
देश के पूर्व रक्षा मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने मंगलवार को राफेल मुद्दे पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. एंटनी ने सवाल उठाया कि 126 राफेल खरीदने का प्रस्ताव था, तो इसे घटाकर 36 क्यों किया गया?
एंटनी ने कहा, हमारी सरकार के अंतिम दिनों में राफेल करार लगभग पूरा हो चुका था. 2015 में जब एनडीए की सरकार आई, तो 10 अप्रैल 2015 को 36 राफेल विमान खरीदने का एकतरफा फैसला लिया गया. जब एयरफोर्स ने 126 विमान मांगे थे, तो प्रधानमंत्री ने इसे घटाकर 36 क्यों किया, इसका जवाब देना चाहिए.
एंटनी ने केंद्र सरकार से पूछा, अगर यूपीए की डील खत्म नहीं की जाती, तो हिंदुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) को अति आधुनिक तकनीक ट्रांसफर पाने का मौका मिलता लेकिन अब उसे लड़ाकू विमान बनाने का अनुभव नहीं मिल पाएगा. भारत ने बहुत बड़ा मौका गंवा दिया.
एंटनी ने कहा, कानून मंत्री ने दावा किया कि नए समझौते में, विमान यूपीए सौदे से 9 प्रतिशत सस्ता है. वित्त मंत्री ने कहा 20 प्रतिशत सस्ता है. भारतीय वायुसेना के अधिकारी ने बताया कि यह 40 प्रतिशत सस्ता है. अगर ये सस्ता है तो फिर उन्होंने 126 से अधिक विमान क्यों नहीं खरीदे?
रक्षामंत्री ने दावा किया कि एचएएल इन विमानों का निर्माण करने में सक्षम नहीं है. सच तो ये है कि एचएएल ऐसा करने वाली एकमात्र एयरोस्पेस कंपनी है. इसे नवरत्न के दर्जे से सम्मानित किया गया था. एचएएल ने सुखोई-30 सहित 31 तरह के 4660 विमानों का निर्माण किया है.
देश के पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारी मांग पहले दिन से स्पष्ट है कि संयुक्त संसदीय समिति इस मामले की जांच करे. सीवीसी का संवैधानिक दायित्व है कि वो पूरे मामले के कागजात मंगवाएं और जांच कर पूरे मामले की जानकारी संसद में रखें. यूपीए शासनकाल के दौरान, एचएएल मुनाफा कमाने वाली कंपनी थी. मोदी सरकार के समय इतिहास में पहली बार एचएएल ने अलग-अलग बैंकों से लगभग 1000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है.