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दस साल पहले पहली बार दूरसंचार के क्षेत्र में भिड़ने वाले भारत के दो सबसे आक्रामक और रोमांचक उद्यमी मुकेश अंबानी और सुनील मित्तल एक बार फिर 4जी के क्षेत्र में लड़ाई के लिए तैयार हैं. एयरटेल ने मई, 2012 में कोलकाता और बंगलुरू में भारत की पहली 4जी सेवा का आरंभ किया. अभी 4जी सेवा केवल ब्रॉडबैंड और वायरलेस डेटा के लिए है. इसमें वॉयस टेलीफोनी यानी इस पर बातचीत की अनुमति नहीं है. 4जी में 3जी के मुकाबले लगभग चौगुनी या 2जी से 16 गुनी ज्यादा गति से डेटा भेजा जा सकता है.
मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज 2012 की दूसरी छमाही में भारत भर में अपनी 4जी सेवाएं शुरू कर सकती है. अंबानी अकव्ले ऐसे ऑपरेटर हैं, जिन्हें 4जी सेवाओं के लिए भारत के सभी 22 सर्किलों में लाइसेंस मिला है. भारती एयरटेल की उपस्थिति आठ प्रमुख सर्किलों में है, जिनमें दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू और कोलकाता शामिल हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि 4जी की डेटा सेवाओं में ही टेलीकॉम उद्योग का भविष्य है.
स्वतंत्र दूरसंचार सलाहकार महेश उप्पल कहते हैं, ''भारत जैसे देश में, जहां काफी कम फिक्स्ड लाइन टेलीफोन हैं, इंटरनेट सेवाओं को केवल वायरलेस ब्रॉडबैंड के माध्यम से ही फैलाया जा सकता है.''
भारत में तेज गति की डेटा सेवाओं, खासकर वीडियो के लिए मांग तो है ही. दूरसंचार क्षेत्र के पूर्व उद्यमी और संसद सदस्य राजीव चंद्रशेखर कहते हैं, ''कव्बल और सैटेलाइट टीवी की पहुंच भारत में मोबाइल संपर्क की तुलना में बहुत कम है. संभावना भरे इस बाजार के लिए 4जी एकदम उपयुक्त टेक्नोलॉजी है.''
भारत में 80 करोड़ से अधिक मोबाइल ग्राहक हैं, लेकिन टेलीविजन की पहुंच केवल 45 करोड़ लोगों तक है. वीडियो फाइलों में बफरिंग और धीमी गति से अपलोड होने जैसी दिक्कतें 4जी सेवाओं में नहीं होंगी. पर अन्य विशेषज्ञ 4जी सेवाओं से होने वाली आय की संभावनाओं के बारे में ज्यादा आशावादी नहीं हैं.
स्वतंत्र दूरसंचार सलाहकार रवि विश्वेश्वरैया प्रसाद कहते हैं, ''भारत में दूरसंचार कंपनियों की 85 प्रतिशत आय ध्वनि सेवाओं यानी बातचीत से आती है. इनकी केवल 15 फीसदी आय डेटा सेवाओं से है, जिसमें एसएमएस भी शामिल है.'' प्रसाद का मानना है कि अंबानी और मित्तल ने 4जी के ऐसे व्यापार में कदम रखा है, जिसमें जोखिम ज्यादा है क्योंकि आय के स्त्रोत ज्यादा बड़े नहीं हैं. लेकिन वे अंबानी की महत्वाकांक्षा के बारे में कहते हैं कि ''नई पहल करने वाले को हमेशा ही बाकी लोगों के मुकाबले बढ़त मिल ही जाती है.''
सरकार ने जब जून, 2010 में 4जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की, उस समय न तो अंबानी और न ही मित्तल ने इसे ज्यादा गंभीरता से लिया. अंबानी ने इस नीलामी के तुरंत बाद हिमाचल फ्यूचरिस्टिक्स के प्रमोटर महेंद्र नाहटा की कंपनी इन्फोटेल में 95 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदकर 4जी के क्षेत्र में प्रवेश किया.
इन्फोटेल अकेली ऐसी कंपनी थी, जिसे पूरे भारत में सेवाएं देने के लिए 4जी लाइसेंस 13,000 करोड़ रु. से कुछ कम में मिला था. अंबानी ने इन्फोटेल की हिस्सेदारी खरीदने के लिए 4,800 करोड़ रु. का भुगतान किया. बताया जाता है कि लाइसेंस की रकम का भुगतान भी उन्होंने ही किया. मित्तल की एयरटेल ने चार सर्किलों में स्पेक्ट्रम पाने के लिए लगभग 3,500 करोड़ रु. चुकाए. मई, 2012 में एयरटेल ने क्वालकॉम की 4जी सेवाओं के लिए बनी भारतीय इकाई में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी 1,000 करोड़ रु. से कुछ कम में खरीदी, जिसके पास दिल्ली, मुंबई, हरियाणा और कव्रल की चार आकर्षक सर्किलों में स्पेक्ट्रम है. इससे यह संकेत मिला कि मित्तल 4जी में गंभीरता से उतरने वाले हैं.
मित्तल और मुकेश अंबानी के बीच दिसंबर 2002 और जून, 2005 के बीच की एक संक्षिप्त अवधि में लड़ाई हो चुकी है. दिसंबर, 2002 में मुकेश अंबानी ने रिलायंस इन्फोकॉम की शुरुआत की, जो पिता की मृत्यु के बाद उनका पहला उद्यम था. उस समय एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि मुकेश अंबानी के नेतृत्व में रिलायंस इन्फोकॉम ''भारत में एक डिजिटल क्रांति की शुरुआत करेगी.''
अंबानी सीडीएमए तकनीक का प्रयोग कर इस क्षेत्र में उतरे, जिससे मित्तल सहित सारे जीएसएम ऑपरेटर परेशान हो गए. लेकिन मुकेश अंबानी 2005 में दूरसंचार क्षेत्र से अलग हो गए, जब व्यापार के बंटवारे के तहत रिलायंस इन्फोकॉम उन्होंने अपने भाई अनिल अंबानी को सौंप दिया. 2जी और फिर 3जी की लड़ाई अनिल के जिम्मे छोड़ दी गई. डिजिटल क्रांति की परतें अभी सात साल बाद भी खुल ही रही हैं. और मुकेश अंबानी एक बार फिर कतार में सबसे आगे खड़े हैं.
संभव है कि 4जी सेवाओं का एक बड़ा आधार बनने में समय लग जाए. फिलहाल, 4जी सेवाएं देने के लिए उपलब्ध उपकरण काफी कम हैं. उप्पल कहते हैं, ''4जी का इकोसिस्टम अलग-अलग फ्रीक्वेंसी के आधार पर बंटा है. इन उपकरणों की उपलब्धता और कीमत अब भी एक चुनौती है.'' दुनियाभर में 4जी सेवा 2,500 मेगाहर्ट्ज के बैंड में दी जाती है. लेकिन भारत में इस सेवा के लिए 2,300 मेगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी दी गई है. लिहाजा आयातित उपकरणों को भारतीय परिस्थितियों में ढालना आसान नहीं होगा.
चंद्रशेखर इकोसिस्टम के बारे में ज्यादा चिंतित नहीं हैं. वे कहते हैं, ''एक बार 4जी शुरू हो जाने के बाद इकोसिस्टम अपने-आप बन जाएगा.'' भारती एयरटेल ने जिन स्थानों पर 4जी सेवाएं शुरू कर दी हैं, वहां वह अभी ही उचित कीमत वाले 4जी टैबलेट दे रही है. उप्पल उम्मीद करते हैं कि हार्डवेयर निर्माताओं और 4जी सेवा कंपनियों के बीच मजबूत संबंध बनेंगे. 4जी सेवाएं टैबलेट, डोंगल, (लैपटॉप में लगाया जाने वाला उपकरण) और कंप्यूटर के माध्यम से दी जा सकती हैं.
रिलायंस इन्फोकॉम ने 2002 में उपभोक्ताओं को अपनी सेवाओं के प्रति आकर्षित करने के लिए सीडीएमए हैंडसेट काफी सस्ते में बेचे थे. लगभग निश्चित है कि मुकेश अंबानी अपनी 4जी सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए कुछ उसी तरह की रणनीति पर चलेंगे. ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि रिलायंस खुद ही उपकरणों का निर्माण कर सकती है. इसने 4जी उपकरणों के लिए एरिक्सन के साथ भी तालमेल किया है. वही ऑपरेटर 4जी की लड़ाई जीतेगा, जो इसके लिए सबसे सस्ता इकोसिस्टम दे पाएगा.
यह लड़ाई 4जी सेवा देने वाली कंपनी की ओर से उपलब्ध सामग्रियों (कंटेंट) पर भी निर्भर होगी. मुकेश अंबानी ने राघव बहल के टीवी18 और नेटवर्क 18 में 1,700 करोड़ रु. का जो निवेश किया, वह कंटेंट उपलब्ध कराने के क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने का एक सचेत कदम था.
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राइ) की सिफारिशों ने भी 4जी के क्षेत्र में एक नया मोड़ ला दिया है. ये सिफारिशें इसके पूर्व अध्यक्ष जे.एस. सरमा के 13 मई को पद छोड़ने से ठीक पहले अप्रैल में रखी गईं. ट्राइ ने सुझाव दिया है कि स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल को उदार बनाया जाए, ताकि 4जी का प्रयोग वॉयस टेलीफोनी के लिए भी हो सके. सरकार ने अभी यह सिफारिश स्वीकार नहीं की है.
यह विवादास्पद है क्योंकि 3जी के मुकाबले 4जी स्पेक्ट्रम बेहद सस्ता इसी वजह से बेचा गया कि 4जी का प्रयोग वॉयस टेलीफोनी के लिए करने की अनुमति नहीं थी. आलोचकों का तर्क है कि इस तरह स्पेक्ट्रम का उदारीकरण दूरसंचार क्षेत्र में पिछले दरवाजे से नए खिलाड़ियों को प्रवेश देता है. अगर ये सिफारिशें स्वीकार कर ली गईं तो मुकेश अंबानी वॉयस टेलीफोनी देने में मित्तल के साथ मुकाबला कर सकेंगे.
मित्तल और मुकेश अंबानी दोनों के लिए जरूरी है कि उनकी 4जी सेवा सफल हो. वॉयस टेलीफोनी में गलाकाट प्रतिस्पर्धा के चलते मित्तल के मुनाफे पर दबाव है. तथ्य यह है कि अगर स्पेक्ट्रम की रीफार्मिंग पर ट्राइ की सिफारिशें मान ली गईं तो उन्हें 40,000 करोड़ रु. का भुगतान करना होगा. अंबानी के तेल गैस कारोबार पर पेट्रोलियम मंत्रालय से अभूतपूर्व दबाव है. हालांकि अंबानी अब भी वित्तीय रूप से मजबूत साबित हो सकते हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज 1 लाख करोड़ रु. की नकदी के विशाल भंडार पर बैठी है. लेकिन कठिन परिस्थितियों के बावजूद लाभ कमा रहे मित्तल जबरदस्त प्रतिस्पर्धा करेंगे. इससे उपभोक्ताओं को सस्ती, तेज और बेहतर गुणवत्ता वाली सेवाओं का लाभ मिलेगा.