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उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैश़ी की सक्रियता या सरकार को चुनौती?

इंदिरा गांधी के 100 चहेते कार्यकर्ताओं में शुमार रहे उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी सिर्फ नरेंद्र मोदी सरकार से ही नहीं उलझ रहे, वे उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार को भी दो साल से हिलाए हुए हैं.

अखिलेश पांडे
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  • 20 अक्टूबर 2014,
  • अपडेटेड 6:28 PM IST

उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी सुर्खियों में हैं. वजह, सुप्रीम कोर्ट में दायर उनकी याचिका जिसमें उन्होंने मोदी सरकार से दो-दो हाथ करने का इरादा जाहिर किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से फरियाद की कि आखिर राज्यपाल की कुर्सी की यह कैसी तौहीन कि केंद्रीय गृह सचिव फोन करके उससे इस्तीफा देने को कह दे.

हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अदालत में दाखिल अपने जवाब में कहा कि कुरैशी का आचरण राज्यपाल के पद की गरिमा को कम कर रहा है. केंद्रीय गृह सचिव अनिल गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा कि कुरैशी ने हाल ही में एक बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि बलात्कार जैसे मामले तो खुदा के दखल से ही रुक सकते हैं. गोस्वामी का कहना है कि इतने संवेदनशील संवैधानिक पद पर बैठे शख्स को इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान नहीं देने चाहिए. हालांकि राज्यपाल कुरैशी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. वे कहते हैं कि इसका फैसला उत्तराखंड की जनता करेगी कि उनका आचरण गरिमापूर्ण है या नहीं.

पिछले दिनों 22 जून से 22 जुलाई के बीच जब वे उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक राज्यपाल बने तो महीने भर का उनका कार्यकाल कुछ छाप छोड़ गया. इस दौरान केंद्र सरकार से उनका टकराव हुआ. उन्होंने समाजवादी पार्र्टी के कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान के संचालन वाले मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की वर्षों से लटकी फाइल को एक झटके में पास किया और यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया. कुरैशी बताते हैं कि केंद्र सरकार को जैसे ही इस बात की भनक लगी वैसे ही गृह सचिव गोस्वामी का फोन आया कि राज्यपाल फाइल पर दस्तखत न करें. लेकिन राज्यपाल कार्यालय ने गृह सचिव को बताया कि राज्यपाल फाइल पर दस्तखत कर चुके हैं. कुरैशी कहते हैं, ‘‘गांधी जी की हिंदू-मुस्लिम एकता की पहली मिसाल बने खिलाफत आंदोलन के अगुआ मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम पर बने विश्वविद्यालय को मंजूरी देना मेरे लिए फख्र की बात है.’’

घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए आजम खान कहते हैं, ‘‘हम राज्यपाल महोदय के शुक्रगुजार हैं. इसके पहले राजभवन इस फाइल को सिर्फ इसलिए वर्षों से पास नहीं कर रहा था कि मोहम्मद आजम खान ताउम्र यूनिवर्सिटी के चांसलर क्यों हों? सिर्फ एक शख्स के विरोध में राजभवन मुसलमानों की तालीम के खिलाफ खड़ा रहा.’’

    इन ताजा वाकयात से लगता है कि कभी इंदिरा गांधी की तरफ से चुने गए पहले 100 कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में शामिल भौपाल के कुरैशी अपनी राजनैतिक पृष्ठभूमि के कारण बीजेपी सरकार से टकराव लेने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे. लेकिन मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकारों में मंत्री और सतना से कांग्रेसी सांसद रहे 74 साल के कुरैशी का अंदाज बेलौस है. पिछले दो साल के कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश की कांग्रेस सरकार को भी अपनी अतिसक्रियता से हैरान कर रखा है.

कुरैशी 15 मई, 2012 को उत्तराखंड के राज्यपाल पद पर आसीन हुए थे. उन्होंने बद्रीनाथ धाम की यात्रा की. इसके अलावा उत्तराखंड के चारों धाम के संचालन के लिए विधानसभा या केंद्र से ऐक्ट पारित करने की मांग भी उठाई. उनका कहना था कि तिरुपति बालाजी या अजमेर की दरगाह शरीफ की तर्ज पर इन धामों की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि तीर्थ पुरोहित और बाकी सभी पक्षों के हित सुरक्षित रखे जाएं.

पिछले साल जून में हुए केदारनाथ हादसे के समय भी कुरैशी सुर्खियों में आए थे. उस समय मुख्यमंत्री के केंद्र सरकार से संपर्क करने से पहले ही राज्यपाल ने केंद्र से सुरक्षा बल भेजने और राहत अभियान शुरू करने की मांग कर दी थी. 16 जून की आपदा की खबर सुनते ही उन्होंने पूरी रात जिला प्रशासन और पुलिस समेत पूरी सरकारी मशीनरी को फोन से ही सक्रियता के निर्देश दिए. दिल्ली की एक महिला ने राज्यपाल को फोन पर दिल्ली के तीन सौ स्कूली बच्चों के इस क्षेत्र में फंसे होने की जानकारी दी तो कुरैशी ने उन बच्चों की सुरक्षित निकासी सुनिश्चित कराई. आपदा के बाद पांच दिन तक राजधानी देहरादून से दूर नैनीताल के राजभवन से ही वे फोन, एसएमएस और ईमेल के जरिए अफसरों के संपर्क में रहे और मुख्यमंत्री की तरह निर्देश देते रहे. यहां तक कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की सरकार की शिकायत केंद्र की यूपीए सरकार से कर दी. लोगों में उनकी उपलब्धता का हाल यह रहा कि खच्चर वाले तक उन्हें अपने खच्चरों को सुरक्षित निकालने के लिए फोन कर रहे थे.
लेकिन निर्वाचित सरकार की मौजूदगी में राजभवन की इतनी सक्रियता कितनी जायज है? इस सवाल पर इत्र संजोने के शौकीन कुरैशी कहते हैं, ‘‘जब मैं उत्तराखंड का राज्यपाल बना तो हरिद्वार के एक नामचीन बाबा, जिनसे बड़ा कोई नहीं है, ने कहा कि एक मुस्टंडे को देवभूमि का राज्यपाल बना दिया है, वह यहां क्या करेगा. अपने कामकाज से मैं इसी का जवाब दे रहा हूं.’’
बद्रीनाथ धाम में बस हादसे के बाद वहां पहुंचना और भगवान के दर्शन करना. इसके बाद वहां लाखों लोगों के शौचालय की पर्याप्त व्यवस्था के लिए तुरंत सुलभ इंटरनेशनल से संपर्क करना उनके काम करने के अंदाज रहे हैं.

राज्यपाल होने के बावजूद उन्होंने सरकार को आगाह करने से गुरेज नहीं किया कि कई धार्मिक स्थलों पर कुछ लोग कुंडली मारे बैठे हैं और व्यवस्थाओं को तबाह कर रहे हैं. कुरैशी कहते हैं कि बुजुर्ग और बीमार सड़क से चारधाम यात्रा कैसे करेंगे, राज्य सरकार इन्हें सब्सिडी वाले हवाई टिकट क्यों नहीं देती? यहीं नहीं, भोपाल के हमीदिया कॉलेज से पीएचडी की उपाधि हासिल करने वाले कुरैशी ने प्रदेश के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के किसी भी तरह के अपमान को कुलाधिपति यानी राज्यपाल का अपमान माना. कुलपतियों के सम्मेलन में उन्होंने अफसरों को ताकीद की कि वे शिक्षाविदों से अदब से पेश आएं और ज्यादा साहबगीरी न दिखाएं. लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने प्रदेश की कांग्रेस सरकार को अब तक गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति नहीं करने दी है. वे सरकारी प्रस्ताव को यह कहकर खारिज कर दे रहे हैं कि संस्थान की गरिमा के हिसाब से नाम सुझाया जाए. वे पंतनगर विश्वविद्यालय को राज्य के अधीन राजनीति का अखाड़ा बनने की बजाए केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की भी वकालत करते हैं.

यानी वे अपनी मर्जी के हिसाब से काम कर रहे हैं और राजभवन के भव्य लेकिन नीरस  प्रोटोकॉल में खुद को बांधने को राजी नहीं हैं. गृह सचिव उनके जिस बयान को उन्हें पद से हटाने की दलील बना रहे हैं वह भी उन्होंने यूपी के राज्यपाल की हैसियत से दिया है. केंद्र की सरकार बदलने के बाद राजभवन में बदलाव तय है, फिर भी अदालती आदेश पर सबकी नजर रहेगी.

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