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परदे पर रोमांटिक किरदार में दिखेंगे अमरीश पुरी के पोते वर्धन पुरी

अमरीश पुरी के पोते वर्धन पुरी भी अभिनय के मैदान में उतरे हैं. उनकी पहली फिल्म है ये साली आशिकी. वर्धन ने अपनी फिल्म और संघर्ष के साथ अन्य मुद्दों पर मुंबई में नवीन कुमार के साथ खुलकर बात की. 

फोटोः नवीन कुमार फोटोः नवीन कुमार
नवीन कुमार
  • मुंबई,
  • 14 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 8:00 PM IST

अपने जमाने के मशहूर खलनायक अमरीश पुरी के पोते वर्धन पुरी अभिनय के मैदान में उतर रहे हैं. उनकी पहली फिल्म है, ये साली आशिकी. वर्धन ने अपनी फिल्म और संघर्ष के साथ अन्य मुद्दों पर मुंबई में नवीन कुमार के साथ खुलकर बात की. 

ये साली आशिकी किस तरह की फिल्म है?

यह रोमांटिक थ्रिलर है. कुछ लोग इसे डर, कबीर सिंह और इत्तेफाक जॉनर की फिल्म मान रहे हैं. यह मेरे लिए खुशनसीबी है. इसमें शाहरुख खान वाली फिल्म डर की झलक जरूर मिलेगी. मैंने साहिल का किरदार किया है जो अपने कॉलेज की एक लड़की का दीवाना है. इस फिल्म में प्यार को लेकर अलग तरह का संदेश है. 

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सिनेमा में करियर बनाने के लिए खुद ही कहानी लिख ली?

ऐसा बिल्कुल नहीं है. हमारे डायरेक्टर चिराग रूपारेल और निर्माता जयंतीलाल गाडा को लगा कि मैं ही साहिल हूं. उन्होंने मुझसे यह रोल करने को कहा. बावजूद इसके मैंने इसके लिए ऑडिशन दिया. 

इस फिल्म से आपने अपने दादा अमरीश पुरी के नाम पर प्रोडक्शन कंपनी भी शुरू की?

मेरे दादा का सपना था कि वो एक फिल्म शुरू करें. लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया. उनके देहांत के बाद हमारे घर वालों ने उनका सपना पूरा करने के लिए इस फिल्म से प्रोडक्शन कंपनी शुरू की. 

आपको अमरीश पुरी का पोता होने का कितना फायदा मिला?

मेरे ऊपर नेपोटिज्म लागू नहीं होता. मेरा मानना है कि यह इंडस्ट्री काफी ईमानदार है. जब तक आप ऐक्टर के रूप में पूरी तरह से तैयार नहीं होते तब तक आपको यहां मौका नहीं मिलता है. मेरे दादू को भी 21 साल के बाद मौका मिला था.

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दादू ने आपको कोई सलाह दी थी?

उन्होंने मेरे अंदर के ऐक्टर और भूख को पहचान लिया था. इसलिए उन्होंने पांच साल की उम्र में ही मुझे सत्यदेव दुबे के पास थिएटर के लिए भेज दिया था ताकि मैं परफेक्ट ऐक्टर बन सकूं. 

इससे आपका संघर्ष कम हुआ?

नहीं. थिएटर और सिनेमा के ऐक्टर में अंतर है. सिनेमा का ऐक्टर कैमरे के सामने होता है. इसलिए थिएटर से आने के बाद कैमरा समझने के लिए मुझे चार दिग्गजों से प्रशिक्षण लेना पड़ा. मैंने 1200 से ज्यादा ऑडिशन दिए और कास्टिंग डाइरेक्टरों को फोन करके पकाता था कि मुझे भूख लगी है कुछ काम दिला दो.

जब काम नहीं मिल रहा था तब क्या कर रहे थे?

इस बीच मैंने यशराज स्टूडियो में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया. हबीब फजल और मनीष शर्मा के सहायक के तौर पर इश्कजादे, शुद्ध देसी रोमांस और दावत-ए-इश्क फिल्में की. दो फिल्मों में से एक फिल्म सुल्ताना महेश भट्ट के साथ करने वाला था. लेकिन पद्मावत के विवाद के कारण यह फिल्म बन नहीं सकी. मैं सोचता हूं कि जो भी होता है अच्छा ही होता है. 

आपके आदर्श ऐक्टर कौन हैं?

मेरे दादू अमरीश पुरी और चार्ली चैपलिन. 

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