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आवरण कथाः रामरहीम मामले में खट्टर पर फिर उठी उंगली

डेरा सच्चा सौदा समर्थकों की ओर से किए गए उपद्रव पर लगाम कसने में विफल हरियाणा सरकार के इरादे और प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े होने लगे हैं

मोनी शर्मा/एएफपी मोनी शर्मा/एएफपी
सरोज कुमार
  • हरियाणा,
  • 05 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:09 PM IST

यौन शोषण मामलों में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह को 25 अगस्त को सीबीआइ की विशेष अदालत की ओर से दोषी ठहराए जाने के दिन हरियाणा के पंचकूला शहर में भड़की हिंसा में बच्चों और महिलाओं समेत 38 लोग मारे गए. कई घायल लोग अब भी विभिन्न अस्पतालों में अपना इलाज करवा रहे हैं.

रक्तपात की संभावना पहले से थी. जैसा कि स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव कहते हैं, ''आपको तारीख, समय, सटीक स्थान और हिंसा में शामिल होने वालों के बारे में पहले से मालूम था. (कार्रवाई करने के लिए) क्या आपको इससे और अधिक की आवश्यकता थी?" लेकिन स्पष्ट रूप से हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के लिए यह पर्याप्त नहीं था. अपने कार्यकाल का 34 महीना पूरा कर चुके खट्टर संभवतः शासन में अनुभव की कमी को अपनी अकर्मण्यता की वजह नहीं बता सकते जो हिंसा को रोकने में विफलता का प्रमुख कारण रहा.खट्टर इससे पहले भी दो बार पटखनी खा चुके हैं. नवंबर 2014 में, जब उनकी सरकार को उच्च न्यायालय ने कबीरपंथी संप्रदाय के नेता रामपाल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था, जो हिसार स्थित अपने डेरा में 50,000 अनुयायियों के साथ घिरा हुआ था. रामपाल ने उन्हें अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए बुलाया था. खट्टर के निर्णय नहीं लेने की क्षमता तब और साफ हो गई जब रामपाल को गिरफ्तार करने में 18 दिन लग गए तथा पुलिस एवं अनुयायियों के बीच झड़प में छह लोग की जान चली गई. फरवरी 2016 में, जब जाट प्रदर्शनकारियों ने आरक्षण की मांग की थी, तब खट्टर ने फिर से अक्षमता का प्रदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप 30 लोगों की मौत हो गई.

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गुरमीत सिंह के मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 24 अगस्त को ही, खट्टर सरकार और डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों के बीच मिलीभगत के संकेत को उजागर कर दिया था. आधिकारिक तौर पर 25 अगस्त को आने वाले फैसले के दिन निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद 1,00,000 डेरा समर्थक पंचकूला अदालत के आस-पास इकट्ठा हो गए. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के वक्तव्यों के बीच राज्य शिक्षा मंत्री राम बिलास शर्मा ने जोर देकर कहा, ''श्रद्धा (विश्वास) पर कोई धारा 144 नहीं है." फैसले से एक दिन पहले, हरियाणा के महाधिवक्ता बलदेव राज महाजन ने उच्च न्यायालय में निषेधाज्ञा के आदेश में एक ''लिपिकीय गलती" की बात स्वीकार करते हुए माना कि इसके तहत पंचकूला में केवल हथियारों के साथ लोगों को जमा होने से रोका गया था. जैसा कि हिंसा से स्पष्ट है, पुलिस ने डेरा अनुयायियों की सरसरी तलाशी भी नहीं ली, जो पेट्रोल से भरी बोतलें, छड़, पत्थर और ईंटों के साथ आए थे.

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हिंसा के चंद घंटे बाद, खट्टर ने ''अपने गुरु के दर्शन" के लिए इकट्ठे हुए अनुयायियों की भीड़ के बीच कुछ ''असामाजिक तत्वों" पर तबाही और हिंसा फैलाने का आरोप लगाया. गुरमीत सिंह का 200 वाहनों के काफिले के साथ पंचकूला अदालत जाना, सजायफ्ता डेरा प्रमुख के बैग का उप महाधिवक्ता जी.एस. सलावाड़ा द्वारा ले जाना और गुरमीत सिंह की दत्तक बेटी हनीप्रीत कौर का हेलिकॉप्टर में उसके साथ रोहतक जेल में पहुंचना जैसे मामलों पर उनकी सरकार के रुख को भांपकर ही शायद न्यायाधीश ने कहा, ''खट्टर सरकार ने राजनैतिक विचारों के लिए डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया."

खट्टर और उनकी सरकार का डेरा के साथ काफी मधुर संबंध थे. अक्तूबर, 2014 के विधानसभा चुनावों में समर्थन के लिए भाजपा ने गुरमीत सिंह से 40 सीटों पर सहयोग मांगा था. इन सीटों पर डेरा का प्रभाव था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से स्वच्छता अभियान के लिए डेरा की सार्वजनिक तौर पर प्रशंसा के बाद डेरा ने भी भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया. अब, सजा से सिर्फ 10 दिन पहले, दो मंत्रियों शर्मा और अनिल विज ने डेरा प्रमुख के 50वें जन्मदिन पर 51 लाख रुपए के गिफ्ट चेक के साथ उन्हें सम्मानित किया था.

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चंडीगढ़ के एक राजनीतिशास्त्री प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रशासन ने 25 अगस्त को डेरा प्रमुख को अदालत में लाने का अच्छा काम किया था, हालांकि वे पंचकूला में हुई हिंसा की भी उतनी ही आलोचना करते हैं. उन्होंने कहा कि यदि गुरमीत सिंह के लिए अन्य वैकल्पिक इंतजाम कई मायनों में घातक हो सकता था. किले जैसे डेरा और हजारों अनुयायियों के बीच से गुरमीत सिंह को बाहर निकालना ज्यादा मुश्किल हो सकता था. वे कहते हैं, ''इसमें अंतहीन समय लग सकता था और कई लोगों की जान जा सकती थी."

 

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