
बंदूकों के कारण होने वाले अपराध पर लगाम कसने के उद्देश्य से एनडीए सरकार ने असलहा की संख्या सीमित करने का प्रस्ताव रखा लेकिन उसके इस कदम को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार की ओर से कानून में संशोधन के जरिए एक प्रस्ताव रखा गया है कि कोई व्यक्ति अब तीन की जगह केवल एक बंदूक ही रख सकता है लेकिन राजनैतिक वर्ग, प्रतिरक्षा व सुरक्षा, मार्शल जातियों, पुरानी रियासतों और स्पोटर्स बिरादरी से जुड़े लोग इस कदम का विरोध कर रहे हैं.
इस संबंध में संसद के चालू शीत सत्र में आर्म्स ऐक्ट (संशोधन) विधेयक, 2019, को पेश किया गया है. इस विधेयक में आर्म्स ऐक्ट, 1959 के कई प्रावधानों में संशोधन करने की बात की गई है. अगर बंदूकों की संक्चया को सीमित करने की मंजूरी मिल जाती है तो लाइसेंसधारकों को इस कानून के प्रभावी होने के एक साल के भीतर अपने अतिरिक्त हथियारों को लाइसेंसधारी डीलरों या पुलिस के पास जमा करना होगा. प्रति व्यक्ति एक बंदूक रखने का कानून उन लोगों पर भी लागू होगा जिनके पास विरासत में पहले से असलहा हैं. लेकिन इस विधेयक के अनुसार बंदूक के लाइसेंस की वैधता अब तीन साल की जगह पांच साल तक रहेगी.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रस्तावित संशोधनों के संबंध में नवंबर 2018 तक सुझाव और आपत्तियां मंगाई थीं. गृह मंत्रालय ने शुरू में प्रति व्यक्ति दो बंदूकें रखने का प्रस्ताव रखा था. राज्यसभा के एक बुलेटिन के मुताबिक, प्रस्तावित संशोधन कानून पर अमल कराने की 'मशीनरी को अवैध हथियारों के जरिए किए जाने वाले अपराधों पर ज्यादा प्रभावी रूप से लगाम कसने में सक्षम बनाएंगे.'
अनुमान है कि भारत में करीब 40 लाख लाइसेंसी हथियार हैं. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कितने लाइसेंसों पर इसका प्रभाव पड़ेगा लेकिन नेशनल एसोसिएशन फॉर गन राइट्स इंडिया (एनएजीआरआइ) इस प्रस्तावित कदम के खिलाफ है. एनएजीआरआइ के सचिव अभिजीत सिंह कहते हैं, ''सेमी-ऑटोमेटिक और ऑटोमेटिक बंदूकों पर प्रतिबंध के साथ लाइसेंस जारी करने पर बहुत ज्यादा नियंत्रण है. बहुत से लाइसेंसधारक ऐसे हैं जिनके पास तीन बंदूकें हैं, लेकिन वे सब उन्हें विरासत में मिली हैं. वे सब पुराने समय की हैं और उनसे किसी को खतरा नहीं हो सकता.''
आंकड़े बताते हैं कि लाइसेंसी बंदूकों से देश में शायद ही अपराध होते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, 2016 में आर्म्स ऐक्ट के तहत जब्त किए गए 37,116 असलहां में लाइसेंसी या वैध फैक्टरियों में बने हथियारों की संख्या केवल 1,052 या कुल हथियारों की मात्र 2.8 प्रतिशत थी. उस साल असलहा से होने वाली कुल 3,775 हत्या में 91 प्रतिशत से ज्यादा (3,453) हत्या में बिना लाइसेंस वाली बंदूकों का इस्तेमाल हुआ. लाइसेंसी बंदूकों से होने वाले अपराधों में बड़ी संख्या आत्महत्या की थी.
आलोचकों का कहना है कि सरकार हालांकि लाइसेंसी या वैध हथियारों पर अपना निशाना साध रही है लेकिन आवश्यकता यह है कि अवैध हथियारों से होने वाले कहीं ज्यादा बड़े खतरे के खिलाफ कदम उठाया जाए. एक वैश्विक अनुमान के अनुसार, 2017 में देश में अवैध हथियारों की संख्या 6.14 करोड़ थी. इसके अलावा उग्रवादी संगठनों से पकड़े गए उन हथियारों का भारी-भरकम जखीरा भी एक बड़ी समस्या है जिन्हें उग्रवादी संगठनों ने सुरक्षा बलों से कभी छीन लिया था. पुलिस के सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में माओवादी ने सुरक्षा एजेंसियों से करीब 1,000 स्वचालित और अर्ध-स्वचालित हथियार छीन चुके हैं. इनमें से केवल 400 हथियारों को ही वापस हासिल किया जा सका है. नया विधेयक कहता है कि सुरक्षा बलों के हाथों से हथियार छीनने की सजा आर्थिक जुर्माने के साथ 10 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है.
पाकिस्तान की सीमा से लगे राज्यों की सरकारें इस प्रस्तावित बिल के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं. नवंबर के शुरू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के साथ करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन करने के लिए जब पंजाब गए थे तो राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनके सामने यह मुद्दा उठाया था. सूत्रों ने बताया कि अमरिंदर सिंह का कहना था कि पाकिस्तान पंजाब में फिर से संकट पैदा करने की कोशिश कर रहा है, इसलिए निजी व्यक्तियों के हथियारों पर नियंत्रण लगाने का कदम फिलहाल रोक दिया जाना चाहिए.
इसके साथ ही शूटिंग स्पोटर्स की बिरादरी भी इस विधेयक को लेकर चिंतित है. नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआइ) के अध्यक्ष रनिंदर सिंह कहते हैं, ''बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले ज्यादातर शूटरों ने निशानेबाजी की शुरुआती ट्रेनिंग घरेलू हथियारों से ली है. उनके लिए यह किसी नर्सरी की तरह थी. उसके बाद ही उन्होंने शूटिंग अकादमियों या शूटिंग संघों में इस खेल में महारत हासिल की. अगर हथियारों की संख्या कम कर दी गई तो शुरुआती ट्रेनिंग नहीं हो पाएगी.''
उनका दावा है कि हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे कई राज्यों में शूटर प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ हैं. हथियारों के कुछ लाइसेंसधारकों ने गृह मंत्रालय के समक्ष यह गुहार भी लगाई है कि कुछ मार्शल जातियों में हथियारों का सांस्कृतिक महत्व होता है. मुंबई के एक वकील कहते हैं, ''दशहरा के मौके पर हथियारों के बिना शस्त्र पूजा की कल्पना भी नहीं की जा सकती.'' पटियाला के राजपरिवार से संबंध रखने वाले रनिंदर सिंह कहते हैं, ''गुरु गोविंद सिंह जी ने मुगलों के साथ युद्ध में मारे गए अपने पुत्रों के अंतिम संस्कार जो पटियाला में हुआ था के बाद पटियाला राजपरिवार को सम्मान के तौर पर हथियार दिए थे.''
यह पहली बार नहीं है कि केंद्र सरकार आर्म्स ऐक्ट (संशोधन) विधेयक के जरिए निजी तौर पर हथियार रखने पर प्रतिबंध लगाने का विचार कर रही है. 1983 में इसने हथियार रखने की संख्या घटाकर तीन कर दी थी, जबकि उससे पहले यह संख्या 'अपरिभाषित' थी. इस विधेयक के अन्य प्रावधानों में गैर-लाइसेंसी या प्रतिबंधित हथियार रखने पर ज्यादा कठोर सजा, भारी जुर्माना, उम्रकैद और यहां तक कि मौत की सजा भी शामिल है. शादी-ब्याह जैसे उत्सव के मौकों पर बंदूकें दागने पर भी सरकार की नजर है क्योंकि हाल के वर्षों में इससे कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. अगर कोई इस अपराध का दोषी पाया जाएगा तो उस पर 1 लाख रु. का जुर्माना होने के अलावा दो साल की जेल भी हो सकती है. हालांकि लोगों ने इस तरह के संशोधनों पर सवाल नहीं उठाए हैं लेकिन एक व्यक्ति, एक हथियार के प्रस्ताव पर अभी फैसला आना बाकी है.
तीर या तुक्का
आर्म्स ऐक्ट (संशोधन) विधेयक, 2019 का हथियार धारकों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है
1
हथियार रख सकता है एक व्यक्ति जबकि फिलहाल उसे 3 लाइसेंसी हथियार रखने का अधिकार है
1 साल
लाइसेंसधारकों को एक के अतिरिक्त हथियार आर्म्स डीलर या पुलिस के पास जमा कराने का समय है
1 लाख रुपए
जुर्माना देना पड़ेगा शादी या धार्मिक जुलूसों में फायरिंग करने वाले को. साथ ही दो साल कैद की सजा भी भुगतनी होगी
40 लाख
अनुमानित लाइसेंसी
हथियार हैं देशभर में
61.4करोड़
अवैध हथियार हैं भारत में 2017 के एक अनुमान के अनुसार
2.8%
लाइसेंसी हथियार थे 2016 में जब्त किए गए कुल 37,116 में से, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक
***