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एम्स में आए सेल्फी एडिक्शन के तीन मामले

रिया चाहती थी कि इंस्टाग्राम और फेसबुक पर उसकी तस्वीर सुंदर दिखे. इसलिए वह अपने कई घंटे बर्बाद करती थी और अनहेल्दी लाइफ भी जीती थी.

एम्स में आए तीन मामले. एम्स में आए तीन मामले.
अभि‍षेक आनंद
  • नई दिल्ली,
  • 09 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 12:27 PM IST

दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली 18 साल की रिया (बदला हुआ नाम) जब ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) में नाक की सर्जरी के लिए ईएनटी डिपार्टमेंट पहुंची तो डॉक्टर ने उसे साइकाइट्री वार्ड में भेज दिया. जांच के बाद डॉक्टर को पता चला कि उसकी नाक में छेद नहीं है और उसे 'कोई और ही दिक्कत' है. डॉक्टर ने लड़की की 'बीमारी' का नाम सेल्फीसाइड बताया.

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हॉस्पिटल के मुताबिक, रिया सेल्फीसाइड से पीड़ित कोई पहली लड़की नहीं है, इसके अलावा एम्स में ही कम से कम दो और मामले सामने आ चुके हैं. सर गंगा राम हॉस्पिटल में भी तीन ऐसे मरीजों का पता चला था.

सेल्फीसाइड एक ऐसे डिसऑर्डर को कहा जाता है जिसमें कोई शख्स मोबाइल के सामने लगातार पोज देता रहे और अपनी तस्वीरें सोशल साइड पर पोस्ट कर फीडबैक का इंतजार करे.

बार-बार आइना देखते हैं ऐसे लोग
एम्स में साइकाइट्री डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नंद लाल कहते हैं कि तीनों मरीज अपनी बॉडी पोस्चर जानना चाहते थे और उनमें body dysmorphic डिसऑर्डर हो गया था जो बाद में obsessive compulsive डिसऑर्डर में बदल गया. ऐसे मरीज बार-बार आइने में अपनी छवि देखते रहते हैं.

रिया का इलाज करने वाले डॉक्टर ने कहा- 'वह यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि इंस्टाग्राम और फेसबुक पर उसकी तस्वीर सुंदर दिखे. इसलिए वह अपने कई घंटे बर्बाद करती थी और अनहेल्दी लाइफ भी जीती थी.'

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काउंसिलिंग के बाद रिया इस बात पर राजी हो गई कि उसे नाक की सर्जरी की जरूरत नहीं है. डॉक्टर का कहना है कि यह सबसे नई लाइफस्टाइल की बीमारियों में से एक है. अमेरिकी साइक्लॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक, 60 फीसदी महिलाएं सेल्फीसाइड से पीड़ित हैं और उन्हें इसका अहसास नहीं होता.

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