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फिल्म का नाम: ब्रदर्स
डायरेक्टर: करण मल्होत्रा
स्टार कास्ट: अक्षय कुमार , सिद्धार्थ मल्होत्रा, जैकलीन फर्नांडिस , जैकी श्रॉफ
अवधि: 158 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2 स्टार
डायरेक्टर करण मल्होत्रा जिन्होंने 'जोधा अकबर' और 'माय नेम इज खान' में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम किया था और अपनी पहली फिल्म 'अग्निपथ' रीमेक बनाई थी जिसे दर्शकों ने काफी सराहा था. अब एक और ऑफिशियल रीमेक लेकर करण मल्होत्रा आ रहे हैं, हॉलीवुड की मशहूर फिल्म 'वॉरियर' की ऑफिशियल हिंदी रीमेक 'ब्रदर्स' . भाई-भाई के बीच की लड़ाई पर ना जाने कितनी सारी फिल्में पहले भी बनाई जा चुकी हैं और वैसे तो करण ने अपनी पहली फिल्म से ही अपना हुनर जग जाहिर कर दिया है लेकिन क्या उनका मैजिक इस बार भी दर्शकों को भायेगा? आइये फिल्म की समीक्षा करते हैं.
कहानी
यह मुंबई के एक परिवार के दो भाइयों डेविड फर्नांडिस (अक्षय कुमार) और मोंटी फर्नांडिस (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की कहानी है. बचपन में किन्ही कारणों से
मांमरिया (शेफाली शाह) का साया उनके सर से उठ जाता है और पिता गैरी फर्नांडिस (जैकी श्रॉफ) को जेल जाना पड़ता है. दोनों भाइयों की परवरिश अलग
अलग तरह से होती है और जब तक पिता गैरी जेल से बाहर आता है, तब तक डेविड ने जेनी (जैकलीन फर्नांडिस) से शादी करके अपना घर अलग बसा
लिया होता है, और मोंटी अलग ही गुजर बसर करता है. गैरी पहले से ही एक रेसलर रहता है और बचपन से ही डेविड को रेस्लिंग की शिक्षा देता रहता
है. फिर मुंबई में मिक्स मार्शल आर्ट (एमएमए) की प्रतियोगिता होती है और रिंग में आमने सामने दोनों भाई आते हैं और फिर क्या होता है, इसे जानने
के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
स्क्रिप्ट, अभिनय, संगीत
ऑफिशियल रीमेक होने के नाते फिल्म की स्क्रिप्ट अंग्रेजी फिल्म 'वॉरियर' से ही मिलती जुलती है, लेकिन भारतीय रूपांतरण में इमोशन को भर भर के
डालने की पूर्ण कोशिश की गई है जो की नाकामयाब है. फिल्म में जज्बातों को भी दिखाने की कोशिश की गई है लेकिन वो जज्बात इतने रुक रुक के
आते हैं की तब तक आप बोर होने लगते हैं. पहला हाफ काफी धीमा है , और फिल्म का इंटरवल के बाद का हिस्सा ज्यादा तेज है. लेकिन क्लाइमेक्स आने
तक आप हरेक बात का अंदाजा लगा लेते हैं. कभी कभी एक्टर्स भावुक होने की एक्टिंग करते हैं लेकिन आप उस इमोशन में इतने बोर हो चुके रहते हैं की
आपको हसी आ जाती है. करण मल्होत्रा की ये कृति काफी कमजोर सी लगती है. मजबूरियों और भावुकता का पुलिंदा परोसने की कोशिश तो की गई है
लेकिन वह न्यायसंगत नहीं हो पाया है.
वैसे तो फिल्म के सैटेलाईट पहले से ही बिक चुके हैं तो कमाई तो जरूर कर लेगी लेकिन फिल्म को जो सम्मान मिलना चाहिए वह उससे अछूती रह जाएगी. एक्टिंग के मामले में बड़े भाई के किरदार में अक्षय कुमार ने बेहतरीन काम किया है और एक पिता के रोल को जैकी श्रॉफ ने उम्दा निभाया है. जैकी श्रॉफ का एक एक भाव आपको उनकी एक्टिंग का कायल बना देता है. वहीं शेफाली शाह ने मां के रूप में और आशुतोष राणा की भी 'पाशा' के रोल में एक्टिंग काबिल ए तारीफ है.
फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर थोड़ा अलग रोल करने की कोशिश किये हैं जो की सराहनीय है. अपने-अपने किरदार के लिए सिद्धार्थ मल्होत्रा और अक्षय कुमार की तैयारी स्क्रीन पर दिखाई पड़ती है. बस स्क्रिप्ट थोड़ी और मजबूत होती तो यह फिल्म और भी ज्यादा दिलचस्प लगती. जैकलीन फर्नांडिस के लिए फिल्म में कुछ ज्यादा करने को नहीं था लेकिन उनकी अदाकारी ठीक ठाक सी ही लगती है.
फिल्म का संगीत ठीक है, क्योंकि सोनू निगम का गाय हुआ गीत 'सपना जहां' तो अक्षय की शादी और बेटी होने की बात को दर्शा देता है लेकिन करीना कपूर खान के गीत 'मैरी' की कोई आवश्यकता नहीं थी, इस गीत के आते ही फिल्म की रफ्तार रुक सी जाती है.
क्यों देखें
अगर आप अक्षय कुमार, सिद्धार्थ मल्होत्रा या जैकलीन और जैकी श्रॉफ के फैन हैं, तभी यह फिल्म देखें.
क्यों ना देखें
अगर आपको जज्बातों की समझ है, पारिवारिक प्रेम से इत्तेफाक रखते हैं तो आपको ये फिल्म काफी कमजोर महसूस होगी. और बेहतर है इसके टीवी पर
आने तक का इंतजार कर सकते हैं.