
इस बार रिपब्लिक डे परेड पर अबू धाबी के क्राउन प्रिंस पीएम मोदी के मेहमान होंगे. भारत की ओर से शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान को इस कार्यक्रम के लिए न्योता भेजे जाने और उनकी तरफ से इसे कुबूल किए जाने की बड़ी सियासी अहमियत है. पीएम मोदी एक ओर सामरिक मोर्चे पर मजबूती के लिए पश्चिमी देशों को साधने की कोशिश में है तो इकोनॉमी, डिफेंस जैसे क्षेत्रों में भारत की पहुंच बढ़ाने के लिए यूएई से रिश्ते मजबूत करने में जुटे हैं.
पीएम मोदी ने क्राउन प्रिंस को न्योता देकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं. हालांकि, इसे पिछले साल पीएम मोदी की अबू धाबी और दुबई यात्रा के 'रिटर्न' के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन ऐसे समय में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव है, अबू धाबी के क्राउन प्रिंस के भारत दौरे के ऐलान से बड़ा संदेश गया है.
सऊदी अरब की तरह संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई भी पाकिस्तान के पुराने सामरिक सहयोगी रहे हैं. यूएई, सऊदी अरब और पाकिस्तान ही ऐसे तीन देश थे जिन्होंने अफगानिस्तान में तालिबानी शासन को मान्यता दी थी.
लेकिन उस वक्त से अब तक काफी वक्त गुजर गया है. यूएई और सऊदी अरब के पाकिस्तान के रिश्तों में काफी बदलाव आया है. ये दोनों मुल्क सिक्योरिटी और काउंटर-टेररिज्म के मसले पर भारत के काफी करीब आए हैं.
रिपब्लिक डे के मौके पर अबू धाबी के प्रिंस को न्योता देकर पीएम मोदी ने 'मध्य पूर्व' को लेकर अपनी रणनीति में नया दांव खेला है. क्राउन प्रिंस का यूएई की सिक्योरिटी और भू-राजनैतिक नीति निर्धारण में अच्छा खासा प्रभाव है. वो यूएई की सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर भी रह चुके हैं.
अबू धाबी में भारतीय समुदाय की अच्छी खासी आबादी है. इसलिए उस मुल्क के साथ रिश्ते बेहतर की भारत सरकार की दिलचस्पी स्वाभाविक है. पीएम मोदी जब से सत्ता में आए हैं, उनके विदेश दौरों में मध्य पूर्व प्रमुखता से छाया रहा. मोदी यूएई के साथ सैन्य संबंध बनाने को लेकर भी दिलचस्पी दिखाते रहे हैं. दोनों देश आतंकवाद से जंग और सिक्योरिटी के मसले पर एक-दूसरे को हरसंभव सहयोग करेंगे.
पीएम मोदी ने अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान सऊदी अरब, यूएई, कतर, ईरान और अन्य पड़ोसी मुल्कों की यात्राएं की. इससे साफ है कि अरब जगत को लेकर भारत का नजरिया बदल रहा है. पिछले साल जब पीएम मोदी यूएई के दौरे पर गए तो शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के साथ संयुक्त घोषणापत्र में भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत की झलक दिखी. यह एक बड़ा बदलाव था क्योंकि 34 साल बाद भारत का कोई पीएम यूएई गया था. भारत में आर्थिक सुधार के मौजूदा दौर को देखते हुए यह यूएई के लिए पूंजी निवेश का एक आकर्षक और सुरक्षित स्थान बन सकता है. साथ ही भारत चाहता है कि वह यूएई के साथ मिलकर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में काम करे.
मोदी के पीएम बनने के बाद पहले रिपब्लिक डे पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और अगले साल फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद भारत सरकार के सरकारी मेहमान बने.