
देशव्यापी लॉकडाउन के बीच लोग जहां-तहां फंसे हैं. प्रवासी मजदूरों का कामधंधा पूरी तरह से ठप है तो दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जिनके पास वर्तमान में तो नौकरी है लेकिन नौकरी जाने की आशंका उन्हें रोज डराती है. संक्रमण के खतरे के बीच अकेलापन लगातार हावी होता जा रहा है. 15 मई को नांदेड़ जिले के 40 वर्षीय राजू बाबुलकर ने बेरोजगारी के कारण तंग आकर अपनी जान दे दी तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में एक फैक्ट्री में काम करने वाले बिहार के एक 32 वर्षीय युवक इरशाद ने घर न जा पाने की वजह से अपनी जान दे दी. लॉकडाउन जैसे-जैसे बढ़ रहा है रोजाना आत्महत्या की खबरें सुनने को मिल रही हैं. मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिकों की मानें तो कोरोना संकट और फिर लॉकडाउन की वजह से लोग लगातार तनाव, चिंता, अवसाद का शिकार हो रहे हैं.
फोर्टिस एस्कॉर्ट में मेंटल हेल्थ ऐंड बिहेवियरल साइंसेज विभाग के विशेषज्ञ मनु तिवारी कहते हैं, '' कोरना संकट की वजह से लोगों की लाइफस्टाइल में अचानक बहुत बड़ा बदलाव आ गया है. लोग लगभग घरों में कैद हैं. कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की मजबूरी लोगों के भीतर असुरक्षा की भावना और अकेलापन भर रही है. नतीजतन, तनाव, चिंता और अवासदग्रस्त लोगों के भीतर आत्महत्या जैसे खतरनाक ख्याल तेजी से पनप रहे हैं.'' मनु तिवारी की मानें तो अगर बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य का जल्द ही उपचार नहीं किया गया तो लॉकडाउन खुलने के बाद मानसिक समस्याओं से जूझते लोगों की बाढ़ आ जाएगी. परिणास्वरूप आत्महत्या जैसे मामले तेजी पकड़ेंगे.
क्या वाकई लोगों की मानसिक सेहत पर पड़ रहा है लॉकडाउन का असर?
कोरोना संकट के बीच उपजे खौफ और खस्ताहाल आर्थिक स्थिति की वजह से लोगों की मानसिक स्थिति खराब होने की बात लगातार मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक कह रहे हैं. लेकिन इंडियन साइकियाट्री सोसाइटी (Indian psychiatry society-IPS) ने लॉकडाउन के बीच एक ऑनलाइन सर्वे किया. इस सर्वे में 15 मई तक 1,871 लोग भाग ले चुके हैं. आइपीएस के वाइस प्रेसिडेंट मनोचिकित्सक डॉ. गौतम साह के मुताबिक, ''सर्वे के दौरान आई लोगों की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करने वाली टीम के सामने जो नतीजे आए हैं, वे लॉकडाउन के प्रभाव का मानसिक स्थिति पर लंबे समय तक असर रहने की तरफ इशारा करते हैं.'' वे कहते हैं कि ये नतीजे चिंताजनक हैं.
आंकड़ों की जुबानी बिगड़ी मानसिक स्वास्थ्य की कहानी
आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली टीम ने पाया कि अब तक सर्वे में शामिल कुल लोगों में से 30.2 फीसद लोग गंभीर चिंता (ANXIETY) और 9.5 फीसद लोग अवसादग्रस्त (DEPRESSION) पाए गए. यानी 40.35 फीसद लोग या तो अवसाद या फिर चिंता का शिकार थे. गौर करने वाली बात यह भी है कि 74.1 फीसद लोगों में मध्यम स्तर का तनाव (STRESS)भी पाया गया. यानी जब लोग गंभीर चिंता और अवसाद से जूझ रहे थे तभी उनके भीतर तनाव के लक्षण भी पैदा हो रहे थे. इन सभी आंकड़ों को मिलाकर देखें तो सर्वे में शामिल लोगों में से 71.7 फीसद लोगों की मानसिक स्थिति बिगड़ी हुई पाई गई.
आइपीएस (IPS) के वाइस प्रेसिडेंट डॉ. साह (dr. Gautam saha)कहते हैं कि चिंता, तनाव, अवसाद सामान्य स्थितियों में भी होता है. पर, दो-चार दिन में खत्म हो जाता है. लंबे समय से चलने वाले लॉकडाउन की वजह से लोगों के भीतर नकारात्मक मनः स्थिति ठहर सी गई है. यह नकारात्मक स्थिति जितने लंबे समय तक रहेगी मानसिक स्थिति उतनी ही ज्यादा खराब होती जाएगी. सर्वे के मौजूदा नतीजे चौंकाने वाली स्थिति की तरफ इशारा करते हैं. आइपीएस का यह ऑनलाइन सर्वे अभी जारी है. लॉकडाउन खत्म होने तक आंकडे़ इकट्ठे किए जाते रहेंगे.
मानसिक स्थिति को खस्ताहाल कर रहे हैं यह ख्याल
सर्वे के नतीजों में सामने आया कि लोगों के भीतर लॉकडाउन की वजह से उपजा अकेलापन और नौकरी जाने का खतरा लगातार घर करता जा रहा है. जिनकी नौकरी जा चुकी है उनको लगता है कि आने वाले कम से कम तीन-चार महीनों में नौकरी तलाशना मुश्किल होगा. दूसरी तरफ जिनके पास नौकरी है वे रोज सोने से पहले और जागने के बाद नौकरी जाने के ख्याल से डरे हुए हैं.
अपने परिवार से दूर रह रहे लोगों के लिए अकेलापन और उस पर हावी तरह-तरह के डर खतरनाक होते जा रहे हैं. जिन कंपनियों ने नौकरी सलामत रखने का संदेश अपने कर्मचारियों को दे दिया है, वहां के कर्मचारियों को सैलरी कटने का डर सता रहा है. दरअसल, महंगी ईएमआइ और स्कूलों की फीस इस डर की एक बड़ी वजह है. तीसरे नंबर पर खुद को या परिवार को संक्रमण के खतरे का ख्याल लोगों को डरा रहा है.
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