
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे. कैंसर से जिंदगी की लड़ाई वह नहीं जीत पाए. कैंसर की दवा सस्ती हो इसके लिए रसायन और उर्वरक मंत्री रहते हुए अनंत कुमार ने पूरी शिद्दत के साथ कोशिश की और इसमें उन्हे कामयाबी भी मिली. उनके प्रयास से ही कैंसर और कई अन्य गंभीर बीमारियों की दवा 86 फीसदी तक सस्ती हुई.
कैंसर की दवा सस्ती हो इसके लिए अनंत कुमार यदि पूरे मनोभाव से जुड़े रहे तो उसके पीछे उनकी एक निजी कहानी भी है. पिछले साल दिल्ली में उन्होंने अपनी व्यक्तिगत जीवन के कुछ पहलुओं को साझा भी किया था. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि, वह एक गरीब परिवार से आते हैं.
उनके पिता रेलवे में कर्मचारी थे. बंगलुरू में रेलवे कालोनी में ही रहते थे. उनकी माता को कैंसर हो गया था. घर की माली हालत ठीक नहीं थी. डाक्टरों ने उनकी माता का इलाज किया. कैंसर की दवा दी और कहा कि दिन में दो टैबलेट खाना है. लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से रोजाना दो टैबलेट वह अपनी मां को नहीं दे सकते थे. इसलिए दो कि जगह रोजाना एक ही टैबलेट वह अपनी मां को दे पाते थे. महंगी दवा की वजह से उनकी मां को उचित इलाज नहीं हो सका और वह कैंसर की वजह से चल बसी.
इस प्रकरण का उनके ऊपर बहुत असर पड़ा था. बाद में जब वह सांसद बने और फिर मंत्री तो उन्होंने कैंसर मरीजों की भरसक मदद की और करवाई भी. मोदी सरकार में जब वह रसायन और उर्वरक मंत्री बने तो उन्होंने कैंसर की दवा की कीमत कम करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी. जिस (अप्रैल 2017) में कैंसर की दवा की कीमत में 86 फीसदी तक की कमी हुई उस दिन अनंत कुमार पत्रकारों से बातचीत में भावुक भी हो गए थे और उसी दिन अपने जीवन की इस निजी पहलुओं को उन्होंने साझा किया. यह अजीब इत्तेफाक ही है कि अनंत कुमार फेफड़े की कैंसर की वजह से ही चल बसे.
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