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अखिलेश युग में मुलायम खेमे के इन 5 नेताओं के नहीं आने वाले 'अच्छे दिन'

अखिलेश के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमर सिंह ने अपना पक्ष साफ कर दिया है कि वे अखिलेश को आशीर्वाद और सलाह तो दे सकते हैं लेकिन उनके साथ काम नहीं कर सकते.

अखिलेश अखिलेश
संदीप कुमार सिंह
  • लखनऊ,
  • 19 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 7:24 PM IST

समाजवादी पार्टी में अखिलेश युग की शुरुआत हो चुकी है. मुलायम खेमे ने पूरी तरह अपनी हार स्वीकार कर ली है. सपा के अब एक ही सर्वेसर्वा हैं... अखिलेश यादव. अब पार्टी में वही होगा जो वे चाहेंगे. बुधवार शाम अपने चहेते युवा साथियों की 'घर वापसी' का आदेश दे उन्होंने यह बात साफ भी कर दी है. अब उम्मीद जताई जा रही है कि एक ओर जहां अखिलेश खेमे के तमाम नेताओं के प्रमोशन होगा तो कुछ ऐसे नेता भी होंगे जिन्हें डिमोट भी किया जा सकता है.

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अखिलेश के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमर सिंह ने अपना पक्ष साफ कर दिया है कि वे अखिलेश को आशीर्वाद और सलाह तो दे सकते हैं लेकिन उनके साथ काम नहीं कर सकते. ऐसे में तय है कि मुलायम खेमे के वफादार रहे कुछ नेताओं के अधिकार क्षेत्रों में कुछ कटौती हो सकती है. आइए ऐसे 5 नेताओं के बारे में आपको बताते हैं जो समाजवादी दंगल में मुलायम के साथ थे लेकिन पासा पलटने के बाद अभी शांत हैं.

शिवपाल यादव
मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई. अखिलेश गुट से सीधी टक्कर इन्होंने ही ली थी. पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं का हुआ. चुनाव आयोग के फैसले के बाद से शांत, फिलहाल सपा में महज एक कार्यकर्ता की भूमिका में. मुलायम सिंह की 38 लोगों कि अंतिम लिस्ट में जसवंतनगर सीट से उनका नाम है (आपको बता दें कि पहले शिवपाल का नाम नहीं था, हालांकि उनके बेटे आदित्य यादव का नाम था). बुधवार को शिवपाल ने मीडिया में इतना जरूर कहा कि, "हां, मैं चुनाव लड़ूंगा." पार्टी में उनके समर्थक जसवंतनगर में जुट गए हैं. उनकी कोशिश है कि इस बार चुनाव में सबसे बड़ी जीत जसवंतनगर सीट से शिवपाल यादव की ही हो.

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आपको बता दें कि जसवंतनगर सपा की पारंपरिक सीट है. यह सीट मुलायम सिंह यादव से पहले उनके गुरू रहे नत्थूराम के नाम थी. 1967 में मुलायम पहली बार इसी सीट से जीत कर विधानसभा पहुंचे थे. मुलायम सिंह के बाद 1996 से अब तक यह सीट शिवपाल यादव के पास है. शिवपाल यहां से लगातार चार बार विधायक रह चुके हैं. 2012 के चुनावों में शिवपाल ने जसवंतनगर सीट से 81 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी. चुनावों में शिवपाल को कुल 1,33,563 वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रहे बीएसपी के प्रत्याशी मनीष यादव को कुल 52,479 वोट ही मिले थे.

बेनी प्रसाद वर्मा
मुलायम के खास रहे. मनमाफिक बातें न मानने पर कांग्रेस का दामन थाम चुके ये कुर्मी नेता एक बार फिर मुलायम के साथ खड़े हैं. कांग्रेस में जाने के बाद बेनी ने मुलायम के खिलाफ तमाम बातें कहीं लेकिन उत्तर प्रदेश में कुर्मी वोट को ध्यान में रखते हुए मुलायम ने और कांग्रेस में अपना भविष्य न देख बेनी ने पुरानी बातें बिसार फिर से नई शुरुआत की है. लेकिन, समाजवादी दंगल के बाद एक बार फिर बेनी का दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है. विवाद के दौर में मुलायम के खेमे में खड़े बेनी ने अखिलेश को मनाने की कोशिश तो की थी लेकिन मीडिया में टिकट को लेकर कुछ बातें भी कही थीं.

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यहां आपको बता दें कि बेनी प्रसाद ने कहा था कि, "चुनाव में आप सभी को खुश नहीं कर सकते." बेनी को यह बात इसलिए बोलनी पड़ी क्योंकि वे मुलायम-शिवपाल से अपने बेटे राकेश वर्मा के लिए टिकट ले चुके थे. बाराबंकी जिले की रामनगर सीट से बेनी के बेटे राकेश वर्मा को टिकट दिया गया है. यह टिकट अखिलेश के करीबी मंत्री अरविंद सिंह गोप के नाम था. अब जाहिर है कि नई सल्तनत में राकेश वर्मा का टिकट कट सकता है (आपको बता दें कि रामनगर में गोप प्रचार भले न कर रहे हों लेकिन उनका जनसंपर्क लगातार जारी है). बेनी भले ही राज्यसभा पहुंच चुके हों लेकिन संगठन में उनकी कोई भूमिका होगी ऐसा मुश्किल ही लगता है.

अंबिका चौधरी
अंबिका चौधरी राजस्व मंत्री के पद से बर्खास्त किए गए थे. शिवपाल के खास नेता, विवाद के दौर में लगातार मुलायम खेमे में ही नजर आए. स्पष्ट है कि अखिलेश युग में उनके अधिकार सीमित ही रहेंगे. चौधरी पर जमीन हथियाने का मामला कई बार उठ चुका है. प्रदेश सरकार में मंत्री रहने के दौरान अंबिका चौधरी के ऊपर अपने पैतृक गांव कपूरी में लोगों के कच्चे और पक्के मकानों को सरकारी बुलडोजर लगवाकर गिरवाने के बाद जमीन पर कब्जा जमाने का मामला विधानसभा में उठ चुका है. इसके अलावा गांव के तालाब को पटवाकर अपने रिश्तेदारों को जमीन आवंटित करवाने का भी आरोप लग चुका है. मुलायम सरकार में भी राजस्व मंत्री रहे चौधरी पर यह भी आरोप है कि लखनऊ के चिनहट इलाके में 9 एकड़ जमीन उन्होंने कथित रुप से फर्जी तरीके से पत्नी के नाम आवंटित करवाई थी, यह मामला भी विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान उठ चुका है.

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गायत्री प्रजापति
अखिलेश ने सबसे ज्यादा बार अपने कैबिनेट से किसी मंत्री को निकाला है तो वे हैं अमेठी से विधायक गायत्री प्रसाद प्रजापति. आपको बता दें कि 2002 में जो व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करता था, उसके पास बीपीएल कार्ड था आज वह करोड़पति है. गायत्री के ऊपर लोकायुक्त की भी नजर है. उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने विभाग कोयला और खनन मंत्रालय का इस्तेमाल कर अकूत धन-संपदा अर्जित की. मुलायम के खास और उनके दूसरे बेटे प्रतीक यादव के करीबी गायत्री प्रजापति से अखिलेश के रिश्ते ज्यादा मधुर नहीं रहे हैं. मुलायम के दबाव में अखिलेश ने उन्हें दोबारा मंत्री पद तो दे दिया था लेकिन अब ऐसा फिर हो मुश्किल ही नजर आ रहा है.

आशु मलिक
सपा का नया मुस्लिम चेहरा बनने का सपना संजोए एमएलसी आशु मलिक मुलायम खेमे में खड़े नजर आए. आशु मलिक मुलायम खेमे के ऐसे नेता हैं जिनसे अखिलेश अमर सिंह जैसा रश्क रखते हैं. आशु और अमर के खिलाफ अखिलेश के तेवर रजत जयंती समारोह और आपातकालीन अधिवेशन में सामने आ चुका है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अखिलेश ने रजत जयंती समारोह के दौरान मंच से आशु मलिक को धक्का भी दिया था. इसके अलावा यह भी खबरें आई थीं कि आशु मलिक के साथ अखिलेश समर्थक (खासकर वन मंत्री पवन पांडे) ने हाथापाई भी की थी. आपको बता दें कि अखिलेश एक समाचार पत्र में छपे आर्टिकल के चलते मलिक से नाराज थे, उन्होंने अपने भाषण में इस बात का कई बार जिक्र भी किया था. अब जाहिर है कि सपा में तेज रफ्तार से आगे बढ़ रहे आशु मलिक की गति कुछ कम होगी.

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आशु की रफ्तार का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने 2010 में अपना राजनैतिक सफर शुरू किया था और 2015 में एमएलसी बन गए. 2011 में आशु मलिक सपा सरकार के प्रचारक बनाए गए थे. 2012 और 2014 के चुनावों मे उन्होंने कई बड़ी रैलियों में हिस्सा लिया और अखिलेश के साथ खड़े नजर आए थे. लेकिन, अखबार में छपे एक आर्टिकल ने उनके किए सभी कामों पर पानी फेर दिया. हालांकि आशु मलिक उस मामले में अपनी सफाई दे चुके हैं.

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