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सावधान! जीएसटी असफल नहीं होगा

अपनी तमाम दर्दभरी 'अच्छाइयों' और उलझन भरी 'सरलताओं' के बावजूद जीएसटी असफल नहीं होने वाला. जीएसटी जिस कामयाबी से मुखातिब है, वह नोटबंदी से बिल्कुल विपरीत हो सकती है.

जीएसटी सफल होगा. हमें इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए जीएसटी सफल होगा. हमें इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए
अंशुमान तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 16 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 5:14 PM IST

अपनी तमाम दर्दभरी 'अच्छाइयों' और उलझन भरी 'सरलताओं' के बावजूद जीएसटी असफल नहीं होने वाला. जीएसटी जिस कामयाबी से मुखातिब है, वह नोटबंदी से बिल्कुल विपरीत हो सकती है.

नोटबंदी आर्थिक और मौद्रिक रूप से बुरी तरह विफल रही. लेकिन 'गरीबों के लिए अमीरों को सजा' देने का राजनैतिक संदेश समझ में आने से पहले अपना काम बखूबी कर गया था.

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जीएसटी की सफलता को महसूस करना मुश्किल होगा लेकिन इसे आर्थिक आंकड़ों में बताया जा सकेगा. अलबत्ता यह टैक्स सुधार राजनैतिक खतरों से लैस है. यह उन जगहों पर चोट करेगा, जहां भारत के अधिकांश कामगारों को पनाह मिलती है.

कामयाबी का गणित

जीएसटी को सफल साबित करने वाले आंकड़ों की कमी नहीं होने वाली. जीएसटी की पहली सफलता राजस्व में बढ़ोतरी से नापी जाएगी.

सरकारें कमाएंगी

जीएसटी का डिजाइन सरकारों की कमाई में वृद्धि के लिए बना है. 60 फीसदी उत्पाद और सेवाएं 18 व 28 फीसदी के ऊंचे टैक्स स्लैब में हैं. राजस्व के सबसे बड़े स्रोत यानी पेट्रो उत्पाद, अचल संपत्ति और मोटर वाहन पंजीकरण जीएसटी से बाहर हैं. इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिए संगठित क्षेत्र के ज्यादा विनिमय जीएसटी में दर्ज होंगे, इसलिए राजस्व के आंकड़े चमकेंगे.

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पुरानी व्यवस्था में टैक्स क्रेडिट फ्रॉड से एक लाख करोड़ रु. तक का नुक्सान होता था. जीएसटी के साथ यह बंद हो जाएगा.

पुरानी प्रणाली के तहत केंद्र और राज्यों में करीब 85 लाख करदाता पंजीकृत थे. टैक्स छूट सीमा कम होने और एक कंपनी के कई प्रतिष्ठानों को रजिस्टर कराने की शर्त के जरिए करदाताओं की संख्या एक करोड़ तक जा सकती है.

जीडीपी बढ़ेगा

जीडीपी के लिए जीएसटी विटामिन है. छोटे कारोबारी टैक्स भले ही न दें, उन्हें मिलने वाली सप्लाई और कारोबार किसी न किसी स्तर पर रिकॉर्ड होगा जो जीडीपी में बढ़त की वजह बनेगा.

1.5 करोड़ रु. की छूट सीमा वाली इकाइयां, छूट स्कीमों का लाभ (20 लाख और 75 लाख रु.) लेने के लिए कारोबार को अलग-अलग कंपनियों में बांटेंगी जिससे उत्पादन नहीं बढ़ेगा पर जीडीपी बढ़ जाएगा.

जीडीपी उत्पादन व उपभोग को मापता है, जिसमें टैक्स के आंकड़े प्रमुख कारक होते हैं. बेहतर राजस्व और करदाता ग्रोथ के आंकड़ों की मालिश करेंगे हालांकि यह ग्रोथ हकीकत में महसूस नहीं होगी.

राजनैतिक जोखिम

जीएसटी का अर्थशास्त्र चुस्त है. इसकी राजनीति  जोखिम भरी है.

जीएसटी असंगठित और छोटे उद्योग व व्यापार तंत्र को सिकोड़ रहा है, अर्थव्यवस्था का यही हिस्सा सबसे ज्यादा रोजगार देता है.

जीएसटी आने के बाद बड़ी कंपनियों ने छोटे और गैर रजिस्टर्ड सप्लायरों व जॉब वर्करों की छंटनी शुरू कर दी है. यहां बेकारी बहुत तेजी से बढ़ सकती है.

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भारत स्थानीय ब्रांड्स की प्रयोगशाला है जो सस्ते उत्पाद बनाते हैं. बड़ी कंपनियां अब पूरे देश में सप्लाई चेन व वेयरहाउस का विस्तार करेंगी जो स्थानीय निर्माताओं के लिए अच्छी खबर नहीं है.

पिछले साल अक्तूबर में विश्व बैंक ने कहा था कि भारत में करीब 69 फीसदी रोजगार ऐसे हैं जो अगले एक-डेढ़ दशक में ऑटोमेशन के कारण खत्म हो जाएंगे. ऑटोमेशन से सबसे ज्यादा खतरा मशीन ऑपरेटर, लेबर, क्लर्क आदि रोजगारों के लिए है.

जीएसटी के बाद छोटी कंपनियां बड़े पैमाने पर या तो बंद हो जाएंगी या फिर अपने कारोबार को स्थानीय बाजारों तक सीमित करेंगी क्योंकि कम टैक्स देने या बचाने के रास्ते बंद हो जाएंगे.

मझोले कारोबारी, छोटी-मझोली कंपनियां, असंगठित डिस्ट्रिब्यूशन, सामान्य टेक्नोलॉजी वाले उत्पाद और सस्ते आयात से मुकाबला करने वाले उद्योगों में नौकरियों पर खतरा है.

ध्यान रहे कि भारत में सबसे आसान काम है छोटा कारोबार. इसके लिए किसी कौशल की जरूरत नहीं होती. 50,000 रु. की पूंजी पर दो लाख रु. का उधार लेकर कोई भी अपनी रोजी जुटाना शुरू कर देता है.

भारत में जहां हर साल करीब एक करोड़ नए युवा बेरोजगारी लाइन में आ जाते हों, वहां हमें तय करना होगा कि जीएसटी की सफलता को हम कैसे नापते हैं: खर्चीली और भ्रष्ट सरकारों के खजाने में बढ़त से या फिर रोजगार गंवाकर सड़कों पर बेरोजगार घूमते युवाओं की भीड़ से?

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नीतियां युद्ध नहीं होतीं. इनमें हर कीमत पर जीतने जैसा कुछ नहीं होता. नीतियों की सफलता उस कीमत से आंकी जाती है जो उनकी कामयाबी के बदले चुकाई गई है.

जीएसटी सफल होगा. हमें इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए.

 

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