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बात तब की है जब मैं नौवीं में पढ़ता था. उन दिनों मैंने इंग्लिश स्कूल में एडमिशन लिया था, लेकिन मुझे इंग्लिश समझ नहीं आती थी. मेरी अंग्रेजी बहुत कमजोर थी. हर बार बाकी 4 विषयों में तो पास हो जाता पर इंग्लिश में फेल हो जाता था. मेरे पापा मुझे बहुत डांटते और मारते भी थे पर मेरी मां हमेशा मेरा हौसला बढ़ाती थी.
मां की हिम्मत बढ़ाने के बाद मैंने सोचा कि आखिर एक बेटा होने के नाते मेरा भी कुछ फर्ज है कि मैं अपनी किताबों को अच्छी तरह पढूं और मां-बाप का नाम रौशन करूं. मैं इससे पहले अपनी असफलता के लिए भगवान को दोषी ठहराता रहता था कि भगवान ने बाकी तेज स्टूडेंट्स की तरह मुझे भी दिमाग क्यों नहीं दिया? यह भी सोचता था कि काश मैं दूसरों के दिमाग को पढ़कर पेपर लिख पाता, लेकिन जल्द ही एहसास हो गया कि काल्पनिक दुनिया में जीने का कोई फायदा नहीं है.
मैंने हार नहीं मानी और निरंतर मेहनत करता गया. मेरे शिक्षकों ने भी मेरी सहायता करनी शुरू कर दी थी. मैं नौवीं क्लास में पास हो गया. अब 10वीं की पढ़ाई से डर लगने लगा क्योंकि यह बोर्ड परीक्षा होती है. मेरे स्कूल में ऐसा नियम था कि जो स्टूडेंट्स प्री-बोर्ड में फेल हो जाएगा वो बोर्ड में नहीं बैठेगा. मेरे अंदर डर और भी ज्यादा बैठ गया, मगर मेैनें इसे दूर किया. डर को दूर करने में मेरी मां हमेशा आगे रहीं और मुझे मदद करती रहीं.
मेरी मां स्कूल के शिक्षकों से मेरी पढ़ाई के बारे में हमेशा पूछती रहती थी. आखिरकार एग्जाम का दिन आ ही गया और मैंने जब पेपर देखा तो लगा कि लोग ऐसे ही बोर्ड परीक्षा के बारे में स्टूडेंट्स को डराते रहते हैं. मैंने अच्छे से पेपर दिए और पास भी हो गया. मेरे इस रिजल्ट से मां बहुत खुश थी. पापा को जब पड़ोसी लड़के के नंबरों के बारे में पता चला तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि सारी मांगों को पूरा करने के बाद भी तुम्हारे नंबर कम क्यों आए हैं? मुझे दुख तो हुआ मगर खुशी इस बात से थी कि मेरी मां खुश थी.
मुझे बचपन से ही राजा बाबू बनने का शौक था. मैंने अपनी पढ़ाई आगे जारी रखी और मैं अभी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट हूं. मेरे जीवन में मेरी मां का दर्जा किसी भगवान से कम नहीं है. मैं कितनी भी पूजा करूं अपनी मां की कम है. भगवान इस दुनिया में सभी को मेरी जैसी मां दे.
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