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महिला और बाल विकास मंत्रालय जल्द ही मोबाइल फोन में अब बच्चों के लिए चाइल्ड लाइन एप लाने पर तेजी से काम कर रहा है. बाल विकास मंत्री मेनका गांधी चाइल्ड लाइन सेंटर के कामकाज की समीक्षा करने के लिए पत्रकारों के एक दल को लेकर गुड़गांव पहुंची और वहीं पर उन्होंने ये जानकारी दी. उन्होंने बताया कि चाइल्ड लाइन फाउंडेशन के सहयोग से इस एप को तैयार किया जा रहा है और इस एप को डाउनलोड करने के बाद अगर बच्चा बटन दबाता है तो पेरेंट्स के साथ-साथ चाइल्ड लाइन सेंटर पर भी कॉल दर्ज हो जाएगी और मदद के लिए टीम बच्चे तक पहुंच पाएगी.
बच्चों की सुरक्षा के लिए एप
दरअसल चाइल्ड लाइन 1098 की सुविधा काफी सालों से चल रही है. लेकिन पिछले 18 महीनों से बाल एंव महिला विकास मंत्रालय ने इसमें अपनी भागीदारी तय की है और इसमें कई सुधार हुए हैं. मेनका गांधी ने बताया कि इस साल मार्च महीने में 10 लाख से ज्यादा बच्चों और बड़ों ने चाइल्ड लाइन में फोन किया, उन्होंने बताया कि आने वाली फोन में 80 फीसदी ज्यादा सीरियस नहीं होती, जैसे स्कूल में टीचर ने डांटा, मम्मी-पापा लड़ रहे हैं या मां ने पिज्जा खाने के पैसे नहीं दिए. लेकिन 20 फीसदी कॉल काफी सीरियस होती है. इसमें बच्चों का यौन शोषण, घर से भगा लाना, बेच देना, जबरदस्ती काम कराना, जला देना तमाम शिकायतें आती हैं.
6 सेकेंड में बच्चे का लोकेशन ट्रेस
इस चाइल्ड लाइन में फोन बजते ही 6 सेकेंड में ये पता कर लिया जाता है कि शिकायत कहां से आ रही है अगर शिकायतकर्ता पंजाब से है तो पंजाबी भाषा में निपुण काउंसलर उससे बात करेगी, और अगर तमिलनाडु से तो तमिल भाषा की जानकार उसकी समस्या सुनेगी. इस समय चाइल्ड लाइन में 25 भाषाओं में निपुण काउंसलर हैं.
लेकिन बहुत सी कॉल में बच्चों को काउन्सलिंग की नहीं बल्कि तुरंत मदद की जरूरत पड़ती है और इसके लिए देशभर में चाइल्ड लाइन से जुड़े एनजीओ, पुलिस की मदद से बच्चों तक पहुंचते हैं. पिछले एक साल में इस चाइल्ड लाइन ने 2.5 लाख बच्चों को रेस्क्यू करवाया है.
इस चाइल्ड लाइन पर फोन करने वालों में 11 से 14 साल के बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है. लड़के इस लाइन पर मदद के लिए ज्यादा फोन करते हैं. बाल विकास मंत्रालय का लक्ष्य है कि जल्द ही इस लाइन को हर जिले तक पहुंचाया जाए. अभी ये लगभग 400 जिलों में उपलब्ध है और इससे करीब 800 एनजीओ जुड़े हुए हैं.