
असहिष्णुता 2015 का काफी पॉपुलर शब्द रहा, और हर मंच पर इसका भरपूर इस्तेमाल भी हुआ. कभी कोई साहित्यकार बोला तो कभी कोई नेता और कभी सितारे. हां, सितारों से याद आया आमिर खान और शाहरुख खान ने इस शब्द का इस्तेमाल किया था. देश के इन चहेते सुपरस्टार्स ने जब कहा कि भारत असहिष्णु होता जा रहा है तो एकदम से जैसे सहिष्णु लोगों के सब्र का बांध टूट गया और वे असहिष्णु हो गए. असहिष्णु भी ऐसे-वैसे नहीं, बिल्कुल मुश्कें कसे हुए, और इन असहिष्णु शब्द का इस्तेमाल करने वालों को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने को तैयार. अब जब इस बात को थोड़ा समय गुजर चुका है, तो समय भी आ गया है कि इस असहिष्णुता के इफेक्ट्स का भी आंकलन कर लेना चाहिए.
शाहरुख खान
बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान ने नवंबर 2015 में इंटरव्यू में भारत में असहिष्णुता बढ़ने की बात कही और फिर उसके बात तो हंगामा ही हो गया. उन्होंने बात को रफा-दफा करने की कोशिश भी की. मुंह से निकली बात कब लौटती है. कुछ संगठनों ने उन्हें सबक सिखाने का बीड़ा उठा लिया. 18 दिसंबर को उनकी फिल्म दिलवाले आने वाली थी, तो व्हाट्सऐप पर मैसेज चलने लगे और कहा गया कि एसआरके की फिल्म न देखें . सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी समान राय रखने वाले बंधु जनों ने इसी तरह का अभियान छेड़ दिया. जब फिल्म रिलीज हुई तो कई जगह उसके शो रद्द करने पड़े और कई जगह पर और भी हंगामा हुआ. वैसे भी फिल्म बेदम थी, लेकिन इस सारी कवायद ने फिल्म पर और कुठाराघात किया. बहुत ही सहिष्णु लोगों ने शाहरुख खान के लिए असहिष्णुता का माहौल बना डाला.
आमिर खान
नवंबर का ही महीना था, और आमिर ने भी असहिष्णुता का राग अलापा तो फिर क्या था. तो तथाकथित देशभक्तों ने फिर मुश्कें कस लीं. सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आमिर का ही नहीं बल्कि उन प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करने के लिए कहा गया जिनका वे प्रचार करते थे. उनके झापड़ रसीद करने की सुपारी भी दे डाली गई. फिर वह सब हुआ जो अक्सर बहुत ही सहिष्णु लोग असहिष्णु लोगों के खिलाफ करते हैं. मास्टरस्ट्रोक बाकी था जो अब सामने आ चुका है. आमिर खान को अतुल्य भारत कैंपेन के ब्रांड एंबेसेडर के तौर पर हटा दिया गया है. कहा जा रहा है कि उनका कॉन्ट्रेक्ट पूरा हो गया था. किसी को सरकारी कैंपेन का ब्रांड एंबेसेडर बनाने का विशेषाधिकार सरकार के ही पास है. इस बात का सम्मान करते हुए आमिर ने भी सरकार के इस फैसले को बहुत ही सहिष्णुता से गले लगा लिया है .
लेकिन इतिहास बन चुके अब इन पन्नों से सबक मिल चुका है कि सहिष्णु बनकर किस तरह से असहिष्णुता का पाठ भी पढ़ाया जा सकता है. यह हमने एक बार नहीं, बार-बार देखा. यहां महात्मा गांधी की इन पंक्तियों “असहिष्णुता अपने आप में एक तरह की हिंसा है और लोकतंत्र की आत्मा के विकास की राह की सबसे बड़ी बाधा भी” को याद करके ही असहिष्णुता के मुद्दे पर बहुत ही सहिष्णुता के साथ मिट्टी डाली जा सकती है.
मोनिका शर्मा / नरेंद्र सैनी