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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने के मामले में विश्वविद्यालय ने केंद्र सरकार के हलफनामे पर अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दिया. एएमयू ने कहा कि दर्जे को लेकर मौजूदा सरकार का स्टैंड अलग विचारधारा के कारण बदला है. 80 पन्नों के इस काउंटर एफिडेविट पर अब केंद्र सरकार अपना जवाब तीन हफ्तों में कोर्ट में सौंपेगी.
मंगलवार को सुनवाई के दौरान एएमयू की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने इस मामले में जो स्टैंड बदला है, वो अलग राजनीतिक विचारधारा की वजह से है. एएमयू के मुताबिक, केंद्र का फैसला तर्कसंगत नहीं है, अनुचित है और राजनीतिक वजहों से लिया गया है.
गौरतलब है कि एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि वो एएमयू को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान करार नहीं देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ यूपीए सरकार की अपील को वापस लेना चाहती है.
'जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही सरकार'
सुप्रीम कोर्ट में एएमयू की ओर से दाखिल हलफनामा में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को सरकार की दलील खारिज करनी चाहिए, जिसमें सरकार उसके माइनॉरिटी दर्जा का विरोध कर रही है. एएमयू ने कहा, 'भारत सरकार को मॉइनॉरिटी के एक भी संस्थान को टेकओवर नहीं करना चाहिए. मौजूदा सरकार में अपना स्टैंड बदलकर जानबूझकर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा है. केंद्र सरकार ने संसद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट बनाने के दौरान दिए गए सांसदों और पूर्व प्रधानमंत्री के बयान को तोड़-मरोड़ कर हलफनामे में इस्तेमाल किया है. इस मामले में कई संवैधानिक सवाल शामिल भी हैं.'
यूनिवर्सिटी ने कोर्ट से गुजारिश की है कि मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट की मदद के लिए वो किसी वरिष्ठ वकील को कोर्ट का सलाहकार नियुक्त करे.
'सरकार के फैसले के पीछे कोई तर्क नहीं'
गौरतलब है की यूपीए सरकार ने इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन मौजूदा एनडीए सरकार ने कोर्ट को बताया है कि वह स्टैंड बदल रही है और अपील वापस ले रही है. मौजूदा सरकार मॉइनॉरिटी कैरेटेक्टर का विरोध कर रही है. एएमयू का कहना है कि सरकार के फैसले के पीछे कोई तर्क नहीं है और अगर सरकार के स्तर पर कोई फैसला लिया जाता है तो वह फैसला सत्तासीन पार्टी के बदलने से नहीं बदलना चाहिए.
यूनिवर्सिटी में 50 फीसदी सीटें दूसरे समुदाय के लिए
एएमयू ने आगे कहा कि एएमयू बेहद पुरानी मुस्लिम यूनिवर्सिटी है और ऐसे में इसके अल्पसंख्यक संस्थान के किरदार के मुस्लिम कम्युनिटी के लिए बहुत ज्यादा मायने हैं. मौजूदा भारत सरकार का स्टैंड गलतफहमी वाला है. माइनॉरिटी स्टेटस का मतलब यह नहीं है कि सभी स्टूडेंट मुस्लिम हों. जबकि 50 फीसदी सीटें दूसरे समुदाय के छात्रों के लिए होती हैं. संविधान में इसका प्रावधान है.
संस्थान के संस्थापक मुस्लिम थे
एएमयू ने इसके साथ ही कहा कि अजीज बाशा केस में जब फैसला आया था तब एएमयू पार्टी ही नहीं थी. साथ ही इस संस्थान के फाउंडर मुस्लिम समुदाय के थे. अब इस मामले में एएमयू के जवाब के बाद केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करना है. मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने इस पर जवाब के लिए तीन हफ्ते का वक्त मांगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसके लिए वक्त देते हुए मामले की सुनवाई टाल दी है.
केंद्र ने दिया 1967 के फैसले का हवाला
इस संदर्भ में केंद्र सरकार की ओर से एक हलफनामा दायर किया गया है, जिसमें कहा गया है कि अपील वापस लिया जाएगा. इस मामले में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ यूनिवर्सिटी प्रशासन पहले से अर्जी दाखिल कर चुकी है. यूपीए सरकार ने भी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसे एनडीए सरकार ने वापस लेने का फैसला किया. सरकार ने 1967 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है.
1981 में कानून में किया गया बदलाव
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 1967 में अपने फैसले में कहा था कि एएमयू माइनॉरिटी संस्थान नहीं है. लेकिन 1981 में केंद्रीय कानून में एक बदलाव किया गया और संस्थान को माइनॉरिटी का दर्जा दिया गया, जिसे हाई कोर्ट गैर संवैधानिक ठहरा चुका है. एनडीए सरकार का तर्क है कि वो सुप्रीम कोर्ट के 1967 के जजमेंट को मानती है और हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ पिछली केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल की गई अपील को वापस ले रही है.