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वी. एस. नायपॉल, जिनकी कलम ने मचाई हलचल

केवल अपनी कलम के दम पर पूरी दुनिया को झकझोर देने का माद्दा रखने वाले लेखकों में वी. एस. नायपॉल की गिनती पहली पंक्ति में की जाती है.

वी. एस. नायपॉल वी. एस. नायपॉल
आजतक वेब ब्‍यूरो
  • नई दिल्‍ली,
  • 17 अगस्त 2012,
  • अपडेटेड 9:50 AM IST

केवल अपनी कलम के दम पर पूरी दुनिया को झकझोर देने का माद्दा रखने वाले लेखकों में वी. एस. नायपॉल की गिनती पहली पंक्ति में की जाती है.

वी. एस. नायपॉल ने लेखन के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया है. उन्हें बुकर पुरस्कार और साहित्‍य का नोबुल पुरस्कार भी मिल चुका है. नायपॉल की कृतियों में उनके क्रांतिवादी वि‍चारों की झलक मिलती है.

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विद्याधर सूरज प्रसाद नायपॉल त्रिनिडाड में जन्मे भारतीय मूल के नागरिक हैं. नायपॉल का जन्‍म 17 अगस्‍त, 1932 को हुआ था. उनके पूर्वज ट्रिनिडाड गये थे और बाद में वहीं बस गये. उन्‍होंने कई पुस्‍तकें, यात्रा-वृतांत और निबंध लिखे हैं, जिनसे उन्‍हें ख्‍याति मिली. उनकी शिक्षा-दीक्षा इंग्‍लैंड में हुई. वे इंग्‍लैंड में ही रहते हैं. उन्‍होंने दुनिया के अनेक देशों की कई यात्राएं की हैं.

साल 2001 में नायपॉल को साहित्‍य का नोबेल पुरस्‍कार दिया गया. इससे पहले 1971 में उन्‍हें बुकर पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया.

साहित्‍य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्‍हें अब तक कई पुरस्‍कर मिल चुके हैं. वर्ष 2008 में द टाइम्‍स ने 50 महान ब्रिटिश लेखकों की सूची में नायपॉल को 7वां स्‍थान दिया था. खास बात तो यह थी कि इस लिस्‍ट में 1945 से बाद की कृतियों को जगहों दी जानी थी.

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वी. एस. नायपॉल की कुछ उल्‍लेखनीय कृतियां हैं: इन ए फ्री स्‍टेट (1971), ए वे इन द वर्ल्‍ड (1994), हाफ ए लाइफ (2001), मैजिक सीड्स (2004). उनके विचार अनेक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विचारकों और लेखकों को पसंद नहीं हैं.

सर वी. एस. नायपॉल वह बात भी कह चुके हैं, जिसे सार्वजनिक तौर पर कहने में संघ परिवार की जुबान भी लड़खडा़ने लगती है. नायपॉल बाबरी मस्जिद के ध्वंस को उचित ठहरा चुके हैं. एक बैठक में उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण भारतीय संस्कृति पर हमला था, जिसे ढहाकर ठीक कर दिया गया. उन्होंने यह विचार भी रखा कि जिस तरह स्पेन ने अपने राष्ट्रीय स्मारकों का पुनर्निर्माण कराया है, वैसा ही भारत में भी होना चाहिए.

नायपॉल की बातों से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है, पर यह तो मानना ही पड़ेगा विचारों की आजादी ही लेखन की दुनिया को समृद्ध और गौरवशाली बनाती है.

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