
लोकसभा द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम में संशोधन को अनुमति देने पर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ये कदम उठाकर भारतीय नागरिकों को धोखा दे रही है. अन्ना से जब आरटीआई के प्रावधान में बदलाव को लेकर आंदोलन करने की बात पूछी गई तो उन्होंने कहा, 'मैं अब खुद आंदोलन नहीं करना चाहता. अब मेरे पास शक्ति नहीं रही कि मैं आंदोलन करूं.'
बता दें कि सोमवार को लोकसभा ने आरटीआई अधिनियम में संशोधन को अनुमति दी थी. 2018 में भी मोदी सरकार ने ऐसा करने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली. सरकार केंद्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और सेवा शर्तों में बदलाव लाने जा रही है. संशोधन बिल में प्रस्तावित है कि मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और सेवा शर्तों को सरकारें निर्धारित करेंगी.
वहीं, विपक्ष का तर्क है कि अब सरकार अपने पसंदीदा केस में सूचना आयुक्तों का कार्यकाल बढ़ा सकती है और उनकी सैलरी बढ़ा सकती है. अगर सरकार को किसी सूचना आयुक्त का कोई आदेश पसंद नहीं आया तो उसका कार्यकाल खत्म हो सकता है या फिर उसकी सैलरी कम की जा सकती है.
गौरतलब है कि आरटीआई को लागू कराने में अन्ना हजारे की सबसे बड़ी भूमिका थी. इसके लिए 1997 में अन्ना ने अभियान शुरू किया था. अगस्त 2003 को अन्ना मुंबई के आजाद मैदान में आमरण अनशन पर बैठ थे जो लगातार 12 दिन तक चला और देश के कोने-कोने से लोगों का समर्थन मिला था. 2003 में महाराष्ट्र सरकार को अन्ना के सामने झुकना पड़ा और तुरंत प्रभाव से ये कानून लागू हुआ.
अन्ना के इसी आंदोलन के बाद आरटीआई के बारे में देशभर में जागरूकता आई, सरकार पर दबाव बना और बाद में महाराष्ट्र के RTI ड्राफ्ट को आधार बनाते हुए ही 2005 में संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पास कर दिया.