
त्रिपुरा विधानसभा चुनावों के नतीजे हमारे सामने हैं. देश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने किसी राज्य में सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि उसे करारी शिकस्त देकर सत्ता से बाहर भी कर दिया. त्रिपुरा में बीजेपी को मिली यह जीत उसके लिए कई मायने रखती है. महज दो साल की मेहनत के साथ बीजेपी ने वह कर दिखाया जो कांग्रेस 2 दशकों से अधिक समय से करने की कोशिश में थी. बीजेपी की त्रिपुरा में यह जीत इसलिए भी अहम हैं क्योंकि लेफ्ट पार्टी को शिकस्त देने के साथ ही उसने राज्य में कांग्रेस को अपना खाता खोलने का मौका भी नहीं दिया.
बीजेपी के इस प्रदर्शन के बाद अब महज केरल में लेफ्ट पार्टी की सरकार बची है. यहां भी लेफ्ट को सत्ता से बाहर करने में कांग्रेस लगातार कोशिश में रहती है लेकिन अब त्रिपुरा के नतीजों के बाद इस राज्य में वामपंथ राजनीति से मुक्त करने में क्या बीजेपी को अधिक प्रभावी माना जा सकता है?
ममता ने गिराया था पश्चिम बंगाल में लेफ्ट का किला
इससे पहले लेफ्ट के किले को भेदने का काम पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की त्रिणमूल कांग्रेस ने किया था. 2009 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी और कांग्रेस के गठबंधन वाली यूपीए ने पहली बार पांच दशकों से सबसे अधिक सीटें जीतने वाली वामदलों को शिकस्त दी. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भी पीछे छोड़ टीएमसी सबसे आगे खड़ी हो गई.
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लेकिन वाम किले को ध्वस्त करने का असली काम 2011 के विधानसभा चुनावों में हुआ जब राज्य में 1977 से लगातार चली आ रही वामपंथी सरकार को ममता बनर्जी की त्रिनमूल कांग्रेस ने उखाड़ फेंका. इसके बाद एक बार फिर 2016 में ममता ने राज्य में वामपंथी दलों के साथ-साथ कांग्रेस और बीजेपी को शिकस्त देकर इस वाम किले को अपने नाम कर लिया.
अब केरल में बीजेपी बनाम लेफ्ट?
त्रिपुरा में बीजेपी के हाथों शिकस्त की संभावनाओं के बीच सीपीआई(एम) जनरल सेक्रेटरी एस सुधाकर रेड्डी ने दावा किया है कि उनकी पार्टी के लिए बीजेपी नंबर वन दुश्मन है. रेड्डी ने दलील दी कि बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए लेफ्ट पार्टियों को अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है. रेड्डी के मुताबिक बीजेपी को शिकस्त देने के लिए जरूरी है कि वह एक वृहद प्लैटफॉर्म पर शामिल हो. लिहाजा बिना नाम लिए इशारा किया कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए अब वामदलों को कांग्रेस का दामन पकड़ने के विकल्प पर सोचना चाहिए.
हालांकि इससे पहले की लेफ्ट और कांग्रेस के गठबंधन का कयास लगे रेड्डी के इस बयान को बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस से बढ़ती नजदीकी के तौर पर न देखे जाने की सफाई दे दी गई. यह सफाई केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने दी. विजयन ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ किसी गठबंधन की संभावना नहीं है.
गौरतलब है कि त्रिपुरा चुनावों से पहले वामपंथी नेता सीताराम येचुरी ने भी यही दावा किया था. येचुरी ने कहा था कि लेफ्ट पार्टियों की सबसे बड़ी दुश्मन बीजेपी है और उसे हराने के लिए कांग्रेस का साथ जरूरी है. येचुरी के इस बयान का त्रिपुरा समेत केरल के वामपंथी नेताओं ने जमकर विरोध किया था. दोनों राज्यों में पार्टी इकाइयों का दावा था कि वह अपने दम पर दोनों राज्यों में लेफ्ट के किले को बचाने में सफल होंगे. दोनों राज्यों में लेफ्ट पार्टियां का मानना है कि कांग्रेस से किसी तरह का गठबंधन उनके लिए नीतिगत तौर पर गलत साबित होगा.
बहरहाल त्रिपुरा के नतीजों से राज्य में वामदल को जवाब मिल चुका है. यदि उन्होंने येचुरी की बात को मानते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन का प्रयास किया होता तो संभवत: राज्य में नतीजे कुछ और होते. अब देखना है कि क्या केरल में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन त्रिपुरा में पार्टी को मिली हार से कोई सबक लेते हैं? या फिर वह भी केरल में बीजेपी का अकेले मुकाबला करने की जिद पर बीजेपी से लेफ्ट बनाम राइट का आखिरी स्क्रिप्ट लिखेंगे.