
खलनायक के बल्लू बलराम की तरह जेल तो टुच्चे तोड़ते हैं, मैं तो फुर्र हो जाऊंगा. यह किसी फिल्म का डायलॉग नहीं बल्कि राजस्थान की अजमेर जेल में बंद प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के बोल थे. और इसके कुछ ही दिन बाद एपी के नाम से कुख्यात आनंदपाल बिल्कुल इसी अंदाज में फरार हो गया. पिछले 3 सितंबर को नागौर जिले के डीडवाना में नानूराम हत्याकांड में आनंदपाल की पेशी के बाद पुलिस एस्कोर्ट में उसे वापस अजमेर जेल लाया जा रहा था. परबतसर के गांगवा गांव के पास ज्यों ही पुलिस वैन पहुंची, पिकअप में सवार कुछ बदमाश उसके पीछे लग गए. उन्होंने बॉलीवुड स्टाइल में पुलिस जवानों पर गोलियों की बौछार कर उन्हें घायल कर दिया और आनंदपाल तथा उसके साथी सुभाष मंडू और श्रीवल्लभ को छुड़ा ले गए. लेकिन कहानी इतनी सीधी भी नहीं है. इस घटना ने राजस्थान में न सिर्फ गैंगवार की आशंका को बढ़ा दिया है बल्कि जाट और राजपूत समुदाय आमने-सामने आ गए हैं.
राजपूत समुदाय का आनंदपाल 2006 के गोपाल फोगावट और जीवन गोदारा हत्याकांड के अलावा 2014 में बीकानेर जेल में हुए गैंगवार को लेकर खासा सुर्खियों में रहा है. जाट समुदाय के उसके प्रतिस्पर्धी राजू टेहट गैंग ने जेल में उस पर हमला बोल दिया था. फोगावट और गोदारा भी जाट समुदाय के थे और आनंदपाल जाट अपराधियों के खिलाफ राजपूत प्रतीक बन गया था. सो, एक बार फिर जाट समुदाय में नाराजगी है तो आनंदपाल समर्थकों में खुशी.
2006 में गोदारा हत्याकांड के बाद जाट समुदाय आंदोलित हो गया था. उसकी ओर से दर्जनों धरने-प्रदर्शन के बाद आखिरकार 2012 में आनंदपाल की गिरफ्तारी के बाद यह सब खत्म हुआ था. अब उसके फरार होने से एक बार फिर वही हालात हैं. जाटों ने पिछले दिनों डीडवाना में ही सभा की और खींवसर से निर्दलीय विधायक और जाट नेता हनुमान बेनीवाल ने वसुंधरा राजे सरकार पर जमकर आरोप जड़े. उन्होंने मंत्री यूनुस खान पर आनंदपाल से मिलीभगत का आरोप लगाया और मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी लपेटे में लिया. बेनीवाल ने आरोप लगाया, ''आनंदपाल को सरकार के बड़े नेताओं का संरक्षण हासिल है, उन्हीं के इशारे पर वह फरार हुआ है. '' खान और राठौड़ इसे सिरे से खारिज करते हैं. राठौड़ कहते हैं, ''यह आपराधिक मामला है, इसे सियासी तूल नहीं दिया जाना चाहिए. ''
जाटों के आक्रोश के बाद राजपूत समुदाय की करणी सेना और अन्य संगठनों ने भी हल्ला बोल दिया है. करणी सेना के सुखदेव सिंह गोगामेड़ी कहते हैं, ''कानून अपना काम करे तो हमें कोई आपत्ति नहीं, लेकिन अगर जाट नेताओं के कहने पर आनंदपाल का एनकाउंटर किया जाता है तो राजपूत समुदाय इसे सहन नहीं करेगा. ''
सरकारी ड्रामा या लापरवाही
डीजीपी मनोज भट्ट ने इस मामले में परबतसर थानाध्यक्ष समेत 12 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है. लेकिन इससे पुलिस की लापरवाही नहीं छिपती. पुलिस को पहले से आनंदपाल के फरार होने का अंदेशा था. नागौर के पूर्व एसपी राघवेंद्र सुहासा ने पुलिस हेडक्वार्टर को चिट्ठी लिख यह आशंका जताई थी और कहा था कि उसकी पेशी के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की व्यवस्था की जाए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. और तो और, जिस दिन वह फरार हुआ, उस दिन उसके एस्कोर्ट में करीब 15 पुलिसकर्मी ही तैनात थे, जबकि अमूमन इसमें इससे ज्यादा पुलिसकर्मी होते थे. चार माह पहले आनंदपाल समर्थक कुख्यात अनुराधा चौधरी ने भी बताया था कि वह जल्द ही फरार होने वाला है. जाहिर है, पुलिस की भूमिका संदेहास्पद है. अजमेर जेल में बंद कुख्यात हथियार तस्कर अमीन खान को भी इसी एस्कोर्ट टीम के जवान कई सुविधाएं दे रहे थे. यहां तक कि कुछ हफ्ते पहले कोर्ट में उसकी पेशी के दिन उसे घर की सैर भी कराई गई. डीजीपी को इसकी जानकारी दिए जाने के बाद भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
2012 में आनंदपाल की गिरफ्तारी कम नाटकीय नहीं थी. उसे जयपुर के एक फार्म हाउस से हथियारों के जखीरे के साथ आसानी से पकड़ा गया था. कुछ लोग इसे पूर्वनियोजित बताते हैं क्योंकि अगले साल विधानसभा चुनाव होने थे और जाट उसके गिरक्रतार न होने से गुस्से में थे. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि बाहर उसके लिए खतरा बढ़ गया था इसलिए उसे जेल के भीतर सुरक्षित रखने के लिए नाटक रचा गया. अब उसके भाग जाने को भी कुछ ऐसे ही देखा जा रहा है. बीकानेर जेल गैंगवार में वह बच निकला था पर उसका साथी बलबीर बानूड़ा मारा गया था. फिर उसे बीकानेर से अजमेर जेल शिफ्ट कर दिया गया. ऐसे में जेल में उसे खतरा था.
सरकार के लिए मुसीबत
आनंदपाल का राज्य के शेखावटी क्षेत्र में काफी प्रभाव है. राजपूतों में उसे रॉबिनहुड सरीखा माना जाता है. डीडवाना से कुछ ही दूर पर उसके गांव सावराद में उसके कुछ साथी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ''वह हर किसी की मदद को तैयार रहता था.'' वहीं करणी सेना के सुखदेव सिंह बताते हैं कि बीडीओ के साथ मारपीट और 2002 में खेराज हत्याकांड में फंसने के बाद आनंदपाल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उसके साथ कई अपराधी जुड़ते गए और उसने करीब 500 गुर्गों का गैंग बना लिया. जाट अपराधियों के साथ उसकी लड़ाई जगजाहिर थी. वह जेल से भी फिरौती-अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम देता था. उसका एक भाई रुपेंद्रपाल सिंह भी फरार है और दूसरा, मंजीत जेल में है.
दूसरी ओर, एसओजी और एटीएस आनंदपाल के फरार होने की छानबीन कर रहे हैं. अजमेर की आइजी मालिनी अग्रवाल बताती हैं, ''आनंदपाल के एस्कॉर्ट में तैनात पुलिसकर्मियों से पूछताछ और छापेमारी जारी है. '' उस पर एक लाख रु. और उसके साथियों पर 50,000-50,000 रु. का इनाम घोषित कर दिया गया है. गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने पुलिस की चूक को माना पर इसे लेकर गैरजिम्मेदाराना बयान दे डाला, ''मेरे पास कोई जादू का डंडा नहीं है. '' लेकिन जाट और राजपूत संगठनों का फिर आमने-सामने आना खतरे की घंटी है. राजपूत जहां पहले से बीजेपी का समर्थन करते आए हैं, तो पिछले चुनावों में राजे ने भारी संख्या में जाटों को पार्टी की ओर मोड़ा था. अब आनंदपाल मसला राजे सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है.