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अमति शाह की शख्सियत का खाका

टीवी टुडे के मैनेजिंग एडिटर राहुल कंवल की नजर में थोड़े समय में प्रतिष्ठा का शिखर चूमने वाले बीजेपी अध्यक्ष की बारीकियां

राहुल कंवल
  • अहमदाबाद,नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2014,
  • अपडेटेड 1:45 PM IST

राजस्थान की जनजातियों के एक प्रख्यात गुरु ने एक बार युवा अमित शाह से कहा था, “तुम्हारी तकदीर तो ऐसी है कि तुम ऊंट की पीठ पर बैठकर चलोगे तो भी तुम्हें कोई कुत्ता काट लेगा.” इस परंपरागत कहावत का संदेश यह था कि शाह जीवन में चाहे कितनी ही बुलंदी पर क्यों न पहुंच जाएं, परेशानियों से कभी दूर नहीं हो पाएंगे. शाह ने उस गुरु की बात को हंसकर टाल जरूर दिया था, लेकिन वह उसकी भविष्यवाणी से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं.
 
बीजेपी के नए अध्यक्ष के लिए निर्मम, कुटिल, दबंग जैसे कई विशेषणों का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, इनमें कोई भी विशेषण उस चुनावी जादूगर के व्यक्तित्व का पूरी तरह खुलासा नहीं करता जो यह मानता है कि वह जीतने के लिए ही बना है. वित्त मंत्री अरुण जेटली मानते हैं कि शाह उनकी पीढ़ी के सबसे तेज राजनैतिक दिमाग वाले प्राणी हैं. लेकिन शाह को अपने समकक्ष अन्य राजनीतिकों से जो बात अलग करती है, वह है जीतने की उनकी इच्छा. जीतने के खातिर जो कुछ भी करने की जरूरत हो, शाह उसे करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.

हाल के आम चुनाव ने साबित किया कि शाह चुनाव प्रबंधन के मामले में शहंशाह हैं. मोदी जहां लगातार रैलियां कर रहे थे, वहीं शाह कंप्यूटर स्क्रीन पर नजर गड़ाए दर्जनों युवा कार्यकर्ताओं के साथ घंटों बैठे रहते थे, हर सीट की नवीनतम रिपोर्ट का अध्ययन करते और हर वार्ड के लिए कार्ययोजना तैयार करते. जब चुनावी प्रबंधन की बात आई तो उन्होंने सबसे ज्यादा प्रयास उन सीटों को बचाने पर लगाया जो उनके मुताबिक चुनाव के दिन किसी और के पक्ष में जा सकती हैं. बीजेपी के पक्ष में सीट को मोडऩे के लिए शाह ने हर संभव रास्ता अपनाया-चाहे मोदी की रैली आयोजित करना हो, विपक्षी वोटों को बांटने के लिए किसी छद्म उम्मीदवार को आगे बढ़ाना हो या स्थानीय दबदबे वाली जातियों के असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में करना हो.

दिसंबर 2013 में दिल्ली के विधानसभा चुनावों में 15 ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार रहस्यमय तरीके से प्रकट हो गए जिनका चुनाव चिन्ह टॉर्च आम आदमी पार्टी (आप) के चुनाव चिन्ह झाड़ू से बिल्कुल मिलता-जुलता था. कम-से-कम पांच सीट पर आप के उम्मीदवारों की संभावना पर टॉर्च चुनाव चिन्ह वाले इन निर्दलीय उम्मीदवारों ने पानी फेर दिया. अमित शाह से जब टॉर्च वाले उम्मीदवारों की मौजूदगी पर सवाल किया गया तो उनकी आंखों में शरारत भरी चमक कौंध गई. उन्होंने कहा, “कुछ सवालों का जवाब न देना ही बेहतर होता है.”

उत्तर प्रदेश में आम चुनाव के लिए प्रचार अभियान के दौरान यह शाह का ही विचार था कि ऐसे मोदी वैन तैयार किए जाएं जो सैकड़ों गांवों में जाकर बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का संदेश प्रसारित करें. जिस भी गांव में हम इंडिया टुडे ग्रुप की इलेक्शन एक्सप्रेस बस में सवार होकर गए, हमने देखा ग्रामीणों की भीड़ उस रथ के आसपास जमा थी और उस नेता का भाषण शांत होकर सुन रही थी जो उन्हें गरीबी से बाहर निकालने का वादा कर रहा था. ये ऐसे दूरदराज के गांव थे जहां दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ता और उनके ज्यादातर नेता पहुंच भी नहीं पाए.

मोदी 1980 के दशक में जब गुजरात में आरएसएस के प्रचारक थे, तब से ही शाह को पसंद करते रहे हैं, लेकिन दोनों का रिश्ता सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर मामले की साजिश के आरोप में शाह के जेल जाने के बाद प्रगाढ़ हुआ. सीबीआइ ने शाह को तोडऩे के लिए हर तरह का उपाय अपनाया, लेकिन शाह ने अपने बॉस के खिलाफ जबान नहीं खोली. ऐसी भारी मुश्किल के दौर में भी शाह मोदी के साथ खड़े रहे. लिहाजा, मोदी उन पर आंख मूंदकर भरोसा करने लगे.

हालांकि शाह मोदी के साथ अपने रिश्ते को लेकर बहुत ही व्यावहारिक हैं. उन्होंने कहा, “मैं किसी काम को अंजाम दे सकता हूं तो मैं सबसे अच्छा आदमी हूं, लेकिन यदि कोई मुझसे बेहतर मिल गया तो मोदी जी के लिए सबसे अच्छा आदमी वही होगा.”

जिस दिन मोदी को बीजेपी की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था, शाह ने गोवा के मैरिएट होटल में मुझसे कहा था, “हमारी राष्ट्रीय योजना तैयार है. हम इसी दिन का इंतजार कर रहे थे. आप देखिएगा किस गति और पैमाने से हम मोदी का अभियान चलाते हैं.”

शाह को बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाने की योजना भी इसकी औपचारिक घोषणा के कई हफ्ते पहले तैयार कर ली गई थी. देश में आगे आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी शाह का खाका तैयार है. वे इस पर जल्दी ही अमल शुरू कर देंगे.

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