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दिल्ली में लैंड पूलिंग से जुड़ी राजनीति को दरकिनार कर दें तो रीयल एस्टेट के तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि लैंड पूलिंग दिल्ली का कायाकल्प कर सकती है. हर रोज बढ़ती अनऑथराइज दिल्ली के पीछे सबसे बड़ी वजह यहां अफोर्डेबल हाउसिंग की कमी है और लैंड पूलिंग दिल्ली की इस कमी को बखूबी पूरा कर सकती है.
डेढ़ लाख एकड़ तक जमीन होगी उपलब्ध
डीडीए के एक अनुमान के मुताबिक लैंड पूलिंग के बाद द्वारका से लेकर नरेला तक करीब डेढ़ लाख एकड़ तक जमीन उपलब्ध होगी. सूत्रों की मानें तो अगले दो से तीन महीने में यहां काम शुरू भी हो जाएगा, क्योंकि डीडीए ने अपने स्तर पर तमाम तैयारी दो साल पहले ही पूरी कर ली थी.
बीते दो सालों से लैंड पूलिंग की फाइल दिल्ली सरकार की मेज पर थी. बहरहाल, 89 गांवों को शहरीकृत इलाका घोषित करते ही अब इस पर काम काफी तेजी से होगा. आपको बता दें कि करीब 115 गांवों को डीडीए ने पहले ही शहरीकृत घोषित कर दिया है.
इस तरह योजना में कुल 200 गांवों के ग्रामीण इलाके शामिल होंगे, जहां तक इस इलाके में फ्लैट लेने का सवाल है तो आपको बता दें कि यहां मौजूद प्राइवेट बिल्डरों ने तो दो साल पहले से ही ऑफर-प्लान देने शुरू कर दिए थे.
श्रेय लेने की राजनीति भी शबाब पर
मई 2015 में ही शहरी विकास मंत्रालय ने लैंड पूलिंग से जुड़ी फाइल पूरी कर दी थी और इसे पूरे देश में जमीन अधिग्रहण के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव की तरह देखा जा रहा था, जिसके बाद जोर-जबरदस्ती जमीन अधिग्रहण की जरूरत नहीं होगी, बल्कि जमीन का मालिक खुद ही इसका हिस्सा बनना चाहेगा.
बीते दो सालों में लैंड पूलिंग की फाइल अरविंद केजरीवाल की मेज पर अटकी रही. किसी ना किसी वजह से दिल्ली सरकार ने इसे नोटिफाई नहीं किया. ये बात दीगर है कि नोटिफिकेशन पास करते ही केजरीवाल ने सबसे पहले रोड शो कर किसानों को विकास कराने का श्रेय लूटने की कोशिश की.
दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि दिल्ली की जनता सब जानती है, केजरीवाल पहले तो कुछ करते नहीं, बस श्रेय लेने का ढोल बजाते हैं. जाहिर है, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच लैंड पूलिंग को लेकर आगे भी राजनीति कम नहीं होने वाली क्योंकि लैंड पूलिंग बड़े पैमाने पर एक गेम चेंजिंग प्लान साबित होने वाला है.
छोटे किसान/जमीन मालिक होंगे घाटे में
लैंड पूलिंग में कुल दो श्रेणियां हैं, पहली श्रेणी में 20 हेक्टेयर से अधिक जमीन वाले व्यक्ति या समूह होंगे और दूसरी श्रेणी में 2 से 20 हेक्टेयर जमीन वाले. पहली श्रेणी में डीडीए 40 फीसदी जमीन खुद रखेगा और 60 फीसदी लौटा देगा और दूसरी श्रेणी में 48 फीसदी जमीन लौटाई जाएगी और बाकी जमीन डीडीए अपने पास रखेगा.
साफ है कि दूसरी श्रेणी में आने वाले छोटे और मझोले किसान या फिर जमीन मालिक नियमों में इस असमानता का शिकार होंगे. इस बारे में कुछ किसानों ने अरविंद केजरीवाल को लिखित शिकायत भी दी है लेकिन जमीन दिल्ली सरकार का मसला नहीं है, लिहाजा वो कुछ कर भी नहीं सकते.
बहरहाल, माना जा रहा है कि लैंड पूलिंग के बाद इकट्ठी हुई जमीन पर जो विकास की लहर बहेगी उसमें कम से कम 25 लाख परिवारों को घर मिल सकेगा.