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यहां लोग टंकियों पर चढ़ रहे हैं. पूरे जिले से खाद गायब है. क्या जवाब दें किसानों को? हमें जूते खाने पड़ रहे हैं. शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को...' बूंदी जिले के कांग्रेसी विधायक सी.एल. प्रेमी जिला परिषद की बैठक में अधिकारियों पर जमकर बरस रहे थे, बिना रुके हुए...'खाद की आपूर्ति अगर पूरी हुई है तो फिर किल्लत क्यों?' सत्तारूढ़ दल के विधायक के इस गुस्से में पूरे राजस्थान के किसानों की विवशता और उनका आक्रोश देखा जा सकता है, जो खाद, खासकर यूरिया की किल्लत को लेकर उपजा है. हालत यह है कि तरह-तरह की अफवाहें भी फैल रही हैं. कमोबेश पूरे प्रदेश का किसान छला हुआ-सा महसूस कर रहा है.
जनवरी में अकेले बूंदी में 6,000 टन खाद की जरूरत है और स्टॉक शून्य. जिला प्रमुख राकेश बोयत ने आरोप जड़ दिया, 'बूंदी के साथ अन्याय हुआ है. उसके हिस्से की खाद टोंक और भीलवाड़ा को दे दी गई.' हाड़ौती के दूसरे जिलों कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ के अलावा शेखावाटी और सुदूर गंगानगर तक में यही हालात हैं. किसान सड़कों पर मुट्ठियां तान रहे हैं. झालरापाटन में किसानों ने जाम लगा दिया. बारां में बीते डेढ़ हफ्ते से किसानों का धरना-प्रदर्शन चल रहा है. वहां के किसानों ने तो कृषि उपनिदेशक बलवंत सिंह पर कालाबाजारी करने वाले डीलरों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने की मांग कर डाली. सिंह सफाई देते हैं, 'समय पर खाद नहीं आने से किसानों को परेशानी हुई है.' किसानों को खेत से ज्यादा पसीना एक-एक कट्टा खाद के लिए सड़क पर बहाना पड़ रहा है.
11 जनवरी 2012: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
बीकानेर जिले की श्रीडूंगरगढ़ तहसील के एक किसान रामचंद्र बाना सवाल करते हैं, 'किसान कब तक कालाबाजारी में यूरिया खरीदकर अपनी फसल बचाए? हालात नहीं सुधरे तो फसलें चौपट हो जाएंगी.' सीकर जिले में भुवाला के एक किसान दुर्गा चौधरी का तो मानना है कि रेल के जरिए आने वाली यूरिया के रैक जयपुर से लगते समय दूसरे जिलों को ज्यादा भेज दिए जाते हैं, सीकर में कम, जबकि उनके जिले में गेहूं के साथ सरसों और मेथी के लिए यूरिया की काफी जरूरत है.
04 जनवरी 2012: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
रबी की गें, जौ, चना और मेथी जैसी फसलों के लिए अक्तूबर से जनवरी के तीसरे सप्ताह तक यूरिया की जरूरत रहती है. हाड़ौती के चार जिलों को मिलाकर कोटा संभाग में कुल छह लाख हेक्टेयर में गेहूं की फ सल है. इसके लिए तकरीबन एक लाख टन यूरिया की जरूरत है और अब तक दसेक हजार टन ही आई है. खाद की दुकानों और सहकारी समितियों में नाममात्र को आने वाली यूरिया तुरंत फुर्र हो जाती है. बूंदी में तो एक किसान खाद के लिए पानी की टंकी पर चढ़ गया. आलम यह है कि पुलिस पहरे में खाद बिक रही है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर में जरूर 15,000 मी टन मांग के मुकाबले 10,350 मी टन यूरिया आ चुकी है.
कृषि विभाग के अफसर खाद के संकट से इनकार करते हैं पर खाद बंटने वाली जगहों पर लगी लंबी कतारें दूसरी तस्वीर पेश कर रही हैं. पिछले दिनों गंगानगर के जैतसर में एक व्यापारी के यहां यूरिया पहुंचने की खबर फैली तो किसानों का हुजूम उमड़ पड़ा. पुलिस बुलानी पड़ गई. घड़साना में किसानों ने प्रदर्शन का ऐलान किया, तब जाकर अफसर उपलब्धता बढ़ाने की कोशिशों में जुटे. वहां एक रैक पहुंचते ही पुलिस को अपनी मौजूदगी में खाद बंटवानी पड़ी.
28 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
गंगानगर के अनूपगढ़ क्षेत्र में चक 4 एपीएम के किसान केवलसिंह की बात सब कुछ समझने के लिए काफी हैः 'मुझे अपने गें के लिए बीस थैले यूरिया चाहिए था पर डीलर सिर्फ पांच थैले दे रहा है. ऐसे में मेरी फसल का भगवान ही मालिक है.' हनुमानगढ़ जिले में पीलीबंगा के किसान पृथ्वीराज पूनिया एक और पहलू जोड़ते हैं: 'यूरिया के लिए किसानों को उन व्यापारियों के पास जाना पड़ रहा है, जो दूसरी चीजें भी खरीदने पर मजबूर करते हैं.'
खाद के दाम भी ज्यादा वसूलने के मामले आ रहे हैं. राजस्थान सरपंच संघ संघर्ष समिति के प्रदेश संयोजक अर्जुनसिंह गौड़ का आरोप है कि 'यूरिया 350 से 400 रु. प्रति बैग बेची जा रही है. कृषि महकमे ने पिछले दिनों कालाबाजारी के कुछ मामले पकड़े थे. लेकिन उसके बाद कार्रवाई ठप होने से कंपनियों, वितरकों और डीलरों की मनमानी जारी है.'
21 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
अफसरों की लापरवाही का आलम देखिए. पिछले दिनों गंगानगर के अतिरिक्त जिला कलेक्टर आरएस लांबा ने यूरिया के शुरुआती संकट के बाद कृषि विभाग के उपनिदेशक कृष्ण कुमार को खाद के रैक मंगवाने के लिए जिला कलेक्टर के जरिए राज्य सरकार को चिट्ठी लिखने को कहा. हफ्ते भर बाद समीक्षा हुई तो पता चला कि ऐसा कोई पत्र व्यवहार किया ही नहीं गया है. हालांकि इसी महकमे के संयुक्त निदेशक वीएस नैण दावा करते हैं कि जनवरी महीने में गंगानगर और हनुमानगढ़ दोनों जिलों में 20,000-20,000 मी. टन यूरिया की मांग रहेगी और अगले कुछ दिनों में दोनों जिलों में 12,000-12,000 मी. टन खाद पहुंच जाएगी. पर उनका यह दावा किसानों में ज्यादा भरोसा जगाता नहीं दिखता.
आखिर क्यों होती है हर मौसम में खाद की इतनी किल्लत? कृषि विशेषज्ञ राजेश कु मार इसे बड़े व्यापारियों और राजनेताओं की मिलीभगत का नतीजा बताते हैं. बूंदी के कृषि विस्तार अधिकारी रमेश चंद जैन कहते हैं, 'इस बार आपूर्ति कम है.' पिछले दिनों कृभको का संयंत्र भी कुछ दिन बंद रहा था, जिससे किल्लत और बढ़ गई. जैन के मुताबिक, 'ज्यादा उपज की जुगत में कुछ किसान डबल डोज भी लगा रहे हैं तो देहात के कुछ लोग भी कालाबाजारी के धंधे से जुड़ गए हैं.'कोटा जोन के संयुक्त रजिस्ट्रार (सहकारी समितियां) आर.के. जारेड़ा के मुताबिक, 'कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ की 522 ग्राम सेवा सहकारी समितियों को रबी सीजन में 60,000 मी. टन यूरिया की जरूरत थी पर गें की बुआई बढ़ने से मांग बढ़ गई.'
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
सूचनाओं के अनुसार भारी मात्रा में यूरिया बंदरगाहों पर अटकी है. रेलवे जरूरत के मुताबिक रैक उपलब्ध नहीं करा रहा. धरतीपुत्रों का भरोसा जगे तो कैसे? वे मेहनत से तैयार फसल को खेत में मरते देखते हैं, तो गुस्से से भर उठते हैं. यह गुस्सा किस बड़ी शक्ल में फूटे, कोई नहीं कह सकता. गुस्सा फटने का इंतजार सूबे की वजारत को भारी पड़ सकता है.
साथ में विजय महर्षि