
कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती का बुधवार सुबह निधन हो गया है. वह 83 साल के थे. उनका जन्म 18 जुलाई 1935 को हुआ था. जयेन्द्र सरस्वती कांची मठ के 69वें शंकराचार्य थे. उन्हें 1994 में कांची मठ का प्रमुख बनाया गया था. कांची कामकोटि पीठ आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठों में से एक है. आदि शंकराचार्य ने ही सनातन परंपरा के प्रचार-प्रसार के लिए इनकी स्थापना की थी.
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों का मकसद धार्मिक और दार्शनिक परंपरा के जरिए समाज को नई दिशा दिखाना था. आदि शंकराचार्य ने अल्प आयु में इस मकसद के लिए बहुत काम किए. उन्होंने सन्यासी के आत्मिक स्वरूप को उजागर किया और जीवन से जुडे़ हर एक छोटे और बड़े पहलुओं को समझाने की कोशिश की. वो एक कवि भी थे.
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शंकराचार्य का जन्म केरल के एक गरीब ब्राह्मण (नंबूदरी) परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम शिवगुरु था. उनकी मां का नाम आर्यम्बा था. छोटी सी उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया था. इसके बाद उनकी मां ने उनका पालन-पोषण किया. उनकी मां धार्मिक महिला थीं और कृष्ण की आराधना करती थीं.
जब एक चांडाल को बनाया गुरु
आदि शंकराचार्य से जुड़ा एक किस्सा प्रचलित है. ये किस्सा भारत भ्रमण के दौरान का है. इसके मुताबिक़ उन्होंने काशी प्रवास के दौरान शमशान के चंडाल को अपना गुरु बनाया था. उस वक्त के समाज में चांडाल अस्पृश्य माने जाते थे. कहते हैं कि आदि शंकराचार्य काशी में एक शमशान से गुजर रहे थे जहां उनका सामना चांडाल से हो गया. आदि ने उन्हें सामने से हटने को कहा. जवाब में चांडाल ने हाथजोड़ कर बोला क्या हटाऊं, शरीर या आत्मा, आकार या निराकार.
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चांडाल के इस जवाब ने आदि शंकराचार्य को चकित कर दिया. चांडाल के दार्शनिक विचार से आदि शंकराचार्य इतने प्रभावित हुए कि उसे अपना गुरु बना लिया. बाद में चांडाल से प्रेरित हो कर उन्होंने मनीष-पंचकम की रचना की. इसमें उन्होंने द्वैत का निर्माण करने वाले विभाजनों से आगे देखते हुए समानता की मानसिकता को उजागर करने की कोशिश की.
आदि शंकराचार्य ने दार्शनिक और धार्मिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण पर भी गौर किया. उन्होंने ब्रह्मचर्य की एक ऐसी परिभाषा गढ़ी जिससे उनकी राह पर चलते हुए मानव कल्याण की दिशा में कई महापुरुषों ने सार्थक प्रयास किए और देश को प्रगतिशील बनाने में अहम योगदान दिया.