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उत्तराखंड में फिर ठगे गए हिंदू शरणार्थी

चुनाव बाद जनता किस कदर वादों के साथ हाथ मलती रह जाती है, सीएम का क्षेत्र होने के बावजूद सितारगंज बना इसकी मिसाल.

aajtak.in
  • देहरादून,
  • 04 अगस्त 2012,
  • अपडेटेड 6:37 PM IST

उत्तराखंड में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद किरन मंडल ने पाला बदलकर सत्ता का रसपान कर लिया, तो मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने भी मंडल की खाली सीट से उपचुनाव जीतकर अपनी कुर्सी पक्की कर ली. लेकिन सत्ता के इस दोहरे खेल में सितारगंज विधानसभा सीट का बंगाली समाज खुद को कहीं नहीं पा रहा.

दशकों से चली आ रही भूमिधरी यानी पट्टे पर मालिकाना हक की मांग चुनावी मौसम में पूरी होती दिखी, लेकिन अब सरकारी पैंतरे ने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं के दमन के बाद आए हजारों शरणार्थियों को उत्तराखंड में बसाया गया. लेकिन पंजाब से आए शरणार्थियों की तरह उन्हें जमीन पर अधिकार नहीं मिला. बंगाली शरणार्थियों में ज्‍यादातर दलित हैं. राज्‍य में उनकी संख्या सवा लाख से ज्‍यादा है. 

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ऊधमसिंह नगर जिले के शक्तिफार्म में बसे बंगालियों में 65 वर्षीय पुतुल मंडल के पास पांच एकड़ जमीन थी, लेकिन गरीबी और बाढ़ ने आधी जमीन निगल ली और अब ढाई एकड़ जमीन ही उनके पास बची है. उसी में वे बहू और सात नाती-पोतों के साथ जिंदगी की गाड़ी चला रही हैं. बुजुर्ग का बेटा बेरोजगार है, ऐसे में नए नियम के तहत पट्टा लेने के लिए उनके पास टैक्स भरने का भी पैसा नहीं है. चेहरे पर दर्द और मजबूरी साफ दिख रही है.

वे कहती हैं, ''गरीबों की कोई सुनता ही नहीं है. नया पट्टा लेकर क्या होगा.'' इसी इलाके में पिछले चार दशक से बंगालियों के हक-हकूक के लिए आवाज उठा रहे 57 वर्षीय गोपाल सरकार खुद एक विस्थापित बंगाली हैं. गोपाल कहते हैं, ''चुनाव हो गया, सरकार स्थिर हो गई लेकिन वायदे पूरे नहीं हुए हैं. सरकार जिस वर्ग-9 के तहत पट्टे दे रही है वह पूर्ण भूमिधरी नहीं है. क्षेत्र की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है.''

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उत्तराखंड की बंगाली जनता नए शासनादेश से असमंजस में है. पहले और नए पट्टे में सिर्फ हस्तांतरण के अधिकार का ही फर्क है. वर्ग-9 में सरकार ने विशेष अधिकार तो दिए हैं लेकिन सरकारी आदेश के मुताबिक फ्रीहोल्ड का अधिकार नहीं होगा. ऐसे में लोग टैक्स भरकर पट्टे को वर्ग -9 में बदलवाने की जहमत नहीं उठा रहे. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राजस्व मंत्री यशपाल आर्य कहते हैं, ''पट्टे की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. टैक्स भरने को लेकर विलंब हो रहा है. पट्टे के वर्ग को लेकर कोई समस्या नहीं है.''

शक्तिफार्म के बंगालियों की उम्मीद के हीरो बने किरन मंडल, अब कुमायूं मंडल विकास निगम के अध्यक्ष बन गए हैं, कहते हैं, ''बीजेपी वाले गुमराह कर रहे थे, लेकिन अधिकारियों ने समझया तो लोगों की शंकाएं दूर हो गई हैं.'' लेकिन पूर्व मंत्री और सितारगंज उपचुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी रहे प्रकाश पंत कहते हैं, ''क्षेत्र की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है. नए नियम के पट्टे से भी उनके मकान अवैध रहेंगे क्योंकि इसमें हस्तांतरण का हक तो होगा, लेकिन इसमें भी सिर्फ कृषि का ही प्रावधान होगा.''

सिर्फ भूमिधरी ही नहीं, क्षेत्र में बाढ़ की समस्या के समाधान का वादा भी मंडल-बहुगुणा डील का हिस्सा था, लेकिन उपचुनाव की घोषणा के वक्त 9 करोड़ रु. जारी कर मिट्टी भरने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. लेकिन काम आगे नहीं बढ़ा सो फिर आई बाढ़ से सारी मिट्टी बह गई और फिलहाल यह भी चुनावी वायदा भर रह गया है.

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बंगालियों को शिड्यूल्ड कास्ट का दर्जा दिलाना, पॉलिटेक्निक, डिग्री कॉलेज, शक्तिफार्म की एकमात्र मुख्य सड़क को पक्का करने और सिडकुल उद्योग में 70 फीसदी स्थानीय लोगों को मौका देने का वादा भी फिलहाल अधर में ही लटका है. जाहिर है कि उत्तराखंड का बंगाली समाज एक बार फिर खुद को ठगा महसूस कर रहा है.

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