Advertisement

विधानसभा चुनाव: टूट गया आम आदमी पार्टी का हवा महल

आप को गोवा और पंजाब में मुंह की खानी पड़ी लेकिन क्या उसके लिए अब भी कोई उम्मीद बाकी?

11 मार्च को नतीजों के पहले अरविंद केजरीवाल 11 मार्च को नतीजों के पहले अरविंद केजरीवाल
सौगत दासगुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 27 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST

मार्च की 11 तारीख की सुबह मतगणना शुरू होने के कुछ ही समय बाद आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व को पंजाब में हार का सामना करने की आशंका से दो-चार होना पड़ रहा था. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बगल में बैठे इस त्रासदी को घटते देख रहे थे. एक दिन बाद फोन पर आशुतोष ने कहा, ''हम अब भी स्थिति की समीक्षा करने की प्रक्रिया में हैं." यह उस परिघटना की बड़ी सचेत व्याख्या थी जिसे वह खुद मान रहे थे कि वे बड़े ही तकलीफदेह और नाउम्मीदी वाले 48 घंटे थे.

तिरंगे गुब्बारों और एलईडी स्क्रीनों से पटा केजरीवाल का घर जश्न की मेजबानी करने को तैयार था. भीड़ सवेरे जल्दी ही घर के बाहर जमा होनी शुरू हो गई थी लेकिन फिर उतनी ही तेजी से बिखरती भी चली गई. आप को 117 में से 20 सीटों पर जीत मिली. उसमें लोक इंसाफ पार्टी की दो सीटें और मिला लीजिए तो आप की नव-निर्वाचित पंजाब विधानसभा में 22 सीटें हो जाती हैं जो अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस से 55 सीट कम है और फजीहत का शिकार हुए अकाली दल-बीजेपी गठबंधन से चार ज्यादा.

इंडिया टुडे-एक्सिस को छोड़कर, जिसने कांग्रेस के लिए 71 सीटों का अनुमान लगाया था, बाकी सभी एग्जिट पोल में यह संकेत सामने आया था कि पंजाब के नतीजे बेहद नजदीकी रहेंगे. इंडिया टुडे टीवी पर काफी उत्साहित नजर आ रहे पार्टी के युवा कोषाध्यक्ष और प्रवक्ता राघव चड्ढा ने कहा था कि अगर आप को पंजाब में 85 से कम सीटें मिलीं तो वे ''राजनीति छोड़" देंगे. लिहाजा, कोई हैरत की बात नहीं कि नतीजों के बाद चड्ढा ने टिप्पणी के किसी अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया.

अब आप का क्या होगा? केजरीवाल ने हार पर सिर्फ एक ट्वीट के जरिए प्रतिक्रिया दी. आशुतोष का कहना था कि उनका रुख बेहद सकारात्मक और जुझारू हैः ''चिंता की बात नहीं, हार होती रहती है लेकिन आगे हमें मजबूत कोशिश करनी होगी." हालांकि ईवीएम को लेकर शिकायत और दिल्ली के लिए आगामी निगम चुनावों में कागजी मतदान पत्रों की मांग से उनके रुख में कोई उत्साही संकेत तो नजर नहीं आते, फिर भी इस हार को लेकर केजरीवाल के प्रति सहानुभूति न जताना मुश्किल है.

पार्टी ने पंजाब में जीत पर सारा दांव लगा रखा था. गोवा का तो ख्याल बाद का था, हालांकि पंजाब के जख्मों पर यह नमक रगडऩे सरीखा ही था कि गोवा में पार्टी ने जिन 39 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से 38 पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. पंजाब में भी जितनी सीटों पर आप के उम्मीदवार जीते, उससे ज्यादा पर उन्होंने अपनी जमानत गंवा दी. मत प्रतिशत के संदर्भ में भी देखा जाए तो 25 फीसदी से कम वोट हासिल करके आप तीसरे स्थान पर ही रही, हालांकि विधानसभा में वह मुख्य विपक्षी दल रहेगी. खुद केजरीवाल ने वहां 95 रैलियों को संबोधित किया और प्रचार के आखिरी हफ्तों में तो वे एक तरह से दिल्ली छोड़कर पंजाब में ही जम गए थे.

केजरीवाल के लिए यह व्यक्तिगत नाकामयाबी भी है. यह बात उन्हें खाए जाएगी कि नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में बगैर किसी प्रमुख स्थानीय चेहरे के भाजपा को सबसे शानदार जीत दिला ले गए. इधर आप के लिए तो लक्ष्य साफ था, पंजाब जीतकर वह खुद को राष्ट्रीय ताकत के रूप में स्थापित कर लेती. वह इस स्थिति में आ जाती कि अन्य राज्यों में भी मैदान में उतर सकती और 2019 में बीजेपी की जीत के रास्ते में खुद को एक बड़ा अड़ंगा बना लेती. अब ये सारी योजनाएं ध्वस्त हो गई हैं.

चुनावों के बाद बातचीत करने को तैयार आप के कुछ गिने-चुने लोगों में से एक आशुतोष की दलील थी कि अभी गिलास आधा भरा है. वे कहते हैं, ''आप इसे झटका कह सकते हैं लेकिन हम पंजाब में दूसरी पार्टी बनकर सामने आए हैं. बिना बाहुबल और धनबल के हम एक राज्य में सत्ता में हैं, दूसरे में मुख्य विपक्षी दल हैं और राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत पाने के बहुत नजदीक हैं. चार साल में इतना हासिल कर लेना कोई कम बड़ी बात नहीं है." स्तंभकार संतोष देसाई इस बात को स्वीकार करते हैं, ''पंजाब में 25 फीसदी वोट हासिल कर लेना किसी भी नई पार्टी के लिए उपलब्धि है. लेकिन आप के लिए जो मौका था, उसके मद्देनजर पार्टी के लिए इन नतीजों में कोई अच्छा संकेत देखना मुश्किल है. सत्तारूढ़ गठबंधन अपनी साख गंवा चुका था और कांग्रेस तो देश के ज्यादातर इलाकों में नाजुक हाल में थी. आप को इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता था."

आप के विजयी उम्मीदवारों में से एक कुलतार सिंह संधवान हैं. कोटकपुरा से इस नए विधायक ने, जो शनिवार सवेरे से जीत का जश्न मनाते थके नहीं थे, अपने जोश में कोई कमी नहीं आने दी. उनकी आवाज भले ही तनाव के कारण फटी-फटी सी थी. पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के इस पौत्र ने जोर देकर कहा कि चुनावों से महज दो दिन पहले तक हम जोरदार तरीके से जीत रहे थे. उन्होंने अकालियों और कांग्रेस के बीच श्साजिश्य का भी आरोप लगाया. वे कहते हैं, ''फिर भी, हमारे लिए यह भी बेहतर है. हम अगली बार के लिए काम करते हुए प्रशिक्षण हासिल करेंगे. हम कांग्रेस को पंजाब का भला करने पर मजबूर करेंगे. हम बताएंगे कि विपक्ष का मतलब क्या होता है." संधवान ने माना कि आप ने थोड़ी गलतियां कीं. वे कहते हैं, ''हमने बादलों को निशाना बनाने पर गोला-बारूद खर्च कर दिया और अमरिंदर बच गए. हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ी."

जब अमरिंदर पहले मुख्यमंत्री थे तो उनके नजदीक रहे पूर्व आइएएस अधिकारी आर.आर. भारद्वाज कांग्रेस का हाल देखकर हताशा में आप में शामिल हो गए थे. वे आप के बौद्धिक प्रकोष्ठ के मुखिया थे और उन्होंने पंजाब के लिए चुनाव घोषणा पत्र तैयार करने में मदद की. उनके साथ कार्यकर्ताओं का एक दल था, जिसमें कई अच्छा-खासा करियर छोड़कर तो कई स्टैनफोर्ड और ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ाई से ब्रेक लेकर वहां डटे थे. होली के दिन भारद्वाज से बात हुई तो साफ नजर आया कि वे नतीजों से निराश थे.

उन्होंने कहा, ''दिल्ली से आए लोग पार्टी को नियंत्रित कर रहे थे, जिन्हें जमीनी हकीकत का कोई अंदाजा नहीं था. टिकटों का बंटवारा भी गलत हुआ. कई ऐसे ईमानदार लोगों को बाहर छोड़ दिया गया जिन्होंने जमीन पर काम किया था और कई पैसे वाले लोग टिकट पाने में कामयाब रहे." कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और टिकटों के वितरण की देखरेख करने के लिए दिल्ली से भेजे गए आप नेताओं संजय सिंह और दुर्गेश पाठक से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने माना कि फिलहाल वे इस हार का पोस्टमॉर्टम करने को तैयार नहीं हैं.

आप की जिन गलतियों की ओर भारद्वाज इशारा करते हैं, उनमें से एक ''इस बात को नजरअंदाज करना थी कि मतदाताओं में 40 फीसदी हिंदू हैं और उनकी सामाजिक-आर्थिक जरूरतें सिखों से अलग हैं. इस बात का भी अच्छा असर नहीं पड़ा कि मोगा में केजरीवाल एक आतंकवादी के घर में रुके. उधर भगवंत मान कॉमेडियन तो अच्छे हो सकते हैं लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में वे बिल्कुल मिसफिट रहे होते."

नाम न जाहिर करने की शर्त पर आप के भीतर के कुछ लोगों ने यह दावा किया कि पार्टी का अभियान तो तभी पटरी से उतर गया था, जब रिश्वत लेने के कथित आरोप में सुच्चा सिंह छोटेपुर को अपमानित किया गया और पद से हटा दिया गया था. भारद्वाज कहते हैं, ''एक बड़ा मौका अब भी बाकी है. खजाना खाली हो चुकने के बाद कांग्रेस के लिए काम कर पाना मुश्किल होगा. आप बदलाव और सुधारों का प्रतिनिधित्व करती है. लेकिन उसे स्थानीय लोगों पर भरोसा करना होगा."

आप को मतदाताओं में खुद के लिए विश्वास जगाना होगा. अभी तक चुनावों के बाद कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई है, लेकिन आशुतोष का कहना है कि पार्टी गुजरात समेत अन्य राज्यों में चुनाव लडऩे के अपने इरादे पर आगे बढ़ेगी. केजरीवाल 26 मार्च को गांधीनगर में एक रैली को संबोधित करने वाले हैं और आशुतोष का कहना है कि उसे रद्द करने की कोई योजना नहीं है. हालांकि पार्टी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण अप्रैल में होने वाले दिल्ली के निगम चुनाव हैं. वे दिल्ली की आप सरकार पर जनमत संग्रह का काम करेंगे. संतोष देसाई मानते हैं, ''हो सकता है कि दिल्ली में आप का अच्छा काम मध्यम वर्ग को नजर नहीं आता क्योंकि वह गरीब तबकों को फायदा पहुंचाता है. निगम चुनाव इस दावे की अच्छी पड़ताल करेंगे कि क्या दिल्ली में अब भी आप का भविष्य है."

जहां तक गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, 2019 और राष्ट्रीय पार्टी के रूप में आप के भविष्य की सारी बातें हैं, उन सबसे ऊपर दिल्ली में उसका भविष्य तात्कालिक रूप से दांव पर लगा है. आशुतोष का कहना है, ''आप ने पहले ही 240 से ज्यादा उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है और शिक्षा, स्वास्थ्य तथा जल संसाधन क्षेत्र में हमारे अच्छे काम का इनाम मिलेगा."

हो सकता है, लेकिन बीजेपी पंजाब में केजरीवाल की फजीहत को भुनाने को तत्पर है और उन्हें मजाक का विषय बनाएगी. दो साल पहले हुए विधानसभा चुनावों में आप का प्रदर्शन तो नहीं दोहराया जा सकता, लेकिन पार्टी को उम्मीद रखनी होगी कि उन नतीजों से उपजी अतिशय उम्मीदें काम न कर पाने की धारणा के चलते कहीं अतिशय निराशा में तब्दील न हो जाए. इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने से कोई फायदा न होगा.

फिलहाल यह कहना तो जल्दबाजी होगी कि आप के सामने अस्तित्व का संकट है लेकिन उस पर दबाव सब तरफ से है. उदाहरण के तौर पर, नियंत्रक व महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट ने आप सरकार की वित्तीय अनियमितताओं और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के लिए खिंचाई की है और कहा है कि उसने दिल्ली सरकार की उपलब्धियों का राज्य के बाहर विज्ञापन करने में करोड़ों रु. खर्च किए हैं. आप को लड़ाके के तौर पर छवि से सारी ऊर्जा मिलती है. वह नहीं चाहेगी कि उसकी मजबूत पहचान रही यह छवि धुंधली हो जाए.
आप के राष्ट्रीय सचिव और उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य पंकज गुप्ता गोवा में पार्टी की रणनीति के प्रभारी थे. वे कहते हैं, ''हमें गोवा में लोगों का प्यार मिला लेकिन भरोसा नहीं." गुप्ता कहते हैं, ''लोगों को विकल्प तो चाहिए और यह हमारी जिम्मेदारी है कि उस विकल्प को बढ़ाएं, उसे दम न तोडऩे दें."

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement