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यशवंत सिन्हा के बाद स्वदेशी जागरण मंच ने केंद्र की नीतियों पर बोला हमला

उन्होंने कहा कि यशवंत सिन्हा की राय से मैं पूरा सहमत नहीं हूं लेकिन मौजूदा आर्थिक नीतियों में बदलाव की जरूरत है. सरकार को रोजगार पैदा करने की जरूरत है, वरना यह राजनीतिक नारा बना रहेगा. जरूरत इस बात की है कि दीन दयाल उपाध्याय के विचारों पर अमल किया जाए.

यशवंत के बाद केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर स्वदेशी जागरण मंच ने भी उठाए सवाल यशवंत के बाद केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर स्वदेशी जागरण मंच ने भी उठाए सवाल

बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा के लेख ने भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत पर नए सिरे से बहस खड़ी कर दी है. राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली पर सीधा हमला बोला और देश की आर्थिक हालत को लेकर प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री से इस्तीफा मांगा है.

यशवंत सिन्हा के लेख ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया है और पार्टी नेतृत्व यशवंत के आरोपों पर सीधे टिप्पणी करने से बच रहा है. सिन्हा के बाद अब स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाए हैं.

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स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्विनी कुमार ने कहा कि मौजूदा आर्थिक नीतियों में कुछ चीजें हैं जिन्हें बदलना जरूरी है. रोजगार इस देश में एक राजनीतिक नारा बन गया है. जीएसटी के कारण छोटे कारोबारी प्रभावित हुए हैं.

उन्होंने कहा कि यशवंत सिन्हा की राय से मैं पूरा सहमत नहीं हूं लेकिन मौजूदा आर्थिक नीतियों में बदलाव की जरूरत है. सरकार को रोजगार पैदा करने की जरूरत है, वरना यह राजनीतिक नारा बना रहेगा. जरूरत इस बात की है कि दीन दयाल उपाध्याय के विचारों पर अमल किया जाए.

यशवंत से उलट है भारतीय मजदूर संघ की राय   

भारतीय मजदूर संघ के महासचिव बृजेश उपाध्याय का कहना है कि यशवंत सिन्हा एक राजनीतिक व्यक्ति हैं. मैं देश की अर्थव्यवस्था के बारे में अलग-अलग अर्थशास्त्रियों के अलग-अलग विचार पढ़ता रहता हूं. मेरा यह मानना है कि अर्थशास्त्री लोग एकमत नहीं हैं, जिन मुद्दों का यशवंत सिन्हा ने जिक्र किया है वह नोटबंदी हो या जीएसटी हो. इसमें मजदूर क्षेत्र का होने के नाते हमारा अलग प्रकार का अनुभव आ रहा है. इन विषयों पर अभी से कोई निर्णायक मत बनाना बहुत जल्दी है.

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'नोटबंदी और जीएसटी से मजदूरों को फायदा'

उन्होंने कहा, 'मैं मजदूर फ्रंट पर देखता हूं कि नोटबंदी के बाद एक करोड़ 27 लाख नए लोग प्रोविडेंट फंड में रजिस्टर हुए हैं. सोशल सिक्योरिटी के दायरे में आए हैं. फार्मूलॉइज हो रहा है, मजदूर तो इनफॉर्मल सेक्टर में था. उसको सोशल सिक्योरिटी और बाकी सुविधाएं नहीं मिलती थी. इस सुविधा के कारण इस दायरे में आ रहा है. इससे टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा. इस सबसे 46-47 करोड़ मजदूरों को लाभ मिलने जा रहा है.

भारतीय मजदूर संघ के महासचिव का कहना है कि आर्थिक हालात खराब हुए ऐसा मुझे कहीं नहीं दिख रहा है. 70 साल से अर्थव्यवस्था का मैं विश्लेषण कर रहा हूं. ऐसी कोई बात दिखाई नहीं देती. जीएसटी या नोटबंदी से बहुत अच्छा हुआ है, इस प्रकार के निर्णय पर जाना अभी ठीक नहीं है.

बेकार की फिलॉसफी है जीडीपीः उपाध्याय

जीडीपी के बारे में बृजेश उपाध्याय का कहना है कि जीडीपी के बारे में हमारा पहले दिन से मत है कि जीडीपी का वास्तविक प्रकृति से इसका कोई रिश्ता नहीं है. यह बेकार की फिलॉसफी है. प्रगति का मापन करना इसके आधार पर कोई पैमाना नहीं है. कोई कारण नहीं है.

पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत है अर्थव्यवस्थाः गोयल

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इन सबके बीच केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सरकार का बचाव किया और कहा कि दुनिया देख रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले तीन सालों में भारत की अर्थव्यवस्था ने तेजी से विकास किया है. उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास में संभवतः पहली बार भारत वैश्विक विकास को ड्राइव कर रहा है.

गोयल ने कहा कि इस सरकार ने अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर बड़े सुधार किए हैं, किसी ने सोचा नहीं था कि इतने बड़े देश में जीएसटी जैसे सुधार लागू करना संभव हो सकता है. भारत दुनिया के सबसे बड़े देशों में है जिसने जीएसटी लागू किया है. सब के पास अपने विचार रखने की स्वतंत्रता है लेकिन सच्चाई ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था पहले के मुकाबले अब कहीं ज्यादा मजबूत है.

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