
इसे भारतीय क्रिकेट की विडंबना नहीं तो और क्या कहें कि टीम के कुछ सुपर स्टार्स को वैसी विदाई नहीं मिल सकी जिसके वे हकदार रहे. जब जब इन खिलाड़ियों ने टीम इंडिया के लिए रन बरसाए या विकेट चटकाए तो पूरा देश उनका दीवाना हुआ, पूरा देश एक साथ झूमने को मजबूर हुआ. लेकिन जब आई बात विदाई की तो इन्हें दिल में कसक और मायूसी के साथ की मैदान छोड़ना पड़ा.
नब्बे के दशक के बाद राहुल द्रविड़, वी वी एस लक्ष्मण, अनिल कुंबले और सौरव गांगुली जैसे दिग्गजों के योगदान को अगर भारतीय क्रिकेट से निकाल दिया जाए तो फिर क्रिकेट प्रेमियों के पास फख्र करने को कुछ खास बच नहीं जाता. लेकिन अफसोस कि इन्हें भी दिल में दर्द लेकर ही टीम इंडिया से विदाई लेनी पड़ी. और अब ऐसा ही कुछ वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, हरभजन सिंह, जहीर खान और युवराज सिंह जैसे क्रिकेटरों के साथ होता दिखाई दे रहा है. माना ये सचिन तेंदुलकर जैसे महान न हों, लेकिन इन्होंने जो कुछ टीम के लिए किया, क्या ये एक सम्मानजनक विदाई के हकदार नहीं?
जब जंबो ने किया अचानक की संन्यास का ऐलान...
अनिल कुंबले ने 2008 में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध टेस्ट सीरीज के बीच में ही संन्यास ले लिया. वजह बताई गई चोट. लेकिन चोट से भी बड़ी बात ये थी कि उसी सीरीज के पहले टेस्ट में अमित मिश्रा ने शानदार डेब्यू किया और कुल 7 विकेट झटके. फिर सूत्रों की मानें तो चयनकर्ताओं ने कुंबले पर दबाव बनाया और उन्हें रिटायरमेंट के लिए मजबूर कर दिया.
डील से हुआ दादा का भी रिटायरमेंट...
2008 के उसी सीरीज के अंत में सौरव गांगुली ने भी टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहा. ये वही दौर था जब सीनियर्स को टीम से बाहर निकालने की कवायद शुरू हो चुकी थी. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अंतिम टेस्ट से ठीक पहले गांगुली ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी. बाद में खबरें आईं कि गांगुली को पहले ही बता दिया गया था कि ये आपका आखरी टेस्ट सीरीज है. जबकि दादा का सपना था कि वो अपना अंतिम टेस्ट अपने होम ग्राउंड ईडेन गार्डन में खेलें, लेकिन ये सपना सपना ही रह गया.
'दीवार' भी ऐसे ही ढह गई...
2011-2012 के ऑस्ट्रेलिया दौरे में फेल होने के बाद 'द वाल' राहुल द्रविड़ को भी नहीं बख्शा गया. सदियां गुजर जाती हैं तब जाकर कोई राहुल द्रविड़ जैसा खिलाड़ी पैदा होता है. लेकिन इसे आगे बढ़ने का स्वार्थ कहें का कुछ और कि हम इतने बड़े महान खिलाड़ी को मैदान से खेलते हुए विदाई का मौका भी न दे सके.
'स्पेशल' लक्ष्मण के करियर का दुखद अंत...
वेरी वेरी स्पेशल लक्ष्मण के करियर का भी बहुत दुखद अंत हुआ. 2012 में न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज से ठीक पहले संन्यास लेकर लक्ष्मण ने सबको चौंका दिया, जबकि उनका नाम टीम में शामिल था. माना ये गया कि बोर्ड, कप्तान और चयनकर्ताओं के रवैय्ये से लक्ष्मण बेहद आहात थे.
खिलाड़ी खुद भी लें सबक...
हालांकि ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के क्रिकेटरों से अगर भारतीय खिलाड़ी सीख ले पाते और सही समय पर रिटायरमेंट ले पाते, तो शायद ये समय देखने को मिलता ही नहीं. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इन प्लेयर्स के रिटायरमेंट प्लान को बोर्ड कहीं बेहतर ढंग से मैनेज कर सकता था.
क्या वीरू, भज्जी, युवी और गौती के साथ भी यही होगा?
देवधर ट्रॉफी से अपना नाम वापस लेकर वीरू और गौती ने ये साफ संकेत दे दिए हैं कि अब वे भी रिटायरमेंट के बेहद करीब हैं. वीरू ने तो साफ-साफ ये कह भी दिया कि अब वे युवा खिलाड़ियों के राह का रोड़ा नहीं बनना चाहते. यूवी भी पहले ही कह चुके हैं कि अब शायद उन्हें दोबारा टीम इंडिया के लिए खेलने का मौका न मिल पाए. बचे भज्जी, तो उनके लिए भी टीम में वापसी के मौके बहुत कम ही हैं.
सौरव, द्रविड़, लक्ष्मण और कुंबले के साथ जो कुछ हुआ वो कतई जायज नहीं था. लेकिन जिस तरह की परिस्थितियां इस वक्त बन रही हैं, उसको देखकर यही लग रहा है कि सहवाग, गंभीर, हरभजन और युवराज को भी शान और इज्जत के साथ मैदान से विदाई का मौका नहीं मिल पाएगा. कहावत भी है कि अंत भला तो सब भला, लेकिन इतने सारे योगदान के बावजूद भी इन सुपर स्टार्स का अंत दुखद ही रहा. सच है कि हम हिन्दुस्तानी बहुत इमोशनल होते हैं लेकिन अफसोस कि भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ताओं को इन महान खिलाड़ियों के दर्द का अंदाजा तक नहीं होता.