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अपूर्वी चंदेला
23 वर्ष, निशानेबाजी
10 मीटर एयर राइफल प्रतिस्पर्धा
कैसे क्वालीफाइ कियाः पहली भारतीय महिला शूटर जिन्होंने 2015 में आइएसएसएफ विश्व कप में कांस्य पदक जीतकर रियो के लिए जगह बनाई
उपलब्धियां: 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक; जनवरी 2016 में 211.2 अंकों के साथ स्वीडिश ग्रां प्री जीतकर विश्व रिकॉर्ड बनाया
अपूर्वी चंदेला में एक शांत किस्म की दृढ़ता है. पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रहीं चंदेला जब 15 साल की थीं, उसी समय उन्होंने 2008 में अभिनव बिंद्रा का एक इंटरव्यू देखा था, जिन्होंने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में इतिहास रच दिया था. वे कहती हैं कि उस इंटरव्यू ने उन्हें खेलों के प्रति प्रेरित कर दिया था. उनके पिता कुलदीप सिंह चंदेला, जो जयपुर में रेस्तरां मालिक हैं, फुटबॉल और क्रिकेट को पसंद करने वाली अपनी बेटी को एक शूटिंग रेंज में ले गए, जहां उन्होंने राइफल और पिस्तौल, दोनों पर हाथ आजमाया. बिंद्रा की तरह उन्हें राइफल पसंद थी. सिर्फ दो हफ्ते के अभ्यास के बाद अपूर्वी ने राज्य की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और कांस्य पदक जीत लिया. जल्दी ही उनके पिता ने उनके लिए एक राइफल खरीद दी. बाद में चाचा हेम सिंह ने उनके लिए जयपुर में हनुमान नगर के अपने घर पर एक शूटिंग रेंज बनवा दी, ताकि वे ट्रेनिंग ले सकें. आठ साल बाद आज वे उसी प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जिसमें उनके आदर्श, जिन्हें वे अब ''अभिनव भैया" कहती हैं, ने देश का नाम रोशन किया था.
ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट के वीरेन रसकिन्हा कहते हैं, ''गहन एकाग्रता वाले इस खेल के लिए उनमें जबरदस्त स्वाभाविक गुण हैं. वे बेहद शांत और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने वाली खिलाड़ी हैं. वे खुद से ही प्रशिक्षण लेना पसंद करती हैं." अपूर्वी की मां बिंदू सभी प्रतियोगिताओं में उनके साथ जाती हैं. कुलदीप, जिनकी पत्नी इंटरव्यू के समय अपनी बिटिया के साथ सर्बिया में थीं, कहते हैं, ''इतना ज्यादा सफर करने से उसे किसी ऐसे की जरूरत होती है, जिससे वह खुलकर बात कर सके."
जब वे भारत में होती हैं, और गुडग़ांव के अपने घर में नहीं होती हैं, या फरीदाबाद में अपने कोच स्तानिस्लाव लापीदस से ट्रेनिंग नहीं ले रही होती हैं, तो जयपुर में पूरी मौज-मस्ती करती हैं. यहां वे अपने तीन कुत्तों के साथ खेलती हैं और करीबी दोस्तों के साथ घूमने जाती हैं. वे दौड़ लगाती हैं, ध्यान लगाती हैं और तैराकी करती हैं (उनके पिता ने घर पर स्विमिंग पूल बनवा रखा है). कभी-कभी वे अपनी बड़ी बहन की दुकान से पेस्ट्री का मजा भी लेती हैं—ज्यादा मेहनत वाले शारीरिक खेल के बजाए एक राइफल शूटर इस तरह की छोटी-मोटी छूट ले सकता है.
ओलंपिक में चंदेला अपने अदम्य साहस पर भरोसा करेंगी, जिसके बूते उन्होंने टखनों में चोट के बावजूद 2014 में ग्लासगो में स्वर्ण पदक जीत लिया था.
राष्ट्रीय हॉकी टीम के कप्तान रह चुके रसकिन्हा कहते हैं, ''वे दबाव से उबरना जानती हैं. उन्हें मेरी सलाह थी कि अनुभव का मजा लो, दबाव को अपने ऊपर हावी मत होने दो और अपने नियंत्रण के भीतर की चीजों पर ही ध्यान दो." रियो में चंदेला की हिम्मत बढ़ाने के लिए उनके साथ उनका परिवार भी मौजूद होगा.
कुलदीप सिंह चंदेला कहते हैं, ''मैं उससे कहता हूं कि कर्म करती रहो, उसके परिणाम की चिंता मत करो." लेकिन यह सब कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल है.