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सुप्रीम कोर्ट के नए मुखिया के सामने दरपेश चुनौतियां

नजदीक आते चुनाव और हाइ प्रोफाइल मुकदमों के ढेर से, भारत के नए मुख्य न्यायाधीस रंजन गोगोई के सामने आने वाला साल चुनौतियों भरा साबित होगा, लेकिन साथ ही शीर्ष अदालत का इकबाल बुलंद करने का मौका भी है.

वकीलों और राजनेताओं के खानदान में पैदा हुए सीजेआइ ने 3 अक्तूबर को शपथ ली है और मोलभाव का गुण उन्हें वकीलों और राजनेताओं के खानदान में पैदा हुए सीजेआइ ने 3 अक्तूबर को शपथ ली है और मोलभाव का गुण उन्हें
दमयंती दत्ता
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 3:52 PM IST

"मेरे पास एक योजना है,'' जब न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) की कुर्सी संभालने से सिर्फ तीन दिन पहले, 29 सितंबर को नई दिल्ली में यूथ बार एसोसिएशन के एक व्याख्यान में युवा वकीलों को संबोधित करते हुए कहा तो सबके सिर उचक गए. न्यायाधीश गोगोई ने कहा कि दो चीजें उन्हें बहुत परेशान करती हैं. पहली, अदालतों में "लंबित मामले'' और दूसरी "गरीबी की मार से त्रस्त जनता को कैसे न्याय दिलाया जाए.'' जब उन्होंने कहा कि मैं अपनी कार्ययोजना को अमल में लाने के लिए "सबके सहयोग्य्य की अपील करता हूं, तो ऑडिटोरियम तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा.

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आइए पहले सुप्रीम कोर्ट चलते हैः भारत के सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठित इमारत में प्रवेश करें. स्तंभयुक्त बरामदे से होकर कोर्टरूम की ओर बढ़ें तो आपको देश के न्याय के सर्वोच्च मंदिर के 15 हॉल में से 11 हॉल में अदालती काम-काज होता दिखेगा. और बाकी में क्यों नहीं? उनमें न्याय की कुर्सी पर आसीन होने के लिए कोई न्यायाधीश ही उपलब्ध नहीं है. सीजेआइ गोगोई ने 3 अक्तूबर से अगले 11 महीने के लिए कमान संभाल ली है. संभव है कि जल्दी कुछ और हॉल खाली दिखने लगें.

अदालत संख्या 2, 3, 4 और 9 के जज—जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस ए.के. सीकरी और जस्टिस ए.एम. सापरे नवंबर 2018 से अगस्त 2019 के बीच सेवानिवृत्त हो जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 31 है लेकिन फिलहाल कोर्ट को स्वीकृत संख्या से भी छह कम, मात्र 25 जजों के साथ काम करना पड़ रहा है और हर महीने 31,000 से अधिक नए मामलों की बाढ़ आ जाती है.

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सबसे बढिय़ा समय

बेशक देश के प्रधान न्यायाधीश होने का यह सबसे अच्छा समय है. सीजेआइ के रूप में गोगोई के पदभार संभालने के मात्र एक सप्ताह पहले पांच दिनों में 20 हाइ-प्रोफाइल फैसलों के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने देश में विमर्श की दिशा बदलकर रख दी है. आधार से लेकर व्यभिचार तक, आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं से लेकर नागरिक कार्यकर्ताओं तक, राम जन्मभूमि से सबरीमाला और प्रमोशन में कोटा के लाइव स्ट्रीमिंग तक, भारत अदालती फैसलों को लेकर उत्तेजना से भरा और उत्साहित दिखता है. सितंबर के आखिरी सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों के जरिए आम लोगों के जीवन से जुड़े मामलों में जिस शिद्दत के साथ दखल दिया है, उतना इस देश में शायद ही पहले कभी हुआ हो.

इस बेहद गर्म माहौल के बीच एक बात पर लोगों का ध्यान ही नहीं गया वह थी सुप्रीम कोर्ट में ही नए सीजेआइ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक याचिका. 26 सितंबर को अदालत संख्या 1 में दैनिक सुनवाई के मामलों की लंबी सूची में एक मामला सीजेआइ के पद पर जस्टिस गोगोई की नियुक्ति के निर्णय को रद्द करने से जुड़ा भी था. दो "इंटरलॉक्यूटरी एप्लिकेशन'' के जरिए याचिकाकर्ता ने कहा था कि जस्टिस गोगोई ने 12 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अदालत में "आंतरिक मतभेद'' के नाम पर "सार्वजनिक रूप से भ्रम पैदा करने'' की कोशिश की और "न्यायिक अयोग्यता और अनुचित आचरण'' का परिचय दिया. इसलिए उनकी नियुक्ति पर रोक लगाई जाए. "इंटरलॉक्यूटरी एप्लिकेशन'' ऐसे मामलों पर तत्काल राहत की अपील के लिए लगाए जाते हैं जहां कानून के दखल की आवश्यकता होती है. आवेदन को विदा हो रहे सीजेआइ दीपक मिश्र ने एक रहस्यमयी टिप्पणी "महासागर का शांत बने रहना किसी भी अन्य चीज से श्रेयस्कर है'' के साथ खारिज कर दिया.

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कद

सीजेआइ गोगोई सख्त मिजाज समझे जाते हैः सीजेआइ का पद संभालने से ठीक छह दिन पहले लगाई गई एक याचिका में जिस बिंदु को उकेरा गया था उससे उनके मिजाज का अंदाजा हो जाता है. सीजेआइ के रूप में उनके नाम की सिफारिश से छह महीने पहले, एक संसदीय समिति सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र को दो साल तक बढ़ाने के बारे में बातें करना शुरू कर देती है, एक ऐसा कदम जिससे न्यायमूर्ति गोगोई की सीजेआइ बनने की संभावनाएं समाप्त हो सकती थीं; 4 सितंबर को सीजेआइ मिश्र द्वारा अगले सीजेआइ के रूप में जस्टिस गोगोई के नाम की संस्तुति से पहले तक सत्ता के गलियारे में यह फुसफुसाहट आम थी कि वह नरेंद्र मोदी सरकार के लिए उथल-पुथल मचाने की हिम्मत रखते हैं, सीबीआइ के एक जज की रहस्यमय मौत के लिए शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व की ओर इशारों में उंगली उठाते हुए खुले तौर पर यह कहने की हिम्मत रखते हैं कि "भारत में लोकतंत्र खतरे में है.''

मुख्य न्यायाधीश भारत के सुप्रीम कोर्ट के केंद्र में होते हैं. सैद्धांतिक रूप में सीजेआइ "समान अधिकार प्राप्त जजों के बीच पहला'' हो सकता है, लेकिन असल में वह अदालत की धुरी है. कानूनवेत्ता और नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआइयू) बेंगलूरू के चेयर प्रोफेसर एन.आर. माधव मेनन सीजेआइ के अधिकारों की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि सीजेआइ नए न्यायाधीशों की नियुक्ति, कॉलेजियम का नेतृत्व करने, पीआइएल को फिल्टर करने, न्यायाधीशों को मुकदमे सौंपने और संविधान बेंच तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह सीजेआइ ही है, जो वर्कलोड और आउटपुट, दोनों की स्पष्ट समझ के साथ, अदालत में सुधार करता है, डॉकेट्स की बाढ़ पर नियंत्रण रखता है और किसी भी क्रम में कभी भी कोई बदलाव कर सकता है—इसी कारण तो न्यायमूर्ति गोगोई और उनके सहयोगियों ने 12 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था.

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सीजेआइ के सामने यह सुनिश्चित करने की भी चुनौती है कि कॉलेजियम बंटा हुआ न दिखे. यह आसान काम नहीं है, क्योंकि अदालत के महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए उत्तरदायी कॉलेजियम की संरचना और डायनेमिक्स दोनों के, सीजेआइ गोगोई के कार्यकाल के दौरान बार-बार बदलने की संभावना है. 29 नवंबर, 2018 तक कॉलेजियम के पांच सदस्य जस्टिस लोकुर, जस्टिस जोसफ, जस्टिस सीकरी और जस्टिस शरद अरविंद बोबडे के साथ सीजेआइ गोगोई होंगे. दिसंबर से न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना कॉलेजियम में शामिल होंगे, फिर मार्च में जस्टिस ए.के मिश्र और उसके बाद नवंबर में जस्टिस आर.एफ. नरीमन जुड़ेंगे. कोर्ट के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जस्टिस बोबडे, जस्टिस रमन्ना और जस्टिस सीकरी, तीनों ही भविष्य के सीजेआइ हैं. तीनों ने जस्टिस दीपक मिश्र और प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बगावत का ऐलान करने वाले चार जजों के बीच मतभेद दूर करके, संकट का हल निकालने के लिए मध्यस्थता की कोशिश की थी.

लंबित मामलों का अंबार

राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़ों के मुताबिक, लंबित मामलों की संख्या 3.3 करोड़ के खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है, जो 1990 के उत्तरार्ध के मुकाबले करीब 20,000 अधिक है. इनमें से 2.78 करोड़ मामले अधीनस्थ अदालतों में लंबित हैं. 43 लाख मामले 24 उच्च न्यायालयों में जबकि सुप्रीम कोर्ट में 54,000 से अधिक मामले लंबित हैं. इनमें से 40 प्रतिशत तो पांच साल से अधिक पुराने हैं.

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कानून के विद्वान और लॉ ऐंड अदर थिंग्स के लेखक निक रॉबिन्सन बताते हैं कि उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों की तुलना में सर्वोच्च न्यायालय में मामलों की संख्या असंगत रूप से बढ़ रही है जो चिंताजनक बात है. पिछले दशक में कर, वाणिज्यिक और मध्यस्थता मामलों में भी बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है. जबकि स्पेशल लीव पिटीशंस (एसएलपी) या निचली अदालत के फैसलों को चुनौती देने वाली अपीलें बढ़ रही हैं. जनहित याचिकाएं (पीआइएल) जिनसे सबसे महत्वपूर्ण फैसले निकलते हैं, अदालत की कार्यसूची में 2 फीसदी से अधिक नहीं रहती.

भारत का दुनिया में सबसे कम न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात वाला देश होना, इस परेशानी को और बढ़ा देता है. अमेरिका में जहां प्रति दस लाख की आबादी पर 107 जज, ऑस्ट्रेलिया में 41, कनाडा में 75 और ब्रिटेन में 51 जज हैं उनकी तुलना में भारत में केवल 18 जज हैं. यह स्थिति तब है जब 1987 में ही लॉ कमिशन प्रति दस लाख की आबादी पर 50 जजों की संस्तुति कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट, "अधीनस्थ न्यायालयः न्याय पर एक रिपोर्ट्य, 2017 के मुताबिक, भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर जजों की संख्या पुलिस अधिकारियों की संख्या से भी काफी कम है. प्रति दस लाख की आबादी पर 42 पुलिस अधिकारी हैं. सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट न्यूज के अनुसार, जनवरी 2018 तक,  उच्च न्यायालयों में जजों के स्वीकृत 1079 पदों में से 403 खाली हैं और जिला व अधीनस्थ अदालतों के लिए स्वीकृत 22,704 जजों के पद में से 5,676 पद खाली हैं.

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चुनावी साल

सीजेआइ गोगोई की अदालत अप्रैल-मई, 2019 में अगले लोकसभा चुनाव की अवधि को कवर करेगी. उससे पहले, कम से कम पांच राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव भी होने हैं. अरुणाचल प्रदेश या उत्तराखंड के मामले को देखते हुए हो सकता है कि इन चुनावों में सुप्रीम कोर्ट को फिर से दखल देना पड़े. सबसे ताजा मामला तो मई का ही है जब अदालत ने कांग्रेस-जेडी(एस) के पास बहुमत का आंकड़ा होने के बावजूद भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण देने वाले कर्नाटक के गवर्नर के फैसले पर सवाल उठाते हुए तत्काल राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दिया था. 2016 में, अदालत ने उत्तराखंड और अरुणाचल में संवैधानिक उल्लंघन के लिए राज्यपालों के फैसलों को पलट दिया था. जल्दी ही सर्वोच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल की समाप्ति से नौ महीने पहले, 6 सितंबर को तेलंगाना विधानसभा को भंग करने की सिफारिश को चुनौती देने वाली याचिका भी आ रही है.

भाजपा लोकसभा चुनावों के साथ-साथ जितना संभव हो, उतने विधानसभा चुनाव कराने की संभावनाएं तलाश रही है. महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और बिहार में समय-पूर्व चुनाव कराने और मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनावों को निर्धारित समय से आगे बढ़ाने के लिए सभी संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है. ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में वैसे भी 2019 के मध्य में चुनाव होने ही हैं.

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एक साथ चुनाव के लिए, लोकसभा चुनाव से पहले जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां राष्ट्रपति शासन लगाना होगा. और राष्ट्रपति शासन के फैसलों को बार-बार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है. एस.आर. बोक्वमई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1994) मामले में अदालत ने मनमाने ढंग से राष्ट्रपति शासन लगाने पर रोक लगा दी थी. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में 13 जजों की बेंच ने कहा कि राष्ट्रपति शासन केवल राज्य में संवैधानिक मशीनरी की विफलता की स्थिति में ही लगाया जा सकता है.

गरम मुद्दे

सुप्रीम कोर्ट को उच्चतम स्तर पर भ्रष्टाचार, धार्मिक स्वतंत्रता, नागरिकता और आप्रवासन, सांसदों और विधायकों के अपराध और सजा, जम्मू-कश्मीर राज्य को मिले विशेष दर्जे और कानून के तहत महिलाओं के समानता के अधिकार जैसे विविध मामलों पर सुनवाई शुरू करनी होगी. इसमें सबसे ज्यादा नजर फ्रांसीसी कंपनी दासो से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर रहेगी जिस पर 10 अक्तूबर से सुनवाई शुरू होगी.

सीजेआइ गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है और याचिकाकर्ता को दस्तावेज जमा करने की इजाजत दे दी है. सबसे ज्यादा तनाव की आशंका असम में तैयार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर है, जो सीजेआइ गोगोई का गृह राज्य है. अदालत अब एनआरसी से बाहर रह गए 40 लाख से ज्यादा लोगों की आपत्तियों और दावों को रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया की जांच करेगी. इस मुद्दे का दूसरा पहलू यह है कि अदालत दो रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों द्वारा दायर एक याचिका पर भी सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने सरकार द्वारा शरणार्थियों को निर्वासित करने के कदम को चुनौती दी है.

अदालत के समक्ष एक अन्य विवादास्पद मुद्दा सभी राज्यों में सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का भी है, जिनमें से 18 ने दिसंबर 2017 के न्यायालय के आदेशों का अभी तक पालन नहीं किया है. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेषाधिकारों प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 35 ए की वैधता को चुनौती देने वाले एक मामले पर भी सुनवाई होनी है. 35 ए को रद्द करना, 2014 में भाजपा के घोषणापत्र में शामिल था. मामला जनवरी 2019 के लिए सूचीबद्ध किया गया है. लंबे समय से लंबित मामलों में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला भी शामिल है जिसका भूत हर चुनाव से पहले आकर खड़ा हो जाता है. दशकों से इस मामले पर नजर बनाए रखने वाले वकीलों का कहना है कि अगर इस पर फैसला 2019 के चुनावों से पहले आता है, तो फैसला चाहे जिसके पक्ष में जाए, चुनावों पर इसका असर जबरदस्त रहेगा.

अंततः शांति

सरकार के साथ चार साल की तनातनी, कॉलेजियम को लेकर तनाव और अविश्वास का वातावरण, फोरम-शॉपिंग के असहनीय आरोपों, बेंच फिक्सिंग, ब्लैकबॉलिंग, धौंस दिखाने की कोशिशें और मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिशों जैसे उथल-पुथल के बाद अब थोड़ी शांति दिखती है. सबकी नजरें अब सुप्रीम कोर्ट पर गड़ी हैः क्या समुद्र सचमुच शांत रहेगा? या देश के विभिन्न हिस्सों में कोई ऐसी लहर उठेगी ही जो इस शांति को भंग कर देगी? सीजेआइ गोगोई ने एक बार कहा था, "स्वतंत्र और आवाज उठाने वाले जज ही लोकतंत्र की सुरक्षा की पहली पंक्ति हैं.'' उम्मीद करें कि सुप्रीम कोर्ट कम से कम एक सुर में बात जरूर करेगा. ठ्ठ

"स्वतंत्र न्यायाधीश और शोर मचाने वाले पत्रकार लोकतंत्र की अग्रिम रक्षा पंक्ति है.''

—रंजन गोगोई भारत के मुख्य न्यायाधीश

कौन अंदर, कौन बाहर

शीर्ष पांच जजों के कॉलेजियम के भीतर का पूरा गुणा-गणित बदलने जा रहा है. शीर्ष जजों की ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद जजों के भीतर विश्वास के संकट की बात खुलकर सामने आई और न्यायिक नियुक्तियों के बारे में कोर्ट की सिफारिश को मानने से मोदी सरकार के इनकार के बाद, कॉलेजियम को एक स्वर में बोलना होगा. अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि बदलते संघटन और केमिस्ट्री पर सीजेआइ गोगोई की किस तरह की प्रतिक्रिया रहती है और वे किस तरह से इसका कोई स्थायी समाधान निकालते हैं.

रंजन गोगोई

अक्तूबर-नवंबर, 2019

कोर्टरूम 1

कई जज रिटायर होंगे और नए जॉइन करेंगे, जिससे सीजेआइ को 13 महीने में सात जजों के साथ काम करना होगा. प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल रहे उनकी समान सोच वाले दो जज रिटायर हो जाएंगे और कई नए, जिन पर बागी जजों ने सवाल भी उठाए हैं, आएंगे. कई आगे चलकर सीजेआइ भी बनेंगे. हर किसी का काफी कुछ दांव पर लगा है

जस्टिस मदन बी. लोकुर

अक्तूबर-दिसंबर, 2018

कोर्टरूम 2

वह भी 12 जनवरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल थे और 30 दिसंबर को ही रिटायर हो रहे हैं. ताज महल को बचाने के ऊर्जावान समर्पण, उदार मूल्यों और सामाजिक न्याय पर आने वाले आदेशों, नौकरशाही पर नकेल और लंबित वैकेंसी न भरने के लिए सरकार पर सवाल उठाने, बाल अधिकारों और भोजन के अधिकारों पर आए आदेशों के लिए ख्यात

जस्टिस कुरियन जोसेफ

अक्तूबर-नवंबर 2018

कोर्टरूम 3  

प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल थे. कार्यकाल 30 नवंबर को खत्म हो रहा है, जिसके बाद सीजेआइ को साथी की कमी महसूस होगी. उन्होंने अपने जज साथियों के भी रिटायरमेंट के बाद किसी तरह के फायदे लेने का सख्ती से विरोध किया है. कोयला घोटाले, सीबीआइ की स्वतंत्रता और ट्रिपल तलाक जैसे महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई में उनकी भूमिका को याद रखा जाएगा

जस्टिस ए.के. सीकरी

अक्तूबर-मार्च 2019

कोर्टरूम 4

जून में जस्टिस जे. चेलमेश्वर के रिटायर होने के बाद कॉलेजियम में प्रवेश हुआ है. चार जजों के बागी होने के बाद लगा, ये ही अगले सीजेआइ होंगे. जुलाई में एक पीआइएल पर सुनवाई के दौरान कॉलेजियम की जगह सीजेआइ की श्रेष्ठता की बात दोहराई. "आधार'' पर बहुमत के उनके लिखे हुए फैसले के लिए उन्हें याद किया जाएगा

जस्टिस शरद अरविंद बोबडे

अक्तूबर-नवंबर 2019

कोर्टरूम 5

जस्टिस गोगोई के बाद सीजेआइ बनेंगे. मितभाषी हैं, फिर भी साथी जजों के बीच इनका प्रेरक असर है. प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद बार काउंसिल ने जस्टिस चेलमेश्वर से बात करने के लिए इनसे ही संपर्क किया. जस्टिस शरद उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने आदेश दिया कि आधार कार्ड न रखने वाले किसी भी भारतीय नागरिक को सरकारी फायदों से वंचित नहीं किया जा सकता

जस्टिस एन.वी. रमन

दिसंबर-नवंबर 2019

कोर्टरूम 6

आठ साल के उनके बचे कार्यकाल से तय लगता है कि वह जस्टिस बोबडे के बाद अप्रैल, 2021 में भारत के 48वें सीजेआइ बनेंगे. महिला भी संयुक्त परिवार की "कर्ता'' बन सकती है, जस्टिस गोगोई के साथ इस आदेश के लिए उन्हें काफी सराहना मिली. उन पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडू के "अनुचित रूप से बेहद करीबी'' होने और युवावस्था में दंगों में शामिल होने जैसे आरोप लगे हैं

जस्टिस ए.के. मिश्र

जनवरी-नवंबर 2019

कोर्टरूम 7

कठोर आचरण का पालन करने वाले धार्मिक व्यक्ति. जनवरी में उनके साथी जजों की भौहें तनीं जब तत्कालीन सीजेआइ मिश्रा ने उन्हें कई संवेदनशील मामले सौंप दिए थे, खासकर स्पेशल सीबीआइ कोर्ट के जज बी.एच. लोया की मौत की जांच का मामला. उनके एक दिवंगत रिश्तेदार भाजपा से जुड़े थे. परिवार का कई शीर्ष राजनीतिकों से करीबी रिश्ता रहा है

जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन

अप्रैल-नवंबर 2019

कोर्टरूम 8

बार से सीधे तरक्की देकर सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए जाने वाले वे पांचवें व्यक्ति हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से लेकर ट्रिपल तलाक, व्यभिचार, सबरीमाला तक के मामलों पर कई ऐतिहासिक फैसले देने वाली खंडपीठों में वे शामिल रहे हैं. वे सीजेआइ गोगोई के साथ असम में एनआरसी की निगरानी कर रहे हैं.

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