
जब नितिन गडकरी ने 27 अक्तूबर को हिमाचल प्रदेश में दो रैलियों को संबोधित किया तो लोगों की मौजूदगी बेहद कम दिखी. राज्य के वरिष्ठ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता शांता कुमार ने खतरे की आहट को भांपते हुए तुरंत लालकृष्ण आडवाणी को सूचित किया कि भंवर में उलझे पार्टी अध्यक्ष को चुनाव प्रचार से दूर ही रखा जाए.
शांता कुमार की दलील थी कि गडकरी की मौजूदगी पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान पर पानी फेर रही है. बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार को शिमला में गडकरी के बचाव में मीडिया के सवालों का जवाब देने में पसीने छूट गए थे. आयकर विभाग और कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय बीजेपी अध्यक्ष की कंपनियों की जांच कर रहे हैं. वैसे शांता कुमार ने कोशिश तो की कि कांग्रेसी नेता वीरभद्र सिंह और रॉबर्ट वाड्रा पर हमला बोल लोगों का ध्यान कांग्रेस की ओर भटकाया जाए, लेकिन पासा उलटा पड़ गया और उन्हें गडकरी का कवच बनने के लिए ही जूझना पड़ा.
इस तरह बीजेपी अध्यक्ष अपनी ही पार्टी के लिए बोझ बन गए हैं. 28 अक्तूबर को देर रात दिल्ली के 13, तीन मूर्ति लेन में गडकरी के निवास पर उन्हें हौले से समझाया जा रहा था कि वे अभी चुनाव प्रचार की बजाए अपने नाम पर उछाली जा रही कालिख को साफ करने पर ध्यान दें. उस बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता सुरेश सोनी और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के साथ राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली और राजनाथ सिंह भी मौजूद थे.
29 अक्तूबर को गडकरी सुकून तलाशने अपने होमटाउन नागपुर रवाना हो गए. इस तरह बिलासपुर और सोलन में 30 अक्तूबर से शुरू होने वाली रैलियों के सिलसिले में हिमाचल प्रदेश का उनका दौरा रद्द कर दिया गया.
55 वर्षीय बीजेपी अध्यक्ष ने अपने शहर में समर्थकों को संबोधित करते हुए खुद को जमीनी संघर्ष का मसीहा साबित करते समय लफ्जों की खूब कारीगरी दिखाई. हवाई अड्डे पर करीब 2,000 समर्थक अपनी एकजुटता जताने के लिए उनकी अगवानी करने पहुंचे थे. गडकरी ने धमकी दी कि कांग्रेस के साथ मिलकर जिन मीडिया वालों ने उनके खिलाफ 'गलत और फर्जी’ आरोप लगाए हैं, वे उन्हें कोर्ट में ले जाएंगे. दरअसल वे अगले लोकसभा चुनाव में नागपुर से खड़े होने की अपनी योजनाओं की ओर इशारा कर रहे थे.
बेशक, उन्होंने इस बात की भनक तक नहीं लगने दी कि आरएसएस के उनके गुरुओं ने उन्हें खबरदार किया है और नागपुर में उनके होने की खास वजह मीडिया को कठघरे में खड़ा करना नहीं, बल्कि अपने बिजनेस दस्तावेजों को दुरुस्त करना, कानूनी सलाह लेना और अपनी समस्याओं के घेरे से बाहर निकलना है. गडकरी के एक नजदीकी सहायक ने कहा, ''इन आरोपों से अध्यक्ष जी को बेहद चोट पहुंची है. संकट की इस घड़ी में वे अपने लोगों के बीच रहना चाहते थे. इसलिए उन्होंने नागपुर वापस आने का फैसला किया.”
गडकरी के पूर्ति ग्रुप में ऐसी कंपनियों का निवेश दिखाया गया है जो मौजूद ही नहीं हैं, क्योंकि कंपनियों के रजिस्टर में दिया गया पता फर्जी है. कई कंपनियों के पते मुंबई के झुग्गी इलाकों में दिखाए गए हैं. बीजेपी अध्यक्ष पर शक की सुई इसलिए भी टिकी है क्योंकि उनकी कंपनी के प्रमुख निवेशकों में उनके ड्राइवर और ज्योतिषी के नाम शामिल हैं.
आरोप है कि उन्होंने अपनी फर्जी कंपनी और निदेशकों का इस्तेमाल काली कमाई को सफेद करने और काले धन को छिपाने के लिए किया. उनकी कंपनियों की जांच शुरू हो गई है. आयकर विभाग ने 30 अक्तूबर को मुंबई, पुणे, नागपुर और कोलकाता समेत कई जगह उन कंपनियों के बारे में पता लगाने के लिए जांच-पड़ताल की जिन्होंने पूर्ति ग्रुप में निवेश किया.
नागपुर के संघ मुख्यालय के सूत्रों के मुताबिक, आरएसएस गडकरी के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले उन्हें एक मौका देना चाहता है कि वे अपने नाम पर लगे सारे आरोपों को साफ करें. इसी के तहत उन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका दिया गया है जो 2012 के दिसंबर में पूरा हो रहा है. लेकिन उनकी दूसरी पारी इस बात पर टिकी है कि वे आरोपों के इस दलदल से निजात पाते हैं या नहीं.
आरएसएस के एक नेता ने इंडिया टुडे को बताया, ''फिलहाल गडकरी की दूसरी पारी की संभावना न के बराबर है. समझा जा रहा है कि अगर जांच के बाद गडकरी पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद साबित होते हैं, तो वे अपने पद पर बने रहेंगे, नहीं तो उन्हें इस्तीफा देना होगा. यहां तक कि आरएसएस भी उलझन में है, क्योंकि सवालों के कटघरे में खड़े गडकरी अपने बिजनेस के मामलों पर सफाई नहीं पेश कर पाए हैं.”
एक चीज तय है: गडकरी की 'राजनैतिक और सामाजिक उद्यमी की पहचान’ पर काली परछाइयां मंडरा रही हैं. उन पर महाराष्ट्र में मंत्री रहते हुए अपनों को रेवडिय़ां बांटने और बदले में उनसे मदद लेने का आरोप लगा है. वैसे, सार्वजनिक तौर पर बीजेपी नेता उनके पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं, पर अंदरूनी तौर पर ज्यादातर लोग उनसे किनारा कर रहे हैं.
पार्टी के एक नेता ने मखौल उड़ाते हुए पुराने दिनों की ओर इशारा करते हुए कहा, ''पोस्टर चिपकाने वाले को लाए थे नागपुर से पार्टी अध्यक्ष बनाने, वह खुद ही पोस्टर बन गया.” युवा गडकरी नागपुर में आरएसएस के लिए पोस्टर चिपकाने और पर्चे बांटने का काम करते थे.
पुरानी दुश्मनी सिर उठाने लगी है. 2009 में बीजेपी के कुछ खास केंद्रीय नेता गडकरी को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे. उन्हें यह बात आसानी से हजम नहीं हुई थी कि एक अनजाने-से नेता को आरएसएस की ओर से अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठा दिया जाए.
ऐसे समय में जब बीजेपी को अपना समय यूपीए के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को तेज करने, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनावों पर ध्यान देने और लोकसभा चुनावों की तैयारी करने में लगाना था, उसे अपनी ऊर्जा अपने अध्यक्ष गडकरी को संभालने में खर्च करनी पड़ रही है. गडकरी को जो थोड़ी-बहुत सहानुभूति मिल रही है उसका कारण सिर्फ इतना है कि उनके खिलाफ भड़काई गई इस चिनगारी को शायद पार्टी के अंदर से ही किसी ने सुलगाया है. बीजेपी के एक प्रवक्ता ने बताया, ''यही वजह है कि उन्हें अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए कहा गया है.”
इसी बीच, तकरीबन तय दिख रहा है कि बीजेपी नया अध्यक्ष नियुक्त करेगी. अगर ऐसा हुआ तो जो बैठक दिसंबर में होने वाली थी, वह संभवत: अगले साल जनवरी या फरवरी तक बढ़ा दी जाएगी. गडकरी के संभावित उत्तराधिकारी पर चर्चा शुरू हो गई है. संकेत यही हैं कि आरएसएस की दाल नहीं गलने वाली और इस बार उसके लिए अपने किसी आदमी को पेश करना मुश्किल होगा.
पार्टी के एक केंद्रीय नेता ने कहा, ''आरएसएस कुछ आजमाने की स्थिति में नहीं है, जैसा कि गडकरी को खड़ा करने के समय उसने किया था. इसका वह अधिकार निश्चित तौर पर खत्म हो चुका है. इसके अलावा लोकसभा चुनावों के मद्देनजर किसी नए शख्स को पार्टी प्रमुख के रूप में बिठाना अच्छा नहीं होगा.”
ऐसे में जेटली ही अकेले विकल्प दिख रहे हैं जिन्हें आरएसएस और लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज समर्थन दे रही हैं, जिन्हें आडवाणी और नरेंद्र मोदी का वरदहस्त भी हासिल है. पार्टी के एक सदस्य के अनुसार, ''मुश्किल यह है कि अगर इन सभी नेताओं के पास समर्थक हैं तो उतने ही विरोधी भी हैं.”
ऐसे में राजनाथ जैसी परिपक्व शख्सियत को सामने लाना सबसे अच्छा होगा, क्योंकि किसी भी खेमे से उनके विरुद्ध कोई सुगबुगाहट नहीं है. पार्टी के एक सदस्य ने बताया, ''पार्टी में उनसे किसी को कोई खतरा नहीं. वे विवाद में नहीं हैं और इस दौड़ का हिस्सा न होना ही उनके पक्ष में जा रहा है.”
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर के पास भी सारी योग्यताएं हैं, पर उनके पास अपने कार्यभार हैं. मध्य प्रदेश में 2013 में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं और पार्टी के लिए चौहान को केंद्र में भेजना अच्छा नहीं होगा. पार्रिकर गोवा में मुख्यमंत्री पद पर अभी-अभी बैठे हैं. पार्टी के एक नेता का मानना है, ''अगले अध्यक्ष के लिए कुर्सी इंतजार कर रही है.” लेकिन अपने नाम पर उड़ाए गए छींटों को साफ करने में मशगूल मौजूदा अध्यक्ष ऐसा कतई नहीं मानते.