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नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने नहीं बल्कि हैदराबाद के कलेक्टर के बेटे ने दिया था जयहिंद का नारा!

हम अब तक यह मानते आए हैं कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने सबसे पहले जय हिंद का नारा दिया था. लेकिन अब इसके उलट एक दावा सामने आया है. हैदराबाद की महान शख्सियतों और लघुकथाओं पर आधारित एक किताब के अनुसार यह नारा सबसे पहले नेताजी के सचिव और दुभाषिये ने दिया था. उनका नाम जैनिल अबिदीन हसन था.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस नेताजी सुभाष चंद्र बोस
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 नवंबर 1999,
  • अपडेटेड 7:36 PM IST

हम अब तक यह मानते आए हैं कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने सबसे पहले जय हिंद का नारा दिया था. लेकिन अब इसके उलट एक दावा सामने आया है. हैदराबाद की महान शख्सियतों और लघुकथाओं पर आधारित एक किताब के अनुसार यह नारा सबसे पहले नेताजी के सचिव और दुभाषिये ने दिया था. उनका नाम जैनिल अबिदीन हसन था.

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कलेक्टर के बेटे ने दिया यह नारा
अपनी किताब ‘लीजेंड्स ऑफ हैदराबाद’ में पूर्व नौकरशाह नरेन्द्र लूथर ने कई दिलचस्प लेख लिखे हैं जो अपने रूमानी मूल और मिश्रित संस्कृति के लिए प्रसिद्ध इस शहर से जुड़े दस्तावेजी साक्ष्यों, साक्षात्कारों और निजी अनुभवों पर आधारित है. इनमें से एक दिलचस्प कहानी जय हिंद नारे की उत्पत्ति से जुड़ी है. लेखक के अनुसार यह नारा हैदराबाद के एक कलेक्टर के बेटे जैनुल अबिदीन हसन ने दिया था जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए जर्मनी गए थे. लूथर के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नेताजी भारत को आजाद कराने को लेकर सशस्त्र संघर्ष के लिए समर्थन जुटाने जर्मनी चले गए थे।. उन्होंने कहा, नेताजी वहां भारतीय युद्ध कैदियों और अन्य भारतीयों से मिले और उनसे अपनी लड़ाई में शामिल होने की अपील की. हसन नेताजी से मिले और उनकी देशभक्ति एवं बलिदान की भावना से प्रेरित होकर अपनी पढ़ाई खत्म कर उनके साथ काम करने की बात कही.

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हैलो शब्द पर खाई थी नेता जी से डांट
लूथर के मुताबिक हसन बाद में आजाद हिंद फौज में मेजर बन गए. उन्होंने बर्मा (म्यामांर) से भारत की सीमा पार तक के मार्च में हिस्सा लिया. इसी मार्च के दौरान आजाद हिंद फौज ब्रिटिश सेना को हराकर मणिपुर की राजधानी इंफाल तक पहुंच गई थी. बाद में सप्लाई लाइन टूट जाने के चलते उसे पीछे हटना पड़ा था.

लूथर किताब में इसी दौरान पैदा हुए नारे जय हिंद का वाकया सुनाते हैं. उन्होंने लिखा है, 'नेताजी अपनी सेना और आजाद भारत के लिए एक भारतीय अभिवादन संदेश चाहते थे. इसके लिए कई तरह के सुझाव आए. हसन ने पहले हैलो शब्द दिया. इस पर नेताजी ने उन्हें डपट दिया. फिर हसन ने जय हिंद का नारा दिया जो नेताजी को पसंद आया और इस तरह जय हिंद आजाद हिंद फौज और क्रांतिकारी भारतीयों के अभिवादन का आधिकारिक रूप बन गया. बाद में इसे देश के आधिकारिक नारे के तौर पर अपनाया गया.'

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