![एजेंडा आजतक में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली [फोटो-आजतक]](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/201812/jet1_750_1545123998_749x421.jpeg?size=1200:675)
देश में किसी तरह की बैंकिंग क्राइसिस नहीं है, यूपीए सरकार के दौरान यह थी. 2008 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्लोडाउन शुरू हो गया था. इसका असर भारत पर भी पड़ा लेकिन आज ऐसा नहीं है. यूपीए सरकार ने देश का धन लुटा दिया. यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान साढ़े आठ लाख करोड़ एनपीए था उसे कागज में ढाई लाख करोड़ रुपये दिखा दिया गया. यह कहना है वित्त मंत्री अरुण जेटली का.
एजेंडा आजतक में पहुंचे जेटली ने कहा कि यूपीए सरकार ने विचित्र प्रकार की नीति अपनाई. जो लोन नहीं दे पा रहे थे उनका लोन रिस्ट्रक्चर कर दिया गया. बैंकों के दरवाजे खोल दिए गए कि जिसको जितना पैसा चाहिए ले लो. जब अर्थव्यवस्था ठीक रहती है तब तो इसे ठीक माना जाता है लेकिन जब मंदी का दौर हो तो इसका नुकसान उठाना पड़ता है. जिन्हें दोबारा कर्ज दिए गए वो न तो कर्ज वापस कर पाए और न ही ब्याज दे पाए. जेटली ने कहा कि इसके बाद यूपीए सरकार ने दूसरा विचित्र कार्य किया जो अपराध था. यूपीए के कार्यकाल के दौरान एनपीए 8.5 लाख करोड़ के हो गए, कागज में इसे 2.5 लाख करोड़ का कर दिया गया. रिजर्व बैंक भी इसको देखता रहा. एनडीए सरकार ने बैंकों को बदहाली से निकालने का प्रयास किया.
जेटली ने कहा कि माल्या ने जो पैसा लिया वह यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान लिया. बीजेपी की सरकार आते ही उसे वापस लाने की कोशिशें हुईं. सरकार उसमें सफल भी हो रही है. जेटली ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि यूपीए सरकार ने देश के पैसे को लुटा दिया.
जेटली ने कहा कि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को कोई खतरा नहीं है. देश की सरकार चुनी हुई होती है और उससे पब्लिक को जवाब देना होता है. रिजर्व बैंक को इसका जवाब नहीं देना होता. इसलिए तरह-तरह के तंत्र इस्तेमाल करके उसमें प्रधानमंत्री के स्तर पर मीटिंग होती है, आरबीआई की बोर्ड मीटिंग और कोशिश की जाए कि इस लिक्विडिटी और क्रेडिट के मुद्दे को हल करिए. यह इतना सरल विषय नहीं है. हिंदुस्तान का राजनीतिक पॉलीटिकल मीडिया इसे समझ नहीं पाया.
जेटली ने कहा कि लिक्विडिटी बनी रहे यह बाजार के लिए अच्छा होता है. उन्होंने उदाहरण के साथ इसे समझाया कि अगर आपने एक बिल्डर से घर खरीदा है. आप ईएमआई नहीं दे पा रहे हैं और बिल्डर के पास घर बनाने के लिए पैसे नहीं हैं तो इससे समस्या तो होनी ही है. हालात ऐसे रहेंगे तो सीमेंट का उत्पादन गिरेगा, लोहे का उत्पादन गिरेगा.
जेटली ने दावा किया कि न तो बजट के लिए न तो सरकार के काम के लिए आरबीआई से उन्हें एक रुपये चाहिए लेकिन यह देखना होगा कि आरबीआई को कितना रिजर्व फंड चाहिए.