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बवाल के बीच AAP के सोशल मीडिया एडमिन ने सुनाई अपनी कहानी

कहते हैं कि समझदार लोगों के लिए बुरा दौर अपने संघर्ष को नए नजरिये से देखने का विवेक लेकर आता है. इस कोलाहल में कई अनकही कहानियां होठों पर आ जाती हैं. AAP के बुरे दौर में एक अनकही कहानी अंकित लाल ने कह सुनाई है, फेसबुक के जरिये.

Ankit Lal Ankit Lal
कुलदीप मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 03 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 4:59 PM IST

आम आदमी पार्टी में इन दिनों योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के अध्याय के इतर भी बहुत कुछ घट रहा है. पार्टी के अपने ही लोग पहले आलोचक हुए और अब खुले विरोधी हो गए हैं. ऐसे में उन कार्यकर्ताओं की स्थिति क्या है जिन्होंने पार्टी के लिए अपना करियर तक दांव पर लगा दिया. कहते हैं कि समझदार लोगों के लिए बुरा दौर अपने संघर्ष को नए नजरिये से देखने का विवेक लेकर आता है. इस कोलाहल में कई अनकही कहानियां होठों पर आ जाती हैं.

एक अनकही कहानी अंकित लाल ने कह सुनाई है, फेसबुक के जरिये. अंकित आम आदमी पार्टी के सोशल मीडिया प्रमुख हैं. दिल्ली चुनावों से पहले उनकी टीम ने सोशल मीडिया पर बीजेपी की नाक में दम करके रख दिया था. लेकिन हाल ही में अंकित को आम आदमी पार्टी के फेसबुक ग्रुप की एडमिनशिप छोड़नी पड़ी. इस ग्रुप से 1 लाख 32 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हैं. हालिया विवाद के बाद ग्रुप पर माहौल अच्छा नहीं था और नकारात्मकता से बचने के लिए अंकित ने यह फैसला किया.

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इसके बाद उन्होंने आहत मन से पार्टी संग अपने सफर को याद किया और कार्यकर्ताओं के नाम एक चिट्ठी लिखी. चिट्ठी का संदर्भ इतना अहम नहीं है, जितना इसका कंटेंट है. इसे पढ़कर आपको अन्ना आंदोलन के बारे में कई नई बातें पता चलेंगी. साथ ही कार्यकर्ताओं की नजर से पार्टी बनने की प्रक्रिया, उनके अंतर्द्वंद्व से भी नए सिरे से रूबरू होंगे. अंकित ने यह चिट्ठी अंग्रेजी में लिखी थी, हम इसका अनुवाद यहां पेश कर रहे हैं. आगे उन्हीं की जुबानी:

अंकित लाल की चिट्ठी
आज मैं आपको एक कहानी सुनाऊंगा. कहानी जो बताएगी कि मैंने किस तरह आम आदमी पार्टी (AAP) के एक फेसबुक पेज की एडमिनशिप छोड़ दी. यह वह जिम्मेदारी थी, जो मैं कभी उठाना नहीं चाहता था. लेकिन जब मुझे इसके लायक पाया गया तो मैं बचकर भाग नहीं सका. और यह कहानी थोड़ी सी बड़ी होगी, प्लीज बर्दाश्त कीजिएगा.

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2009 में बीटेक कंप्लीट करने के बाद मैं बतौर ERP कंसल्टेंट जॉब करने लगा था. अप्रैल 2011 में मैंने दफ्तर से छुट्टी ली थी. मकसद था एक बार फिर जीआरई (ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्जाम) देने का. 2009 में भी मैंने जीआरई का एग्जाम दिया था और मेरा स्कोर 1290 था. मुझे लगा कि मैं इससे बेहतर कर सकता हूं. इसलिए नौकरी से छुट्टी ली. लेकिन वह इम्तहान मैं कभी नहीं दे सका, क्योंकि इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) की एक फेसबुक पोस्ट ने मुझे जंतर-मंतर पहुंचा दिया. मैं इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) से बतौर वॉलंटियर जुड़ चुका था. इस दौरान मैंने पानी बांटा, अनशनकारियों की देखभाल करते हुए आरएमल अस्पताल में रातें बिताईं और वो सारे काम किए जो 'एक्टिविस्ट' किया करते हैं.

मेरे मैनेजर ने फेसबुक प्रोफाइल पर आंदोलन की तस्वीरें देख छुट्टियां रद्द कर दीं. यह 20 अप्रैल के आस-पास की बात होगी. तब तक मुझे आईएसी के ऑफिशियल ईमेल का जवाब देने का काम दे दिया गया था. हमारी टीम ने अप्रैल के महीने में ही करीब 12 हजार ईमेल के जवाब दिए थे.

छुट्टियों से लौटकर मैंने नौकरी जॉइन की. फिर गाजियाबाद की ग्राउंड टीम का हिस्सा बन गया (क्योंकि मेरा घर वैशाली में है.) मई से अगस्त 2011 तक इस ग्राउंड टीम का नेतृत्व किया. मकसद- जनलोकपाल!!

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क्योंकि मैं ईमेल टीम का नेतृत्व कर रहा था, इसलिए मेरे पास ढेर सारी तस्वीरें आया करती थीं. इन तस्वीरों को फेसबुक पेज पर पोस्ट करवाने के मकसद से मैं शिवेंद्र के संपर्क में आया. शिवेंद्र IAC का फेसबुक पेज संभाल रहे थे. मुझे IAC की वेबसाइट की जिम्मेदारी भी दे दी गई क्योंकि मैं उनमें तकनीकी बैकग्राउंड का इकलौता कार्यकर्ता था. ज्यादातर काम ऑनलाइन होता था, यानी मैं जॉब करते हुए भी आंदोलन में सहयोग कर सकता था.

15 अगस्त को (अन्ना और केजरीवाल की गिरफ्तारी से एक दिन पहले) मैं उस 12 सदस्यीय टीम का हिस्सा था जो कम्युनिकेशन बैकबोन के रूप में काम करने के लिए अंडरग्राउंड हो गई थी. यह अरविंद केजरीवाल का ही आइडिया था, जो सफल रहा. इसने हमें हमारे प्लान में बनाए रखा.

मैंने दफ्तर से 15 दिन की छुट्टी मांगी थी, पर वह नहीं मिली. मैंने इस्तीफे की पेशकश कर दी. बाद में मैनेजर ने मुझे 10 दिन की छुट्टी देना स्वीकार कर लिया. 15 से 18 तारीख तक हम अंडरग्राउंड रहे, उसके बाद मैंने रामलीला मैदान में ही डेरा डाल लिया. वहीं रहा, खाया और सोया. यही वह समय था जब मैंने IAC के फेसबुक पेज के लिए भी पोस्ट लिखनी शुरू कर दी थी.

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आंदोलन खत्म हो गया था. मैंने नौकरी शुरू कर दी और फिर आगे की पढ़ाई की तैयारियों में जुट गया. फिर दिसंबर का आंदोलन हुआ और नाकाम रहा. इसके बाद बहुत कुछ धुंधला हो गया.

20 जनवरी 2012. यह वो तारीख थी जब मुझे अरविंद केजरीवाल का बुलावा आया. उन्होंने मुझे नौकरी छोड़कर अपना एनजीओ PCRF जॉइन करने का प्रस्ताव दिया. एनजीओ के सदस्य के नाते मुझे 20 हजार रुपये हर महीने का स्टाइपेंड ऑफर किया गया, जो मेरी पिछली सैलरी से काफी कम था. केजरीवाल को भी एनजीओ से इतना ही स्टाइपेंड मिलता था. 22 जनवरी को मैंने नौकरी छोड़ दी और अगले दिन उनके एनजीओ से जुड़ गया. लगभग इसी समय दिलीप पांडे भी नौकरी छोड़कर केजरीवाल से जुड़ने भारत आ गए थे.

फरवरी में MS के लिए मेरी एप्लीकेशन न्यूजर्सी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में स्वीकार कर ली गई. मेरे लिए फिर असमंजस की स्थिति थी. लेकिन मैंने यहीं रुकना तय किया. इसके कुछ समय बाद मैंने एक लड़की से शादी कर ली. उससे मैं IAC में ही मिला था. ये दोनों काम परिवार को बिना बताए किए गए थे.

मैं अब भी IAC का सोशल मीडिया मैनेज कर रहा था. लेकिन अप्रैल में शिवेंद्र ने IAC के सारे अधिकार अपने पास रख लिए. अब हमें सब कुछ जीरो से शुरू करना था. इसके बाद मैंने FWAC बनाया और नई टीम बनानी शुरू की. फिर मैं उस टीम का हिस्सा बना जिसने उन 15 मंत्रियों के खिलाफ रिसर्च की, जिनके खिलाफ केजरीवाल जुलाई-अगस्त 2012 में अनशन पर बैठे. इसके बाद ही आंदोलन के नेताओं के बीच मतभेद उभरने शुरू हो गए.

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समस्याओं के हल के लिए अरविंद जो मुहिम चला रहे थे, मैं उनसे जुड़ा रहा, क्योंकि मैं यही सपना लेकर आया था. सितंबर 2012 में जब नई राजनीतिक पार्टी बनाने की बात आई तो हमने अपनी सोशल मीडिया की टीम नए सिरे से बनानी शुरू की. सुधीर, उज्ज्वल, प्रणव और बहुत सारे लोग इससे जुड़े. हमने राष्ट्रीय से लेकर, प्रदेश और जिला स्तर तक 800 से ज्यादा फेसबुक पेज बनाए और जीरो लाइक से सब कुछ शुरू किया. यह ग्रुप भी उसी समय सोमू ने बनाया था. नवंबर में जब पार्टी बनी तो राष्ट्रीय कार्यकारिणी (NE) ने मुझे आधिकारिक रूप सोशल मीडिया की कमान सौंपी.

एक बड़ी दुविधा पार्टी के लॉन्च (26 नवंबर) से पहले मुंह बाए मेरे सामने खड़ी थी. पीसीआरएफ में स्टाइपेंड लेकर काम कर रहे ज्यादातर लोग अब पार्टी दफ्तर में कर्मचारी की हैसियत से ही जुड़ रहे थे. ऑफिस ब्वॉय को मिलाकर इनकी संख्या 17 थी. चूंकि ये लोग कर्मचारी थे, लिहाजा वे पार्टी का हिस्सा नहीं हो सकते थे.

असमंजस यह था कि मैं अपना करियर छोड़ चुका था, जहां मैं अपनी जरूरत से काफी ज्यदा कमा सकता था और अब ये 20 हजार रुपये महीने की छोटी सी रकम मेरे सपने के आड़े आ रही थी. मैंने फैसला लिया. मैंने पार्टी से जुड़ने के लिए पीसीआरएफ से इस्तीफा दे दिया. इस तरह मैं पार्टी की नेशनल काउंसिल का सदस्य बना. नवंबर 2012 से फरवरी 2014 तक मेरा घर पत्नी की कमाई से ही चला जो एक मीडिया हाउस में नौकरी करती थी. वह मुश्किल समय था, पर धीरे-धीरे बीत गया.

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फिर संतोष (कोली) के एक्सीडेंट की खबर आई तो मैं हैरान रह गया. मैं उनके साथ 5-6 दिनों तक अस्पताल में रहा. उस सदमे से उभरने में मुझे कुछ समय लगा, तब तक सोशल मीडिया की हालत बिगड़ चुकी थी. ऐसे गुट बन गए थे जो खुलेआम एक-दूसरे से गाली-गलौज कर रहे थे. एक-दूसरे पर प्रहार और व्यक्तित्व पर कमेंट किए जा रहे थे और यह सब कुछ लोगों की वजह से हो रहा था. इन्हीं लोगों में वह 'डॉक्टर' भी शामिल हैं जो आजकल बड़े एक्टिव रहते हैं.

हमने टीम भंग कर दी और इसे दोबारा बनाना शुरू किया. इसमें पंकज, प्रत्यूष, आरती, मलय और महेंद्र जैसे लोग लाए गए. करीब दो सालों से यह टीम 'वॉर मशीन' की तरह काम कर रही है. 2013 और 2015 के चुनाव में हमने बीजेपी के लिए जो चुनौती पेश की, वह इससे पहले कोई पार्टी नहीं कर पाई. चरणजीत, अरशी और अभिनव हमारे अहम योद्धाओं में से थे, जिन्होंने अपने दिन और रातें AAP के सोशल मीडिया को समर्पित कर दिए.

लोकसभा चुनाव के बाद मैंने अपना सोशल मीडिया बिजनेस शुरू कर दिया. लेकिन इसके शुरू होने से पहले ही मुझे पार्टी की ओर से बुला लिया गया. तब मेरे दोस्त आगे आए. उनके उधार के पैसों से मेरा घर चला. उम्मीद करता हूं कि अपनी नई शुरुआत से मैं बहुत जल्द उनका पैसा लौटा दूंगा.

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इस टीम ने BAAP, अवाम और बीजेपी से लड़ाई लड़ी है और उन्हें हराया है. यह अपने रास्ते में आने वाली हर चुनौती से पार पा सकती है. मैं बस यही सुनिश्चित करूंगा.

मैं इस ग्रुप के सोशल मीडिया की जिम्मेदारी किसी को देकर अलग हो जाऊंगा. मैं भी अपनी जिंदगी और परिवार के लिए कुछ समय चाहता हूं. उम्मीद करता हूं एक दिन मैं इस लायक भी हो जाऊंगा.

तब तक, मैं काम करता रहूंगा, इस बात की परवाह किए बगैर कि कौन क्या कह रहा है!

(इसके बाद अंकित ने AAP के फेसबुक ग्रुप की एडमिनशिप छोड़ दी. वह आज भी पार्टी के सोशल मीडिया एडमिन हैं और बाकी पेज संभालते हैं. हालिया प्रशांत भूषण-योगेंद्र यादव विवाद पर उनकी राय है कि कोई भी शख्स जिसने पार्टी को जानबूझकर नुकसान पहुंचाने की कोशिश की हो, उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए.)

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