Advertisement

बोर्ड रिजल्‍ट के बाद जब मन में आया बेहद खतरनाक खयाल

बोर्ड एग्‍जाम में कम नंबर आने से अक्‍सर हम निराशा हो जाते हैं. कुछ स्टूडेंट्स तो ऐसे हैं जो फेल होने या कम नंबर आने को लाइफ का अंत समझने लगते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. लाइफ में सक्सेस का फेल और पास होने से कोई लेना-देना नहीं है.

Symbolic image Symbolic image
अनुराधा पांडे
  • नई दिल्ली,
  • 22 मई 2015,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST

प्रिय,
बोर्ड रिजल्‍ट से दुखी स्‍टूडेंट्स

12वीं का रिजल्ट आने से दो दिन पहले की शाम... बालकनी में बैठी सोच रही थी कि मेरा इकनॉमिक्स का एग्जाम अच्छा नहीं गया था क्या मेरे अच्छे नबंर आएंगे. इसी तरह की कई उलझनें दिमाग में करवटें ले रही थीं. 10वीं में अच्छे नंबर आने के बाद मैं साइंस लेना चाहती थी. मन था डॉक्टर बनूं, लेकिन पापा के कहने पर मुझे कॉमर्स लेनी पड़ी. अकाउंटेंसी में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था. डेबिट क्रेडिट का फंडा ही समझ नहीं आता था और इकनॉमिक्स.. वो तो समझो ऊपर से निकल जाती थी. सोच रही थी कि उस समय अपने मन का कर लिया होता तो आज ऐसे रिजल्ट को लेकर बैचेनी नहीं हो रही होती. खैर अब जो हो गया उसके बारे में क्या सोचना. सच्चाई यही थी कि कल रिजल्ट आने वाला था. दिमाग में सबसे बड़ी टेंशन चल रही थी कि अगर 80-90 पर्सेंट नहीं आए तो अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलेगा.

Advertisement

अगले दिन साइबर कैफे रिजल्ट देखने गई. अभी सोच ही रही थी कि साइबर कैफे वाले ने रिजल्ट का प्रिंटआउट मेरे हाथ में थमा दिया. पहले दो सब्जैक्ट के नंबर देखकर तो मैं खुश हो गई. बिजनेस स्टडीज और इंग्लिश में 75 से ज्यादा नंबर लेकिन इकनॉमिक्स और अकाउंट्स में जिस बात का डर था वही हुई. इकनॉमिक्स में तो 45 ही मार्क्स आए थे. अब पहले दो सब्जेक्ट के नंबर की खुशी भी काफूर हो गई.

रास्ते भर सोचते आई अब क्या होगा? अच्छे कॉलेज में एडमिशन कैसे मिलेगा? घरवाले क्या कहेंगे? बेस्ट फॉर में इतने नंबर नहीं थे कि अच्छे कॉलेज में एडमिशन हो जाए. मन में आया कि इतने कम नंबर से करियर नहीं बनने वाला. अब आगे क्या होगा? जी कर क्या फायदा?  सोचा घर नहीं जाती, कहीं किसी ट्रक के आगे आकर जान दे देती हूं.  न रहेंगे, न कोई बोलेगा कि नंबर अच्छे क्‍यों नहीं आए? सब कुछ अजीब लग रहा था, लग रहा था पूरी दुनिया सिमट कर रह गई है.

Advertisement

घर आई पापा नाश्‍ता कर रहे थे. बोले, 'रिजल्ट आ गया?' मैं कुछ नहीं बोली और रिजल्ट का प्रिंटआउट उन्हें दे दिया.

सोच रही थी अब पापा शुरू हो जाएंगे. फिर वही अच्छे कॉलेज, एडमिशन, नंबर और करियर को लेकर लेक्‍चर शुरू हो जाएगा. लेकिन पापा ने प्यार से अपने पास बुलाया और कहा, 'बेटा, रिजल्ट को भूल जाओ और अब आगे कि सोचो.' इतना सुनना था कि पापा से यह कहते हुए लिपट गई कि पापा मैं अब जीना नहीं चाहती.

मेरी ऐसी बातें सुनकर पापा की आंखों में आंसू आ गए और कहने लगे, 'ये बस तुम्हारी लाइफ का लर्निंग एक्सपीरियंस था. तुमने अपनी तरफ से अच्छी कोशिश की. लाइफ में इतनी सी चीज के लिए तुम अपनी जिंदगी को खोने की सोचने लगीं. अच्छे नंबर आना ही लाइफ में सक्सेफुल होने के लिए काफी नहीं है. सभी की लाइफ में एक समय ऐसा आता है जब आपको लगता है कि सभी चीज़ें आपके विरोध में हो रहीं हैं. आपको लगता है कि आप जीवन के उस मोड़ पर खड़े हैं जहां सब कुछ गलत हो रहा होता है. लेकिन असल में ऐसी परिस्थिति आपको मजबूत बनाती है. ऐसी हालात का आपको डटकर सामना करना चाहिए और बिना हिम्मत हारे आगे बढ़ना चाहिए.'

Advertisement

मेरे सिर पर प्‍यार भरा हाथ रखते हुए उन्‍होंने मुझे समझाते हुए कहा, 'कम नंबर लाकर भी तुम बुलंदियों तक पहुंच सकती हो, लेकिन सबसे जरूरी है आत्मविश्वासी बनना. अगर तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास है तो तुम्हें सक्सेसफुल होने से कोई नहीं रोक सकता.'

पापा आगे समझाते हुए बोले, 'क्या तुम न्यूटन को जानती हो? वो मैथ्स में जीनियस था, लेकिन स्कूल के दौरान उसके अच्छे नंबर नहीं आते थे. यहां तक कि न्यूटन की मां ने उन्हें स्कूल भेजना बंद कर दिया था क्योंकि वे एक अच्छे स्टूडेंट नहीं थे. महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन भी कुछ ऐसी ही कहानी है. लाइट बल्ब का आविष्कार करने से पहले उन्होंने लगभग 1000 एक्सपेरीमेंट किए थे, जिनमें वो फेल हो गए थे. उनके टीचर उनके बारे में कहा करते थे कि तुम जीवन में कभी कुछ भी नहीं सीख सकते क्योंकि तुम बेवकूफ हो. क्या तुम जानती हो कि अपनी थ्योरी से भौतिक विज्ञान को नई दिशा देने वाले आइंस्टीन बचपन में ठीक से लोगों से कम्यूनिकेट तक नहीं कर पाते थे.'

पापा ने कहा, 'अब जरा सोचो की अगर एडिसन इतने एक्सपेरीमेंट करने के बाद थककर बैठ जाता या फिर आइंस्टीन भी खुद को दिमागी रूप से कमजोर मान के बैठ जाता तो क्या होता? इसलिए इस बात को हमेश याद रखो Success is not final, failure is not fatal: it is the courage to continue that counts.'

Advertisement

पहली बार अपने अनुशासन और सख्‍ती की वजह को बेपर्दा करते हुए पापा ने मुझसे कहा, 'अब तक मैं तुम पर अपनी मर्जी इसलिए थोपता रहा कि तुम बच्ची हो. तुम्हें समझ नहीं, लेकिन अब तुम बड़ी हो गई हो. अब तुम हमें बताओ कि तुम करियर में क्‍या करना चाहती हो. हम उस लक्ष्‍य को हासिल करने में तुम्हारी मदद करेंगे. रास्ता तुम्हें अपनी मर्जी और रुचि के अनुसार चुनना होगा.'

पापा की ऐसी बातें सुनकर अचानक लगा कि सबकुछ एक झटके में ठीक हो गया है. अब न मन में कोई बोझ था और न ही भविष्‍य को लेकर कोई चिंता. बस फिर क्या था सुसाइड का आइडिया कैंसिल...............

आपकी ही तरह एक स्‍टूडेंट

आप भी हमारे साथ रिजल्‍ट से जुड़े अपने अनुभव aajtak.education@gmail.com पर भेज सकते हैं, जिन्‍हें हम अपनी वेबसाइट www.aajtak.in/education पर साझा करेंगे.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement