों, नौटंकियों तथा कई मीना बाजारों में आधुनिकता के गीतों की धूम है. थियेटरों के कारण शाम होते ही मेले की रौनक बढ़ जाती है. मेले में पक्षियों और कुत्तों का बाजार भी गुलजार है. मेले के पक्षी बाजार में लालमुनी, कजरी, लॉपर, कॉकटेल नाम के पक्षी बिक रहे हैं तो विभिन्न प्रजातियों के कुत्ते यहां एक हजार से 30,000 रुपये तक के मूल्य में आसानी से उपलब्ध हैं.

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कुत्तों को लेकर आए रामसुंदर प्रसाद ने आईएएनएस को बताया कि वह पिछले चार वषरें से इस मेले में कुत्तों को लेकर आते हैं. इस विश्व प्रसिद्ध मेले में उनके कुत्तों के अच्छे खरीददार मिल जाते हैं इस कारण इस वर्ष भी वह विविध प्रजातियों के कुत्ते लेकर आए हैं.

इधर, हाथी मेले में इस वर्ष रौनक कम देखी जा रही है। पिछले वर्ष यहां 35 हाथी दान हुए थे जबकि इस वर्ष इनकी संख्या 25 तक आ गई है. वन संरक्षण अधिनियम के लागू होने के बाद मेले में हाथियों की संख्या क्रमश: कम हुई है. वैसे हाथी की खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद अब मेले में हाथियों का दान लेने और देने का चलन है. एक बुजुर्ग हाथी विक्रेता कहते हैं कि पूर्व में इस मेले की रौनक हाथी का बाजार ही होता था परंतु आज इक्के-दुक्के हाथी ही आ रहे हैं. वह कहते हैं कि न अब हाथी के शौकीन रह गए हैं और न ही उनका खर्च उठाने की ललक वाले लोग बचे हैं.

किवंदंतियों के मुताबिक सोनपुर मेले से ही मौर्यवंश के संस्थापक चंद्रगुप्त ने एक साथ 500 हाथी खरीदकर सेल्यूकस को भेंट किए थे. कहा जाता है कि आखिरी मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर ने भी एक सफेद हाथी यहीं से खरीदा था. सोनपुर मेले का आकर्षण हीरा-मोती बैलों की जोड़ी बनी हुई है. उत्तर प्रदेश के बलिया से लाए गए इन बैलों की कीमत 2.50 लाख रुपये रखी गई है. बैलों की जोड़ी के मालिक कामेश्वर सिंह कहते हैं कि घी के मूल्य में वृद्धि हो गई है तो बैलों की कीमत भी तो बढ़ेगी. वह कहते हैं कि वह पिछले वर्ष भी यहां बैल बेचकर गए थे. वैसे वह यह भी कहते हैं कि अब ग्राहक कम हो रहे हैं.

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इधर, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के मुख्य मंच पर प्रतिदिन भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के गीत एवं नाट्य प्रभाग के निबंधित संस्थाओं के माध्यम से कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए जा रहे हैं. बिहार के अलावा चार राज्यों के आमंत्रित कलाकारों की प्रस्तुतियों को लोगों की खूब वाहवाही मिल रही है. उल्लेखनीय है कि बुधवार को एक महीने तक चलने वाले इस मेले का उद्घाटन किया गया था. अनुमान के मुताबिक इस वर्ष 25 लाख से अधिक लोगों के मेले में पहुंचने का अनुमान है. आने वाले लोगों को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसलिए जिला प्रशासन और मेला प्राधिकार लगातार चौकसी बरत रहे हैं.

प्राधिकार के अध्यक्ष रमई राम कहते हैं कि विदेशी पर्यटकों की सुविधा को खास तवज्जो दी जा रही है. पर्यटन विभाग द्वारा 20 स्वीस कॉटेज बनवाए गए हैं. ये झोंपड़ीनुमा कॉटेज अंदर आधुनिक और सुविधा सम्पन्न हैं. बिहार राज्य पर्यटन निगम के प्रबंधक (टूर एंड ट्रेवल) गजेंद्र सिंह ने बताया कि ये सभी कॉटेज लगातार विदेशियों द्वारा बुक कराए जा रहे हैं. वह कहते हैं कि अब तक इन कॉटेजों में जापान, जर्मनी, इटली और फ्रांस के पर्यटक रह चुके हैं.

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