
कानपुर के पास हुए भयानक रेल हादसे के 36 घंटे बाद रेलवे बोर्ड ने एक रिव्यू मीटिंग बुलाई. चेयरमैन रेलवे बोर्ड ए के मित्तल की अगुवाई में बुलाई गई इस मीटिंग में रेलवे बोर्ड के सभी 7 मेंबर मौजूद रहे. 3 घंटे तक चली इस मीटिंग में रेलवे में सेफ्टी और सिक्योरिटी को लेकर उठ रहे सवालों पर विचार किया गया. बोर्ड मीटिंग में कानपुर के पास हुए भीषण रेल हादसे के बारे में भी चर्चा हुई इस रेल हादसे में हुए घटनाक्रम को देखते हुए रेलवे बोर्ड ने कई अहम फैसले लिए. इन फैसलों में सबसे बड़ा फैसला यह है कि जर्मन टेक्नोलॉजी के एलएचबी कोच का उत्पादन तेजी से बढ़ाया जाएगा और साथ ही मौजूदा आईसीएफ कोचों में साकू कपलर या सीबीसी कपलर लगाए जाएंगे.
रेलवे के एक आला अफसर के मुताबिक रेलवे की सेफ्टी विंग को और ज्यादा मजबूत करने का फैसला लिया गया बैठक में कहा गया कि अलग-अलग डिवीजन और रेलवे कॉरिडोर का समय-समय पर सेफ्टी ऑडिट भी किया जाएगा इसके लिए निजी क्षेत्र से सेफ्टी विशेषज्ञों को भी जोड़ा जाएगा. सेफ्टी ऑडिट में संबंधित रेलवे कॉरिडोर के तमाम पहलुओं के बारे में तथ्यपूर्ण जानकारी जुटाई जाएगी और इसके लिए उचित सुझाव भी दिए जाएंगे.
रेलवे बोर्ड ने रेल हादसों के खतरे को कम करने के लिए यह फैसला लिया है कि उन रेल मार्गों पर जिनको 100 फिसदी इस्तेमाल किया जा रहा है वहां पर कोई भी नई रेलगाड़ी नहीं चलाई जाएगी. रेलवे बोर्ड की मीटिंग में इंदौर पटना एक्सप्रेस में इस्तेमाल किए गए आईसीएफ कोच के बारे में भी चर्चा हुई. जानकारों के मुताबिक कानपुर के पास हुए रेल हादसे में मरने वाले लोगों की संख्या इतनी ज्यादा होने के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि इसमें पुरानी तकनीक पर बने आईसीएफ कोच लगे हुए हैं.
इन कोच की तकनीक आउटडेटेड है. दुर्घटना होने की स्थिति में ऐसे डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं और एक दूसरे को तोड़ देते हैं कुछ ऐसा ही कानपुर के पास हुए रेल हादसे में हुआ है. देशभर में चलने वाली सभी ट्रेनों में 53 हजार आईसीएफ कोच हैं. लिहाजा रेलवे बोर्ड ने आईसीएफ डिब्बों में कपलिंग बदलने का फैसला किया है इन डिब्बों में साकू कपलर या सीबीसी कपलर लगाए जाएंगे.
इसके अलावा रेलवे बोर्ड की मीटिंग में देशभर में सभी रेल पटरियों की सही जांच के लिए अल्ट्रासोनिक फ्ला डिटेक्टर पटरियों के किनारे लगाए जाने का फैसला भी लिया गया है. जानकारों के मुताबिक देशभर में रेल पटरियों के किनारे-किनारे इस तकनीक के सेंसर लगाए जाने से पटरी में हुई किसी भी टूट फूट के बारे में संबंधित रेलवे को समय से जानकारी मिल पाएगी जिससे इस तरह के भीषण हादसों से बचा जा सकेगा ऐसा कहा जा रहा है कि हर किलोमीटर की रेल पटरी के किनारे अल्ट्रासोनिक डिटेक्टर लगाने की कीमत 8 से 10 लाख रुपए पड़ेगी. इसी के साथ रेलवे कॉरिडोर की मरम्मत के लिए मेंटेनेंस ब्लॉक की जानकारी रेलवे टाइम टेबल में दी जाएगी. मेंटेनेंस ब्लॉक की समय अवधि में संबंधित रेलवे कारिडोर में रेलगाड़ियों की आवाजाही बंद कर दी जाएगी और वहां की पूरी मरम्मत हो जाने के बाद ही रेलवे ट्रैक को ओपन किया जाएगा.